Editorial (संपादकीय)

संरक्षित खेती

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गतांक से आगे…
वाक-इन-टनल : ये आधा इंच मोटाई की जी.आई. पाइपों को अर्धगोलाकार मोड़कर तथा उन्हें सरिया के टुकड़ों के सहारे खेत में खड़ा करके व प्लास्टिक से ढंककर बनाई जाने वाली संरक्षित संरचनाएं हैं। इनकी मध्य में ऊंचाई लगभग 6 से 6) फुट तथा जमीन पर एक सिरे से दूसरे सिरे तक चौड़ाई 4.0 से 4.5 मीटर तक ही सम्भव होती है। इस प्रकार की संरचनाओं को सर्दी के मौसम में बेमौसमी सब्जी जैसे खरबूजा, तरबूज, खीरा, चप्पन कद्दू या अन्य कद्दूवर्गीय सब्जियां उगाने के लिये उपयोग में लाया जा सकता है। वाक-इन टनल की लम्बाई आवश्यकतानुसार बढ़ाई जा सकती है। लेकिन सामान्यत: इनकी लम्बाई 20 से 25 मीटर तक ही रखी जाती है। इन संरचनाओं के बनाने पर काफी कम लागत आती है। इनकी देखभाल भी सरलतापूर्वक की जा सकती है। लेकिन इन संरचनाओं का उपयोग केवल सर्दी के मौसम (दिसम्बर मध्य से जनवरी अंत तक) में ही फसल उत्पादन हेतु किया जा सकता है। क्योंकि गर्मी के समय में जब बाहर का तापमान बढ़ता है तो टनल के अन्दर तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है जिसके कारण किसी भी फसल को उसके अंदर उगाना संभव नहीं होता है। अत: इनका उपयोग केवल सर्दी के मौसम में कद्दूवर्गीय सब्जियों के बेमौसमी उत्पादन हेतु किया जाता है लेकिन सर्दी के मौसम में इनमें दूसरी सब्जियों को भी उगाया जा सकता है।

हमारे देश में जहां आबादी एक अरब पन्द्रह करोड़ से भी अधिक है वहां 35-40 प्रतिशत जनसंख्या केवल शहरों में रह रही है तथा शहरी आबादी का यह अनुपात वर्ष 2025 तक लगभग 60 प्रतिशत तक बढऩे की उम्मीद है। प्रतिदिन गांव से शहरों की तरफ युवा रोजगार व बेहतर भविष्य की उम्मीद में हजारों की संख्या में विस्थापित हो रहे हैं। यह विस्थापन एक ओर रोजगार के विकल्प पर प्रशनचिन्ह लगा रहा है वहीं दूसरी तरफ बढ़ती शहरी जनसंख्या खाद्य आपूर्ति पर भी गंभीर दबाव बढ़ा रही है। इस शहरी आबादी में प्रति व्यक्ति कम आय वाले लोग अपनी लगभग 50 से 80 प्रतिशत तक आय भोजन उपलब्ध करने में लगा देते हैं। इस वर्ग के भोजन की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं होती जिनमें मुख्य पोषक तत्वों की मात्रा आवश्यकता से कहीं कम होती है।

प्लास्टिक लो-टनल : लो-टनल ऐसी संरक्षित संरचनायें हैें जिन्हें मुख्य खेत में फसल की रोपाई के बाद प्रत्येक फसल क्यारियों के ऊपर फसल को कम तापमान से होने वाले नुकसान से बचाने के लिये कम ऊंचाई पर प्लास्टिक ढंककर बनाया जाता है। ऐसी संरचना बनाने के लिये पहले क्यारियां तैयार की जाती है, तथा उन पर ड्रिप सिंचाई हेतु पाइप फैलाकर उन पर पतले तार के हुप्स इस प्रकार लगाये जाते हैं जिससे हुप्स के दोनों सिरों की दूरी 40 से 60 सें.मी. रहे तथा इनको 1.5 से 2.0 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। हुप्स, तार को मोड़कर भी बनाये जा सकते हैं तथा उन्हें 2.0 से 2.5 मीटर की दूरी पर थोड़ा सा अधिक ऊँचाई (60 सें.मी.) पर लगाया जाता है। बाद में बेल वाली सब्जियों की तैयार पौध मुख्य खेत में रोपाई करके दोपहर बाद क्यारियों पर प्लास्टिक चढ़ाया जाता है। प्लास्टिक की मोटाई 20-30 माइक्रोन होनी चाहिए तथा लो-टनल बनाने के लिए हमेशा पारदर्शी प्लास्टिक का ही प्रयोग करें। यदि रात को तापमान 5.0 डिग्री से.ग्रे. से कम है तो 7 से 10 दिन तक प्लास्टिक में छेद करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन उसके बाद प्लास्टिक में पूर्व दिशा की ओर चोटी से नीचे की ओर छोटे-2 छेद कर दिये जाते हैं तथा जैसे-2 तापमान बढ़ता है इन छेदों का आकार भी बढ़ाया जाता है। पहले छेद 2.0 से 3.0 मीटर की दूरी पर बनाये जाते हैं, बाद में इन्हें 1.0 मीटर की दूरी पर बना दिया जाता है। इस प्रकार पूरी प्लास्टिक को आवश्यकतानुसार तथा तापमान को ध्यान में रखते हुए फरवरी के अंत या मार्च के प्रथम सप्ताह में फसल के ऊपर से पूर्ण रुप से हटा दिया जाता है। इस समय तक फसल काफी बढ़ चुकी होती है तथा उससे फल स्थापन प्रारम्भ हो चुका होता है। इस प्रकार की संरक्षित संरचनाओं में मुख्यत: खरबूजा, चप्पन कद्दू, खीरा, तरबूज, करैला, टिण्डा, लौकी व अन्य कद्दूवर्गीय सब्जियों को मुख्य मौसम से 30 से 60 दिन पहले उगाया जा सकता है। चप्पन कद्दू जैसी फसल की रोपाई तो दिसम्बर व जनवरी माह में तथा खरबूजे की फसल को जनवरी के अंत या फरवरी के प्रथम सप्ताह में लगातार 30 से 60 दिन तक अगेती उगाया जाता है। इस प्रकार इन फसलों के बाजार से अधिक भाव लेकर अधिक लाभ कमाया जा सकता है। टनल बनाने से पौधों के आसपास का सूक्ष्म वातावरण काफी बदल जाता है तथा दिन के समय जब अच्छी प्रकार से धूप निकलती हों तो टनल के अन्दर का तापमान 10 से 12 डिग्री बढ़ जाता है जिससे कम तापमान होते हुए भी इन फसलों की बढ़वार तेजी से होती है तथा रात के समय टनल में पौधों का पाले से बचाव भी होता है। यह तकनीक उत्तर भारत के मैदानी खासकर शहरों के चारों ओर रहने वाले किसानों के लिये बड़ी लाभप्रद व उपयोगी है, लेकिन इस तकनीक को अपनाने से पूर्व किसानों को इन बेल वाली सब्जियों की पौध को भी संरक्षित संरचनाओं में ही तैयार करना होगा। 

