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संपादकीय (Editorial)

साइकिल: तकनीक के युग में शून्य उत्सर्जन की वापसी

लेखक: योगेश कुमार गोयल

10 जून 2025, भोपाल: साइकिल: तकनीक के युग में शून्य उत्सर्जन की वापसी – एक ज़माना था जब साइकिल केवल गरीबों या मध्यमवर्गीय परिवारों की सवारी मानी जाती थी, लेकिन समय के साथ इसकी पहचान पूरी तरह बदल गई। आज यह न सिर्फ एक स्वस्थ जीवनशैली का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम मानी जाती है। ङ्खशह्म्द्यस्र क्चद्बष्4ष्द्यद्ग ष्ठड्ड4 इसी बदलती सोच और जागरूकता का प्रतीक है।

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एक समय ऐसा था, जब लोग मीलों दूर का सफर भी पैदल अथवा बैलगाडिय़ों के माध्यम से कई-कई दिनों में पूरा किया करते थे। साइकिल के आविष्कार ने लोगों की दुनिया ही बदल डाली, जिसने लोगों के लिए मीलों दूर का सफर भी आसान बना दिया था। कुछ दशक पूर्व तो बहुत से छात्र स्कूल तक पहुंचने के लिए भी मीलों दूर का सफर साइकिल से ही तय किया करते थे। हालांकि वह ऐसा दौर था, जब साइकिल को आमतौर पर निर्धनता का प्रतीक समझा जाता था और साइकिल को गरीब तथा मध्यम वर्ग के यातायात का ही अहम हिस्सा माना जाता था। तब खासकर मजदूर वर्ग के लोग, दूध वाले, स्कूल जाने वाले छात्र इत्यादि ही साइकिल पर दिखते थे। साइकिल की कीमत तब ज्यादा नहीं होती थी और प्राय: एक ही जैसी साइकिलें बाजार में मिलती थी लेकिन समय के साथ बदलती तकनीक के दौर में साइकिलें भी हाईटैक होती गई और आज बाजार में कुछ हजार से लेकर लाखों रुपये तक की साइकिलें उपलब्ध हैं।

समय के साथ साइकिल की उपयोगिता और महत्व भी बदलता गया है और आज के आधुनिक दौर में साइकिलें अधिकांशत: व्यायाम अथवा शारीरिक फिटनेस के तौर पर प्रयोग की जाती हैं। आज के ज़माने में लोग घंटों साइकिल चलाकर इससे सेहत और वातावरण को पहुंचने वाले फायदों के बारे में जागरुकता फैलाते हैं। हालांकि यूरोप, डेनमार्क, नीदरलैंड इत्यादि दुनिया के कई हिस्से आज भी ऐसे हैं, जहां साइकिल के जरिये ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाया जाता है।

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साइकिल का दौर 1960 से लेकर 1990 के बीच काफी अच्छा चला लेकिन उसके बाद समय बदलता गया और साइकिल का चलन भी कम होता गया। बीते कुछ वर्षों में पर्यावण की महत्ता और साइकिल चलाने से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी लाभ को देखते हुए लोग साइकिल की ओर आकर्षित हुए हैं और यही कारण है कि अब केवल भारत ही नहीं बल्कि जापान, इंग्लैंड सहित कई विकसित देशों में भी साइकिलों का उपयोग बढ़ रहा है। भारत का साइकिल उद्योग आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है और भारत साइकिल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है।

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साइकिल पर्यावरण के लिए यातायात का सबसे उत्तम साधन है क्योंकि इसके उपयोग से डीजल-पैट्रोल का दोहन कम होने के साथ ही प्रदूषण स्तर भी कम होता है, साथ ही शरीर को स्वस्थ रखने में भी साइकिल महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। साइकिल चलाने से न केवल पर्यावरण सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है बल्कि यह व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक विकास में भी सहायक होता है। यही कारण है कि साइकिल की विविधता, मौलिकता और परिवहन के एक व्यापक और सहज साधन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 3 जून को ‘विश्व साइकिल दिवसÓ मनाया जाता है। अप्रैल 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल 3 जून को यह दिवस मनाने की घोषणा साइकिल सवारी से मिलने वाले स्वास्थ्य, पर्यावरण और आवागमन के लिए सबसे सस्ता साधन इत्यादि को देखते हुए की थी।

दरअसल साइकिल का महत्व धीरे-धीरे घटता जा रहा था, तकनीक के विकास के साथ ही पैट्रोल-डीजल इत्यादि से चलने वाली गाडिय़ों का उपयोग बढऩे लगा और लोगों ने समय की बचत तथा सुविधा के लिए साइकिल चलाना बेहद कम कर दिया। इसीलिए साइकिल के उपयोग और जरूरत के बारे में बच्चों और अन्य लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व साइकिल दिवस मनाने की जरूरत महसूस की गई। संयुक्त राष्ट्र संघ ने पर्यावरण सुरक्षा को भी साइकिल चलन को बढ़ावा देने का अहम उद्देश्य माना है।

साइकिल यातायात का ऐसा साधन है, जो वायु प्रदूषण को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि इसे चलाने के लिए पैट्रोल, डीजल या सीएनजी जैसे किसी ईंधन की जरूरत नहीं पड़ती। साइकिल चलाने से अच्छा व्यायाम हो जाता है, जिससे वजन कम करने से लेकर मांसपेशियों को मजबूती मिलती है। साइकिल चलाना एक प्रकार की एरोबिक एक्सरसाइज है, जिससे शरीर को चुस्त-दुरूस्त रखने, पतला होने और मांसपेशियों को टोन करने में मदद मिलती है। विशेषज्ञों के अनुसार नियमित साइकिल चलाने वाले व्यक्ति को कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह जैसी भयानक बीमारियों का जोखिम कम होता है और यदि कोई व्यक्ति प्रकृति के करीब साइकिल चलाता है तो यह उसे तरोताजा रखने के साथ-साथ उच्च रक्तचाप जैसी समस्या को भी दूर रखने में मददगार है। साइकिल चलाने से मूड अच्छा होने में भी मदद मिलती है।

साइकिल चलाने से न केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है बल्कि मस्तिष्क अधिक सक्रिय रहता है, ब्रेन पावर बढ़ती है। विशेषज्ञों का मानना है कि साइकिल चलाने से 15 से 20 प्रतिशत अधिक दिमाग सक्रिय होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक साइकलिंग करने से इम्यून सिस्टम तो अच्छा होता ही है, साथ ही इम्यून सेल्स भी एक्टिव हो जाते हैं, जिससे विभिन्न बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।

साइकलिंग परिवहन का सबसे सस्ता साधन है, जिससे रत्तीभर भी पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता। आधा घंटा साइकलिंग करने से बॉडी फिट रहती है, शरीर पर चर्बी नहीं आती, पाचन क्रिया ठीक रहती है, हृदय और फेफड़े मजबूत बनते हैं और कई जानलेवा बीमारियां दूर रहती हैं। चूंकि साइकिल स्वच्छ और पर्यावरण के अनुकूल परिवहन का साधन है, इसीलिए दुनियाभर में साइकिल के चलन को बढ़ावा देने का सीधा सा अर्थ है वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना क्योंकि साइकलिंग में स्वाभाविक शून्य उत्सर्जन मान होता है, इसीलिए यह कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कमी में बड़ा योगदान देती है।

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