संपादकीय (Editorial)

पानी और पेट्रोल उलीचने से धंसते शहर

  • डॉ. ओ.पी. जोशी

9 जुलाई 2022, भोपाल । पानी और पेट्रोल उलीचने से धंसते शहर – भूजल के अधिक दोहन के साथ-साथ भूमि धंसने का एक और कारण तेल एवं प्राकृतिक गैस का निकाला जाना भी बताया गया है। कैलिफोर्निया के तेल क्षेत्र विलामिंगटन की भूमि इस शताब्दी के चौथे से सातवें दशक के मध्य लगभग 25 फीट धंस गई थी। इसके सुधार हेतु निकाले गये तेल के खाली स्थान पर समुद्री पानी भरा गया।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से ध्रुवों एवं पहाड़ों पर जमी बर्फ पिघलेगी जिससे समुद्री जलस्तर बढऩे एवं नदियों में बाढ़ आने से किनारों पर बसे शहरों के आंशिक या काफी अधिक डूबने का खतरा बताया गया है। शहरों के डूबने के साथ-साथ अब उनके धंसने के खतरे भी वैज्ञानिकों ने बताये हैं। सामान्यत: भूमि धंसने को प्राकृतिक घटना या विपत्ति माना जाता है एवं इसके कई प्रमाण भी हैं।

Advertisement
Advertisement

सन् 1964 में अलास्का में आये भूकंप से वहां कई किलोमीटर का क्षेत्र लगभग दो मीटर धंस गया था। शहरों के धंसने से संबंधित परिवर्तन अमेरिका, थाईलैंड, इटली, चीन, ईरान, पश्चिमी जर्मनी एवं कुछ अन्य देशों में देखे गये हैं। शहरों के धंसने के कई कारण बताये गये हैं, उनमें प्रमुख है- भूजल का अतिदोहन, तेल एवं प्राकृतिक गैस का निकाला जाना।

कई जगहों पर भूगर्भ-जल का विशाल भंडार है जहां वर्षा का जल रिसकर पहुंचता है। भूजल के ये भंडार अपने ऊपर पृथ्वी की ऊपरी सतह का भार सम्भाले रखते हैं। जब भूजल निकालने की मात्रा वर्षा के रिसकर आये जल से अधिक हो जाती है एवं ऐसी स्थिति में यदि पृथ्वी की ऊपरी सतह मजबूत चट्टानों पर नहीं टिकी हो, तो धंसान होने लगती है। बरसों पूर्व अमेरिका के टेक्सास राज्य में होस्टन तथा गेलवेस्टन के मध्य स्थित कई किलोमीटर के क्षेत्र के धंसने की घटना हुई थी। इस धंसान का कारण भूजल का अतिदोहन ही बताया गया था। इस समस्या से निजात पाने हेतु होस्टन से लगभग 100 किलोमीटर की नहर बनाकर वहां ट्रिनिटी नदी का पानी डाला गया था, ताकि भूजल का उपयोग कम हो।

Advertisement8
Advertisement

थाईलैंड की राजधानी बैंकाक के बारे में बताया गया है कि यह पिछले कुछ वर्षों में लगभग 60 सेमी धंस गई है। बैंकाक में एक समय लगभग 30 प्रमुख नहरों का जल रिसकर भूजल में पहुंचता था। बढ़ते शहरीकरण में ज्यादातर नहरों को पाटकर निर्माण कार्य किए गये एवं अब करीब 10 नहरें ही बची हैं। शहर से होकर बहने वाली चौफिया नदी की हालत भी ठीक नहीं है। एक गणना के अनुसार 7 लाख घनमीटर भूजल का दोहन यहां प्रतिदिन होता था। इटली के वेनिस शहर की स्थिति भी लगभग ऐसी ही है। चीन का बीजिंग शहर पानी की कमी से जूझ रहे दुनिया के शहरों में पांचवें स्थान पर है। वहां के विश्वविद्यालयों से जुड़े 10 वैज्ञानिकों ने सेटेलाइट की सहायता से अध्ययन कर बताया था कि बीजिंग के मध्य स्थित व्यावसायिक क्षेत्र चाऔयांग प्रति वर्ष लगभग 11 सेमी (4.3 इंच) की दर से धंस रहा है। व्यावसायिक होने से यहां भूजल का काफी दोहन हुआ है।
पिछले लगभग 25-30 वर्षों से सूखा झेल रहे ईरान में भूजल के ज्यादा दोहन से वहां का तेहरान शहर धंस रहा है। जर्मन सेंटर फार जियो-सांइस पोट्सडाम के वैज्ञानिक ने अध्ययन कर पाया है कि वर्ष 2003 से 2017 के मध्य तेहरान 25 सेमी वार्षिक दर से धंस रहा है। तेहरान के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की जमीन भी सालाना लगभग 5 सेमी धंस रही है। मेक्सिको शहर के धंसने की दर भी बढ़ गई है। भूजल के अधिक दोहन के साथ-साथ भूमि धंसने का एक और कारण तेल एवं प्राकृतिक गैस का निकाला जाना भी बताया गया है। कैलिफोर्निया के तेल क्षेत्र विलामिंगटन की भूमि इस शताब्दी के चौथे से सातवें दशक के मध्य लगभग 25 फीट धंस गई थी। इसके सुधार हेतु निकाले गये तेल के खाली स्थान पर समुद्री पानी भरा गया।

