संपादकीय (Editorial)

फसलों का लेखा-जोखा

26 अगस्त 2021,  फसलों का लेखा-जोखा – कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है, देश में इसका लगभग 20 प्रतिशत योगदान रहता है। और कृषि क्षेत्र भारत की 60 प्रतिशत जनसंख्या को रोजगार प्रदान करता है, बीसवीं शताब्दी के उत्तराद्र्ध से कृषि क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिले जो कि देश की अर्थव्यवस्था के लिये शुभ संकेत हैं, खेती की उन्नत तकनीक व उन्नत जातियों का उत्पादन बढ़ाने में अहम योगदान रहा है, रसायनिक उर्वरकों व पीढक़नाशियों का भी सकारात्मक योगदान रहा है, परंतु अभी भी पीढक़ों द्वारा होने वाली हानि का आकलन एक अनुसंधान का विषय है, अभी हम इसका सिर्फ अनुमान ही लगाते हंै। पीढक़ों जिनमें कीट, रोगाणु, नींदा आदि सम्मिलित हैं, इनके द्वारा होने वाली हानि का सही-सही आकलन करने के लिये हमारे पास कोई सार्थक विधि व प्रक्रिया नहीं है, जिसकी वर्तमान परिस्थितियों में अत्यंत आवश्यकता है ताकि होने वाली हानि का सही मूल्यांकन कर सके। पूर्व वर्षों में पीला मोजेक का प्रकोप मध्य प्रदेश के उत्तरी जिलों में ही आता था परंतु अब इसका प्रकोप प्रदेश के दक्षिणी जिलों में भी देखा गया है। जो एक चिन्ता का विषय है यह और न फैल पाये इसके लिए सतत् निगरानी रखना हमारी बाध्यता हो गयी है।

यदि हम गांव को इकाई मानकर इसके प्रकोप व पहुंचने वाली हानि का लेखा-जोखा रखें तभी हमें ज्ञात हो पायेगा कि इसका प्रकोप किन-किन क्षेत्रों में आता है, कौन सी किस्में हैं जो इस बीमारी से सबसे अधिक प्रभावित हुई या पूर्णत: नष्ट हो गयी। खेत की किन परिस्थितियों ने इसके प्रकोप को प्रभावित किया। सोयाबीन का पीला मोजेक एक विषाणु द्वारा उत्पन्न रोग है जिसको रस चूसने वाला कीट सफेद मक्खी के नाम से जाना जाता है। एक पौधे से दूसरे पौधे में रोग को फैलाने में मदद करता है। इस प्रकार पीले मोजेक के प्रकोप के अध्ययन के साथ-साथ हमें सफेद मक्खी की गतिविधियों का भी लेखा-जोखा साथ में रखना होगा। ताकि हम सही निष्कर्ष निकाल सकें। अब इस प्रकार के आंकड़े एकत्रित कर, उनका बारीकी से अध्ययन करने के बाद निष्कर्ष निकाल कर आगामी वर्ष के लिये किसानों को सलाह देना आवश्यक हो गया है अन्यथा किसानों को वर्ष दर वर्ष इस प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ेगा तथा आर्थिक हानि सहनी पड़ेगी। प्राकृतिक आपदा से होने वाली हानि के आकलन की सार्थकता अब और भी बढ़ गयी है। क्योंकि आने वाले वर्षों में फसल बीमा योजना का किसानों का प्रचार-प्रसार बढ़ रहा है और अधिक से अधिक किसान इसके प्रति तभी आकर्षित होंगे जब प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली हानि का सही आकलन हो और किसान को उसका सही मुआवजा मिले। इस प्रकार की विपदाओं में मुआवजा उसका अधिकार हो न कि ‘एक बेचारा किसान’ कहकर उसे यह राहत राशि के रूप में दिया जाये। अब हमें प्राकृतिक आपदा से होने वाली हानि को रोकने तथा किसानों को आर्थिक हानि से बचाने के लिये नये सिरे से सोचना होगा।

Advertisement
Advertisement
Advertisements
Advertisement5
Advertisement