बसन्तकालीन गन्ने की उन्नत तकनीक
खेत की तैयारी
बसन्तकालीन गन्ने की रोपाई हेतु ऐसी रबी फसल का चयन करें जो खेत को जल्दी खाली करे। इस हेतु मटर, चना, अगेती सब्जियाँ उत्तम रहेंगी। खेत को अच्छी जुताई कर रोटावेटर चलाने के उपरांत चार फीट पर नालियां निकालें। अगर ड्रिप पद्धति अपनाना हो तो 5 फुट रखना श्रेयस्कर होगा, ध्यान रहे कि नालियां जितनी गहरी होंगी। सिंचाई एवं बाद में मिट्टी चढ़ाने में लाभ मिल सकेगा।
उत्तम प्रजातियां एवं बीज का चयन
मध्यप्रदेश हेतु को 238, को 239, को 118, को 119, को 86032 उत्तम सिद्ध हुई हैं। इन प्रजातियों के बीज का खेतों में निरीक्षण कर रोग एवं कीट मुक्त खेतों से ही चयन करें अच्छे बीज को आरक्षित करें जिससे खेत खाली करने के चक्कर में गुड़ या मिल में पिराई से बचा सकें। यह तो सर्वविदित है कि स्वस्थ गन्ना फसल केवल अच्छे बीज से ही प्राप्त की जा सकती है। अगर उपरोक्त जातियों के द्वारा संयंत्र में उपचारित हो सके तो रोग रहित बीज प्राप्त हो सकेगा। इसके लिये पास के गन्ना मिल से संपर्क करें।
परम्परागत बुआई
नालियों में एक आंख के या दो आंख के टुकड़े सीधे 12 इंच से डेढ़ फुट दूरी पर बीजोपचार उपरांत लगा सकते हैं। बुआई सूखी या पानी चलाकर कर सकते हैं। जहां तक हो सके 1 आंख का टुकड़ा लगायें। इसमें अधिक से अधिक 10 क्विंटल बीज लगेगा। खेत में लगाते समय ध्यान रहे कि आंख ऊपर रहे जिससे फुटान एकसा व जल्दी हो।
केन नोड तकनीक
यह भारतीय गन्ना अनुसंधान लखनऊ द्वारा विकसित प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग कर विपरीत मौसम के असर को कम से कम कर उच्च उत्पादन लेने की तकनीक है। यह कम से कम लागत की जैविक तकनीक इस सिद्धांत पर आधारित है कि गन्ना आंख का अंकुरण 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 5-6 दिन में हो जाता है। गन्ने के इस गुण को ध्यान में रखकर केन नोड तकनीक सुझाई गई है। गन्ने के आंख के टुकड़े काट लें।
इनको जैविक घोल में कम से कम आधा घंटा डुबो कर रखें। जैविक घोल गोमूत्र व गोबर से बनाया जाता है। 1 भाग गोबर व दो भाग गोमूत्र मिलाकर जिसमें चार भाग पानी मिलाया जाता है। आपको विदित है कि देशी गाय के गोमूत्र गोबर में आलोकिक शक्ति है। गांठों को घोल से निकाल कर गोबर या प्रेसमड से दबा दें। बीज के इस ढेर को गन्ने की सूखी पत्तियों या पॉलीथिन से ढंक दें जिससे नमी न उड़ सके व अंदर का तापक्रम बढ़ सके। घोल उपचारित दबी हुई आंखें 5-6 दिन में अंकुरित होने लगती हैं। इन अंकुरित केन नोडो को खेत में 1 से 1.5 फुट पर रोपण करें। रोपण के समय खेत में पर्याप्त नमी होना चाहिये। 15-20 दिन में आंखें प्रस्फुटित होकर बाहर आ जावेगी। इस तकनीक से बीज की मांग बहुत कम व गेप फिलिंग की आवश्यकता नहीं होती।
