Editorial (संपादकीय)

कम्बल कीट के प्रकोप का समय आ रहा है

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पंचों, मानसूनी वर्षा के तुरंत बाद, कंबल कीड़ा या कामलिया कीट का प्रकोप हर साल हम देखते हैं। खरीफ में बोई गई मक्का, सोयाबीन, उड़द, अरहर, मूंग इत्यादि फसलें, अपनी प्रारंभिक अवस्था में, कंबल कीट क् प्रकोप से सर्वाधिक प्रभावित होती है। कई बार तो ज्यादा प्रकोप की स्थिति में दुबारा बोनी की नौबत आ जाती है। अत्यधिक प्रकोप की स्थिति में नवरोपित फलदार एवं अन्य पौधे पत्तेविहीन हो जाते है, क्योंकि यह कीट कोमल पत्तियों एवं तनों को खाकर नुकसान पहुंचाता हैं। प्रारंभिक अवस्था में दिखने के बाद, लगभग तीन सप्ताह तक, इस कीट का प्रकोप जारी रहता है, और दूसरे सप्ताह इसका प्रकोप महामारी की तरह फैलता है। थोड़ा सा सचेत रहकर अपनी फसलों को आप इसके नुकसान से बचा सकते है। पंचों, आज की चौपाल में इस कीट के स्वभाव, इससे होने वाले नुकसान एवं बचाव के उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
शंखी या प्यूपा की अवस्था में, यह कीट नवम्बर से जून माह तक, सुसुप्तावस्था में व्यतीत करता है। मानसून की प्रथम भारी वर्षा के बाद प्यूपा या शंखी की सुसुप्तावस्था टूटती है, और उससे वयस्क पंखी बाहर निकलती है। एक मादा वयस्क पंखी अपने जीवन काल में लगभग एक हजार अंडे देती है। लगभग 4-5 दिनों में अंडे फूटते है। जिससे छोटी सूण्डियां बाहर निकलती है। यही अवस्था फसलों के लिये हानिकारक होती है। सूण्डियां विकसित होकर इल्लियां बनती हैं। जिनके शरीर में लाल-भूरे रंग के बाल आ जाते है। अपने लगभग तीन सप्ताह के जीवनकाल में, ये फसलों के कोमल पौधों को पूरी तरह नष्ट कर देते हैं। मुख्य रूप से मक्का, सोयाबीन, उड़द, मूंग, अरहर, तिल इत्यादि की फसलें, इस कीट से ज्यादा प्रभावित होती है। इसके नुकसान से बचाव के लिये, फसलों की पत्तियों पर अंडों के समूह दिखने पर या छोटी सूण्डियां दिखने पर, हाथ से एकत्रित कर, मिट्टी तेल मिश्रित पानी में डाल कर नष्ट करें, गर्मी की जुताई से, इस कीट का प्रकोप कम होता है। वयस्क पंखियों को प्रकाश प्रपंच में आकर्षित कर, नष्ट करने से उनकी आगे की पीढिय़ाँ नियंत्रित की जा सकती है। रसायनिक नियंत्रण हेतु क्विनालफॉस डस्ट का भुरकाव करें। खेत की मेड़ों पर भुरकाव कर, अपनी सीमा में लक्ष्मण रेखा बना दें। जिससे दूसरे खेतों से कीट अपनी सीमा में न आ सकें।
प्रस्तुति : भानुप्रताप सिंह, शहडोल

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