Editorial (संपादकीय)

प्रोसेसिंग यूनिट लगाने में किसानों की मदद करेंगी कंपनियां

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बांदा। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में कालिंजर क्षेत्र में विश्व दाल दिवस के मौके पर बुंदेलखंड को दलहन का सिरमौर बनाने का संकल्प लिया गया। इसके लिए किसानों और कंपनियों के बीच गठजोड़ की सैद्धांतिक सहमति बनाई गई। कंपनियां क्षेत्र विशेष की प्रमुख फसल के प्रसंस्करण केंद्र लगाने में किसानों की मदद करेंगी और उनके उत्पाद की ब्रांडिंग व मार्केटिंग करेंगी। जिला प्रशासन की तरफ से आयोजित सम्मेलन में खाद्य प्रसंस्करण और रिटेल चेन कंपनियों वालमार्ट इंडिया, ऑर्गेनिक इंडिया, आईटीसी और स्पेंसर ने किसानों को प्रोसेसिंग यूनिट लगाने में मदद करने का आश्वासन दिया। कंपनियों ने कहा कि किसान बाजार की मांग के अनुसार उनसे उन्नत बीज लें, फसल की प्रोसेसिंग करके पैकिंग करें, वे प्रचार-प्रसार करके इसे बेचेंगे। किसानों ने इसके लिए हामी भरी है। पद्मश्री से विभूषित किसानों ने भी सम्मेलन में किसान समूहों को प्रशिक्षित करने का आश्वासन दिया।

हैदराबाद एग्रो साइट से आए कृषि विशेषज्ञ डॉ.राजेश कुमार नून ने उन्नत बीज तैयार करने, बुलंदशहर के प्रगतिशील किसान पद्म श्री भूषण त्यागी ने जीरो बजट पर खेती करने और बिहार के मुजफ्फरपुर से आई पद्मश्री राजकुमारी उर्फ किसान चाची ने बुंदेली महिलाओं के लिए समूह आधारित काम की जानकारी दी। भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र नई दिल्ली के प्रो. मान सिंह ने जैविक उत्पादों के लाभ गिनाए।

प्रोटीन खनिज का स्रोत

तुअर दाल शाकाहारियों के लिए अच्छी क्वालिटी के प्रोटीन का बेहतरीन स्त्रोत है। इसमें सोयाबीन से ज्यादा प्रोटीन होता है। साथ ही फाइबर भी प्रचुर मात्रा में होती है। सिमें मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और पोटैशियम जैसे खनिज पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। यह आयरन और कॉपर जैसे जरूरी खनिजों का स्त्रोत भी है। 100 ग्राम तुअर दाल में वसा मात्र 1.49 ग्राम होती है। सरकार का मानना है कि हर व्यक्ति को रोजाना 40 ग्राम दाल खानी चाहिए। हालांकि एक भारतीय को औसतन 26 ग्राम दाल ही मिल पाती है।

मोटा अनाज खरीद केंद्र का प्रस्ताव:- सांसद आरके सिंह पटेल ने हर ब्लॉक में मोटे अनाज की खरीद के लिए एक-एक केंद्र खोलने का प्रस्ताव संसद में रखा है। उन्होंने बताया कि चना और मसूर की तरह तुअर, सावा, कोदों व बाजरा का भी समर्थन मूल्य घोषित करने का प्रस्ताव दिया गया है। सरकार जल्द इसकी घोषणा कर सकती है।

दाल का कटोरा: देश में तुअर दाल की 90 प्रतिशत पैदावार महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, झारखंड, तेलंगाना और आंध्र में 90 प्रतिशत तुअर की पैदावार होती है। इन्हें ‘दाल का कटोरा’ कहा जाता है।

शुद्ध भारतीय फसल: तुअर या अरहर ‘पीली दाल’ के नाम मशहूर है। यह पूरी तरह भारतीय मूल की फसलें है। ज्यादातर दालों का विकास मध्य एशिया में शुरू हुआ, इनमें चने से लेकर उड़द तक शामिल हैं। वहीं तुअर सबसे पहले भारत में ही पैदा हुई और आज दुनिया की आधी आबादी किसी न किसी रूप में इसका इस्तेमाल करती है। आज की तारीख में ऑस्ट्रेलिया, मध्य अमेरिका और अफ्रीका तक में तुअर की पैदावार होती है।

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