Editorial (संपादकीय)

मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा अध्यादेश 2020 पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता

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मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा अध्यादेश 2020 पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता

इस अध्यादेश के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार है

मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा अध्यादेश 2020 पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता – केन्द्र सरकार द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से कृषि विपणन में दक्षता और प्रभावशीलता प्रदान करने के लिए किसानों का व्यापार और वाणिज्य संवर्धन और सुविधा, अध्यादेश 2020 तथा मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा अध्यादेश 2020 पर किसान सशक्तीकरण और संरक्षण, समझौता नाम से दो अध्यादेशों को लागू किया गया है।

  • इस अध्यादेश में पहलीवार कृषि के लिए फार्म सेवाओं को परिभाषित कर मान्यता प्रदान की गई है। जिन में बीज, चारा, कीटनाशक, फार्म मशीन तथा उपकरण, जैविक आदान तथा सलाह को सम्मिलित किया गया है।
  • खेती करने के लिए तथा उत्पादन को खरीदने के लिए अनुबंध को परिभाषित किया जा कर द्विपक्षीय या तीन पक्षों के मध्य अनुबंध को मान्यता दी गई है।
  • उपज के उत्पादन तथा बिक्री के लिए अलग-अलग या एक साथ किये जाने वाले अनुबंधों को परिभाषित किया गया है।
  • प्राकृतिक आपदाओं तथा नियंत्रण के बाहर की घटनाओं से होने वाले नुकसान को परिभाषित किया गया है।
  • किसान खेती करने के लिए लिखित अनुबंध कर सकता है जिसमें नियम तथा शर्ते उत्पाद के प्रदाय का समय, गुणवत्ता के मापदण्ड, ग्रेडिंग, मूल्य तथा इसी तरह की व्यवस्था को लिखा जावेगा।
  • खेती की सेवाओं के लिए लाईसेंस सेवा प्रदाता को लेना होगा।
  • इस अनुबंध को फसल के बटवारा की व्यवस्था के लिए नहीं किया जा सकता। जैसे अधिया या बटिया की व्यवस्था आदि।
  • यह अनुबंध न्यूनतम एक फसल या एक साल से ले कर अधिकतम पांच साल के लिए किया जा सकेगा। यदि अनुबंध की अवधि पांच साल से अधिक होगी तो आपसी सहमति से निर्धारित की जावेगी तथा अनुबंध में लिखना अनिवार्य होगा।
  • इस अनुबंध के तहत फसल की कीमत निर्धारित कर अनुबंध में लिखना आनिवार्य होगा। यदि कीमत बाद में निर्धारित की जावेगी तो न्यूनतम कीमत देना अनिवार्य होगा तथा माल के प्रदाय के समय किस मण्डी को आधार मान कर कीमत निर्धारित करने के मापदण्डों को लिखना आवश्यक होगा।
  • अनुबंध में उल्लेखित समय सीमा में उत्पाद लेना अनिवार्य होगा। क्रेता माल की गुणवत्ता जानने के लिए समय-समय पर फसल का निरीक्षण करेगा यदि निरीक्षण नही करता है तो यह माना जावेगा कि वह गुणवत्ता स्वीकार कर रहा है तथा माल लेने से पीछे नही हटेगा तथा तत्काल भुगतान करेगा। जिसका उल्लेख रशीद में किया जावेगा।
  • यदि बीज क्रय का अनुबंध किया गया है तो बीज लेते समय दो तिहाई कीमत का भुगतान किया जावेगा तथा शेष राशि का भुगतान बीज प्रमाणीकरण के पश्चात किया जावेगा।
  • इस तरह के अनुबंधों के तहत उत्पादित फसल पर कोई भी राज्य के कानून या प्रतिबंध लागू नही होगे तथा आवश्यक बस्तु अधिनियम के तहत निर्धारित सीमा बंधन लागू नहीं होंगे।
  • इस अनुबंध के तहत भूमि का हस्तांतरण नहीं किया जा सकेगा।
  • यदि इस अनुबंध के तहत भूमि पर कोई संरचना बनाई गई है तो अनुबंध समाप्त होते ही उसे हटा लिया जावेगा और यदि हटाना सम्भव नहीं है तो वह भूमि स्वामी को दे दी जावेगी।
  • यदि इस अनुबंध के लिए किसी योजना के तहत या बैंक से कोई वित्तीय व्यवस्था का प्रावधान है तो जोखिम को कम करने के लिए बीमा की व्यवस्था की जावेगी।
  • विवादों के निराकरण के लिए राज्य द्वारा बोर्ड का गठन किया जावेगा। यदि तीस दिन में निराकरण नहीं हो पाता है, अनुविभागीय अधिकारी को प्रकरण सुन कर निर्णय करने का अधिकार होगा।

इस अध्यादेश से खेती को आधुनिक तरीके से करने में निजी संस्थाओं, कम्पनियों, निर्यातकों, प्रसंस्करण कर्ता तथा थोक व्यापार करने वालों को किसानों के साथ मिल कर काम करने का अवसर मिल सकता है। इससे निर्यात को बढ़ावा दिया जा सकेगा तथा बाजार की मांग के अनुरूप खेती करना सम्भव होगा। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि कोई भी कम्पनी या व्यक्ति छोटे-छोटे जोत के किसानों के साथ अनुबंध नहीं करना चाहता है।

क्योंकि यह बहुत खर्चीला होगा तथा किसान द्वत्पाद अनुबंध के तहत देने के लिए बाध्य नहीं है। अभी तक देखने में आता है कि जब मण्डी में उपज की कीमत बढ़ जाती है तो किसान मण्डी में उत्पाद बेच देता है तथा जब मण्डी में कीमत कम हो जाती है तो कम्पनी गुणवत्ता पर सवाल उठा कर क्रय करने से बच जाती है। क्योंकि कृषि जिंसों की गुणवत्ता निर्धारण के बहुत स्पष्ट मापदण्ड नहीं है तथा गांवों में गे्रडिंग की व्यवस्था न होने के कारण किसान विना ग्रेडिंग के माल बेचने पर मजबूर होता है।

इस तरह के अनुबंध के तहत खेती करने के लिए गांवों में आवश्यक अधोसंरचना का होना आवश्यक है। अनुबंध को लागू करने तथा अनुबंध न मानने पर कानूनी प्रक्रिया इतनी जटिल होती है कि विवाद का निपटारा होते होते इतना समय बीत जाता है कि निपटारे के समय तक उसका अर्थ नहीं रहता है। किसान उत्पादक संगठन तथा फसल आधारित किसान संगठन इस दिशा में अच्छी पहल कर सकते हैं।

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