एसटीपी विधि : यह एक आंख के अंकुरण उपरांत रोपण की तकनीक है। इस हेतु सेटलिंग नर्सरी बुआई के एक माह पूर्व लगाई जाती है। एक आंख के टुकड़ों को उपचारित कर लगायें। क्यारियाँ बनाएं इसमें खाद व रेत भी मिलायें। गन्ने के टुकड़ों को लम्बवत लगायें। 1&1 मीटर में लगभग 500 टुकड़े लग जायेंगे। गन्ने के टुकड़ों को पलवार बिछाकर ढक दें व थोड़ी मिट्टी भुरक कर दबाएं। पानी का छिड़काव करते रहें पर जल भराव न होने दें। 3 सप्ताह में कलिकाएं फूट जाएंगी। कलिकाएं फटते समय ऊपर का आकर रोपण पूर्व सेटलिंग को बाविस्टीन (2 ग्राम/लीटर पानी) के घोल में डुबोकर लगाएं। इन्हें खेत में नालियों में 1.5 से 2 फुट की दूरी पर लगाएं। अंकुरित सबसे निचली पत्ती को छोड़कर ऊपर की पत्तियों की छंटाई करें।
इस विधि में बहुत कम बीज लगता है। बीज गन्ने से उत्पादित गन्नों का अनुपात 1:40 तक पाया गया है। इसकी बेड़ी उत्तम होती है। खाद एवं कृषि क्रियाएं सामान्य अनुशंसा अनुसार करें।
भरपूर खाद दें
- समस्त पद्धतियों में बसन्तकाल में उपज बढ़ाने हेतु भरपूर खाद दें। जितना उपलब्ध हो जैविक खाद कम्पोस्ट/वर्मीकम्पोस्ट कम से कम 2 टन/हेक्टर अवश्य दें।
- 4 टन प्रति हेक्टर पका प्रेसमड व 2 टन वगाज राख भी डालें।
- 5 क्विंटल/हे. सुपर फास्फेट बोनी पूर्व नालियों में बोयें। म्यूरेट ऑफ पोटाश 1.5 क्विंटल 3 भाग में बोते समय, 45 दिन बाद एवं मिट्टी चढ़ाते समय दें। नत्रजन अंकुरण/रोपण के समय व 30-45 दिन, हल्की मिट्टी एवं भारी मिट्टी चढ़ाते समय चार भागों में बांटकर 1 क्विंटल हर बार दें। ध्यान रहे 45 से 60 दिन तक पर्याप्त मात्रा दे देनी चाहिये जिससे भरपूर कल्ले फूट सकें। सूक्ष्मपोषी तत्वों का छिड़काव जमाव उपरांत, 45 दिन उपरांत एवं भरपूर बढऩ अवस्था में अवश्य करें।
- बोनी के साथ या जमाव उपरांत 2 किलो एजेटोबेक्टर, 2 किलो एजोस्प्रीलियम 4 किलो पीएसबी/हेक्टर अवश्य दें।
- बीजोपचार अवश्य करें।
- गन्ना बीज के टुकड़ों को रात भर चूने के पानी में डुबोकर रखें। वीटावैक्स पावर 250 ग्राम या 500 ग्राम बाविस्टीन को 250 लीटर पानी में मिलाकर उपचार करें।
- पानी के मान से घोल बनाकर गन्ना बीज को उपचारित करें। इससे शीतऋतु में भी कम तापक्रम के चलते भी अच्छा अंकुरण प्राप्त होगा।
गन्ने में सिंचाई
प्रारंभिक अवस्था में फव्वारा सिंचाई से अंकुरण श्रेष्ठ होता है। पॉली ट्रे या पॉलीबैग पौधों का रोपण सफल रहता है। गन्ना फसल में भरपूर उत्पादन हेतु टपक सिंचाई अपनाने से अधिक उपज, खाद और पानी की बचत होती है।
जल संरक्षण एवं खरपतवार की रोकथाम हेतु सूखी पत्तियों की पलवार बिछाना श्रेयस्कर है। इससे भूमि में जीवांश पदार्थ की भी वृद्धि होती है।