संपादकीय (Editorial)

गेमचेंजर हो सकता है नैनो यूरिया

  • सुनील गंगराड़े

26 जुलाई 2022, भोपाल । गेमचेंजर हो सकता है नैनो यूरिया बीते दशक में कृषि क्षेत्र में तकनीक के माध्यम से परिवर्तन की बयार चल पड़ी है, नवाचार हो रहे हैं। किसान बंधुओं की मेहनत, कृषि वैज्ञानिकों के सतत अनुसंधान शोध से खेती में लगने वाले बीज, खाद, रसायन सबका गुणवत्ता उन्नयन हो रहा है और इस दिशा में सतत प्रगति हो रही है और प्रभावी परिणाम भी दिखने लगे हैं। खाद्यान्न उत्पादन के मामले में भारत आत्मनिर्भरता के साथ-साथ अन्य देशों को भी रसद के रूप में मदद कर रहा है। कृषि निर्यात भी बढ़ रहा है।

परन्तु वहीं खेती में लगने वाले प्रमुख आदान ‘उर्वरक’ के मामले में भारत को विदेशों से भारी तादात में ‘फर्टिलाइजर’ आयात करना पड़ता है। इस महंगे यूरिया, डीएपी पर सब्सिडी देकर सरकार किसानों पर बोझ तो नहीं डाल रही है। लेकिन उपलब्धता समुचित ना होने से सीजन में संकट हो जाता है। वर्तमान परिदृश्य में उर्वरक मंत्री की ओर से अच्छी खबर ये आ रही है कि चालू खरीफ और आने वाले रबी मौसम के लिए यूरिया का स्टॉक भरपूर है और आयात की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। उर्वरक मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक 16 लाख टन आयातित यूरिया आ चुका है। राज्यों के पास 70 लाख टन यूरिया गोदामों में स्टॉक है। वहीं देश के यूरिया कारखाने प्रति माह 25 लाख टन यूरिया का उत्पादन कर रहे हैं।

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भारत में सबसे ज्यादा लगने वाले उर्वरक यूरिया की कीमतें वैश्विक बाजार में आसमान छू रही हैं, वहीं फॉस्फेटिक और पोटेशिक उर्वरक के दाम भी बढ़े हुए हैं। नतीजे में उर्वरक सब्सिडी 2.6 लाख करोड़ के ऊपर जाने का अनुमान है, जबकि गत वित्तीय वर्ष में ये 1.62 लाख करोड़ रुपए थी।

इस स्थिति में इफको द्वारा विकसित नैनो यूरिया जहां परम्परागत यूरिया से 10 प्रतिशत सस्ता है वहीं इसकी 1 बोतल की पैकिंग 1 बोरी यूरिया की कार्यक्षमता के बराबर होती है। इफको ने इसका परीक्षण देश के 11 हजार भिन्न-भिन्न स्थानों पर 90 से अधिक फसलों पर किया। उत्साहजनक परिणामों के मुताबिक पारंपरिक यूरिया या अन्य उर्वरकों से पौधों को केवल 30-40 प्रतिशत ही पोषण मिल पाता है, वहीं नैनो यूरिया से पौधों को 80 प्रतिशत पोषक तत्व सहज रूप से मिलते हैं।

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उर्वरक उपयोग में हुए इस नवप्रयोग से देश को उर्वरक आयात की समस्याओं से नहीं जूझना पड़ेगा और यदि आने वाले समय में फसल प्रयोग पर इसके परिणाम उत्साहजनक रहे तो इफको द्वारा पेटेंट प्राप्त नैनो यूरिया के अतिरिक्त उत्पादन की निर्यात संभावनाएं भी बन सकती हैं। एक आकलन के मुताबिक वहीं आयात में कमी से लगभग 40 हजार करोड़ रुपए की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भी बचेगी।

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इस खुशनुमा तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि निजी क्षेत्र के उर्वरक उद्योग की नैनो प्रयोग पर राय किंचित अलग है। विशेषज्ञों एवं समीक्षकों का मानना है कि नैनो के प्रयोगशाला परिणामों के अलावा किसानों के खेतों से निकला उत्पादन ही इसकी उपयोगिता सिद्ध कर पाएगा। उर्वरक उद्योग के मुताबिक नैनो यूरिया प्रमुख रूप से पत्तियों पर स्प्रे के लिए ठीक है, जबकि जड़ों से पोषण के लिए सामान्य यूरिया का ही उपयोग किया जाता है। अब ये भविष्य के गर्भ में है कि नैनो का प्रयोग देश को उर्वरक संकट से कितना उबारता है।

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