कीट अवरोधी नेट हाउस : इस प्रकार की संरचनाओं को बनाने के लिये आधा इंच मोटाई की जी.आई. पाइपों को अर्धगोलाकार रुप में मोड़कर, जमीन में गाड़े गए सरिए के टुकड़ों के सहारे खड़ा किया जाता है तथा इस प्रकार पाइपों को 2.0 से 2.5 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। फिर इन्हें कीट अवरोधी नाइलोन नेट से ढंका जाता हे जाली को प्रति वर्ग इंच भाग में बने छिद्रों के आधार पर उपयोग में लिया जाता है तथा जिस जाली में 40 से 50 छिद्र प्रति इंच के हिसाब से हों (40 अथवा 50 द्वद्गह्यद्ध ह्यद्ब5द्ग) उससे ही इसे ढंका जाता है। इस प्रकार की संरचनाओं में बरसात या उसके बाद विषाणु रोगों से फसलों को बचाने के लिये इनमें उगाया जाता है। बरसात या बरसात के बाद मध्य अक्टूबर तक अनेक कीटों खासकर सफेद मक्खी जो विषाणु रोग को फैलाती है, की जनसंखया बहुत ज्यादा बनी रहती है। अधिकतर किसानों को बरसात के मौसम में टमाटर, मिर्च व शिमला मिर्च तथा भिण्डी आदि फसलों को उगाने में इन कीटों खासकर सफेद मक्खी के कारण बहुत कठिनाई होती है। अधिकतर किसान टमाटर जैसी फसल को इस मौसम में विषाणु रोग के कारण उगाने में असफल रहते हैं । लेकिन यदि किसान कम से कम टमाटर, मिर्च, शिमला मिर्च आदि फसलों की पौध इस प्रकार की संरक्षित संरचनाओं (नेट हाउस) के अन्दर तैयार करें, ताकि पौध को पूर्ण रुप से विषाणु रोग रहित तैयार किया जा सके। यदि किसान विषाणु रोग रहित स्वस्थ पौध की रोपाई मुख्य खेत में करते हैं तो बाद में कुछ कीटनाशकों का छिड़काव करके विषाणु रोगों को काफी हद तक रोका जा सकता है। क्योंकि आज तक हमारे अधिकतर किसान सभी प्रकार की सब्जियों की पौध खुले खेत में तैयार करते हैं। चाहे बरसात का मौसम हो या ठण्ड का। लेकिन अब बदलाव का समय आ गया है कि वे सब्जियों की पौध को बहुत कम लागत वाली संरचनाओं (नेट हाउस) में ही तैयार करें। यदि कद्दूवर्गीय सब्जियों की बेमौसमी पौध तैयार करनी है तो वे वाक-इन-टनल रुपी संरक्षित संरचनायें बनाकर उनमें तैयार कर सकते हैं तथा ऐसी पौध की आवश्यकतानुसार खेत में रोपाई की जा सकती है। ठीक वाक-इन-टनल की ही तरह नेट-हाउस की चौड़ाई व ऊंचाई बढ़ाना सम्भव नहीं है, लेकिन इनकी लम्बाई को आवश्यकतानुसार बढ़ाना सम्भव है। दूसरी तरफ इन नेट-हाउस को सर्दी के मौसम में ऊपर प्लास्टिक ढंककर ही वाक-इन-टनल भी बनाना सरलतापूर्वक सम्भव है।
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