Editorial (संपादकीय)

अच्छे उत्पादन की प्रथम सीढ़ी ‘बीज’

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17 जून 2022, अच्छे उत्पादन कीप्रथम सीढ़ी ‘बीज’खेती के विभिन्न आदानों में बीज विशेष होता है और उस बीज के मद में लागत भी सबसे अधिक होती है। मसाला फसल, औषधि फसल, नगदी फसलों के बीज पर तो कुल लागत का 75 प्रतिशत तक खर्च केवल बीज पर किया जाता है। उल्लेखनीय है कि इस कीमती बीज पर अनेकों प्रकार की फफूंदी उसके आवरण के साथ रहती है और यदि बीज का ढंग से उपचार ना किया गया हो तो ये फफूंदी बीज के साथ भूमि के भीतर भी पहुंच जाती है और विभिन्न प्रकार के रोगों के विस्तार में सक्रिय हिस्सा लेती है। बीजोपचार से यह माना जाता है कि आपने जिस बीज को उपचारित करके खेत में डाला है उसके जीवन का जीवन बीमा हो चुका है। उपचारित बीज अच्छा अंकुरण देगा भूमि के भीतर की फफूंदी पर भी रोक लगायेगा अच्छे अंकुरण से सीधा-सीधा रिश्ता है। अच्छे उत्पादन की प्रथम सीढ़ी की सफलता से पार करना और रोगों की प्रारंभिक अवस्था पर नकेल कसना होता है।

खरीफ की मुख्य फसलों में सोयाबीन, धान, कपास, मक्का, ज्वार, अरहर एवं लघु धान्य विशेषकर होते हैं इसके अलावा दलहनी फसलों में मूंग, उड़द तिलहनी में तिल, रामतिल और सूर्यमुखी भी कुछ क्षेत्र में लगाई जाती है इन सभी फसलों के बीज का उपचार उसके अंकुरण के लिये प्राथमिकता से किया जाना जरूरी क्रिया होगी। सोयाबीन के पतले छिलके में अनेकों प्रकार की फफूंदी होती है जिनको हटाकर अच्छा अंकुरण पाना जरूरी है। सोयाबीन के बीज पर सर्वप्रथम फफूंदनाशी फिर कल्चर और उसके बाद पी.एस.बी. का उपचार करना बहुत जरूरी है। इस वर्ष की स्थिति में तो इसका महत्व और बढ़ गया है क्योंकि अधिकांश बीज बाहर से लाया जा रहा है। कृषक स्वयं अपना बीज ला रहा है। पर बीज की कुंडली से कृषक अनभिज्ञ है। इस कारण उस महंगे दाम से खरीदे बीज की आवभगत अच्छी तरह की जाये उसे तीन तरह के उपचारों से लैस करके भूमि में डाला जाये ताकि अनजाने रोगों पर प्राथमिक प्रतिबंध लग सके। ध्यान रहे सोयाबीन के बीज का अंकुरण प्रतिशत सामान्य रूप से कम होता है और यदि उसे अनुपचारित कर लगाया जाये तो अंकुरण बुरी तरह से प्रभावित होगा। धान के बीजों पर भी फफूंदी रहती है। सबसे पहले तो उसका उपचार 17 प्रतिशत नमक के घोल में किया जाये। 17 ग्राम नमक/ लीटर पानी में घोल बनाकर उसमें बीज डालें। उतराते बीज को हटाकर तली में बैठे भारी बीजों को उपचार के बाद निकालकर अच्छे पानी में धोकर छाया में सुखाकर फिर फफूंदनाशी से उपचारित करके ही उनकी बुआई की जाये। कपास में पहले गंधक के अम्ल के उपचार की जरूरत होती थी परंतु बी.टी. कपास के बीज की उपलब्धि से अब यह समस्या नहीं रही। अन्य खाद्यान्नों, तिलहनी, दलहनी फसलों के बीजों का उपचार भी यथा प्रस्तावित किया जाना जरूरी है।

बरसात के मौसम में भूमि में वातावरण में पर्याप्त नमी उपलब्ध होने के कारण विभिन्न प्रकार की फफूंदी की सक्रियता पर अधिक असर पड़ता है वे अधिक तेजी से पलती-पुस्ती रहती है तथा फसलों को नुकसान पहुंचाती है। इसीलिये बीजोपचार को सफल खेती की कुंजी भी कहा गया है। इस कारण कृषकों को सलाह दी जाती है कि अपने बीज का उपचार कर उसे सुरक्षित करें और लक्षित उत्पादन के सपने को साकार बनायें।

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