Advertisement8
Advertisement

हमारे देश में शहरों के धंसने से संबंधित कोई विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। वर्षों पूर्व शिमला एवं झांसी के धंसने की बातें कही गई थीं। हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शांताकुमार ने बताया था कि तेजी से हो रहे निर्माण कार्यों की अधिकता से शिमला के कुछ क्षेत्र धंस रहे हैं। इससे डरकर वहां निर्माण कार्यों पर रोक लगाई गई थी। विज्ञान एवं टेक्नालॉजी विभाग के पूर्व सलाहकार एवं भू-गर्भशास्त्री प्रो. एमएम कुरैशी ने बताया था कि झांसी का क्षेत्र 31 मि.मी. प्रतिवर्ष की दर से धंस रहा है। इसका कारण इस क्षेत्र का पृथ्वी की चुम्बकीय रेखा के नजदीक होना बताया गया था।

भूजल के अतिदोहन से शहरों के धंसने की अवधारणा को यदि हमारे देश के संदर्भ में देखा जाए तो स्थिति अच्छी नहीं है। देश के दो तिहाई से ज्यादा भूजल के भंडार खाली हो चुके हैं। वर्ष 2020 के ‘विश्वजल दिवस’ (22 मार्च) पर ‘वाटर-एड’ नामक संस्था ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि विश्वभर में हो रहे भूजल दोहन का एक चौथाई, 24.7 प्रतिशत भारत में होता है जो चीन एवं अमेरिका से भी ज्यादा है। वर्ष 2019 की ‘नीति आयोग’ की रिपोर्ट में देश के 21 शहरों में 2020 के आसपास भूजल समाप्त होना बताया गया है। हाल ही में ‘भारतीय प्रबंधन संस्थान-मुंबई,’ ‘जर्मन रिसर्च सेंटर फार जिओ साइंस’ एवं कैम्ब्रिज तथा मेथोडिस्ट विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार दिल्ली के ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र’ (एनसीआर) के लगभग 100 वर्ग किलोमीटर में भूमि धंसान का खतरा है।

शिकागो के नगर नियोजक प्रो. मेराडी गार्शिया ने अपने अध्ययन में बताया है कि भूजल की कमी, बढ़ती आबादी एवं कुछ अन्य प्राकृतिक कारणों से दुनियाभर में जमीन धंसने का खतरा पैदा हो गया है। इससे अगले 4-5 वर्षों में दुनिया के लगभग 63 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित होंगे। दुनिया की 19 प्रतिशत आबादी एवं 21 प्रतिशत ‘जीडीपी’ भी जमीन धंसने की घटनाओं से प्रभावित होगी। पिछले कुछ वर्षों में विश्व के 34 देशों में 200 स्थानों पर लोगों को जमीन धंसने की समस्या का सामना करना पड़ा है। अत: भविष्य में शहरों की सुरक्षा हेतु भूजल का अतिदोहन रोका जाना एवं वर्षा जल संवर्धन बढ़ाया जाना चाहिए। (सप्रेस)

महत्वपूर्ण खबर:पीएम-किसान की अगली किश्त सितंबर में आने की संभावना

Advertisements
Advertisement5
Advertisement