Crop Cultivation (फसल की खेती)

रबी फसलों के विषाणु जनित रोग व उनका समेकित नियंत्रण

Share

रबी फसलों के विषाणु जनित रोग व उनका समेकित नियंत्रण – विषाणु अति सूक्ष्मदर्शी अविकल्पी परजीवी होते हैं जो कि अत्यधिक संक्रामक एवं परपोषी विशिष्ट होते हैं। फसलों में विषाणु रोगों के प्रकोप से काफी नुकसान होता है। विषाणु रोगों का महत्व इसलिये भी अधिक है क्योंकि इनके रोगकारक विषाणु विस्तृत परपोषी दायरा रखते हैं तथा कई फसलों पर रोग उत्पन्न करते हैं साथ ही इनका प्रसारण भी सुगमता से कीटों द्वारा, यांत्रिक विधियों व अन्य माध्यम से हो जाता है । रबी फसलों में होने वाले प्रमुख विषाणु जनित रोग इस प्रकार है:-

मिर्च का चुर्रार्मुरा रोग

विषाणुजनित इस रोग के कारण तम्बाकू, टमाटर, मिर्च, पपीता की फसलें प्रभावित होती है। यह रोग सफेद मक्खी (बेमेसिया टैवेकाई) द्वारा फैलता है। यह रोग सफेद मक्खी, माइट्स आदि के द्वारा पौधों का रस चूसने के दौरान विषाणुओं के द्वारा होता है। सफेद मक्खी द्वारा विषाणुओं का प्रकोप होने पर पत्तियाँ नीचे की ओर मुड़ती है जबकि माइट्स द्वारा विषाणुओं के प्रकोप पर पत्तियाँ ऊपर की ओर मुड़ जाती है। रोग के प्रमुख लक्षण बौनापन, पत्तियों में सिकुडऩ व कुंचन का दिखना है। रोगग्रस्त पौधों की पत्तियों में मोटलिंग, अत्याधिक शाखाओं का निकलना, वृद्धि में रूकावट एवं गुच्छों में मुड़ी हुई पत्तियॉं दिखती है।

रोग से बचाव हेतु रोग ग्रसित पौधों के शीर्ष भाग काट कर जला दें तथा सफेद मक्खी नामक कीट नियंत्रण हेतु पौधरोपण के 30 दिन बाद सर्वांगी कीटनाषी इमिडाक्लोप्रिड या एसिटामिप्रिड की 125 प्रति मि.ली. हे. छिड़काव करें साथ ही प्रत्येक छिड़काव के समय सल्फेक्स 500 ग्राम प्रति हे. के मान से मिश्रित करें।
आलू में विषाणु जनित मोजेक रोग आलू में कई प्रकार के मोजेक रोग लगते है जो विभिक्त प्रकार के विषाणुओं द्वारा फैलते हैं जैसे – लेटेण्ट या माइल्ड मोजेक, झुर्रीदार एवं पत्ती मोजेक एवं अति मृदु मोजेक इत्यादि। ये मुख्यत: एफिड्स, जैसिड एवं सफेद मक्खी द्वारा फैलाये जाते हैं। इसके प्रभाव से पत्तियों में अन्तरशिरा पितिदार हरीमहीनता, अर्थात् पित्तियों का पडऩा, पत्तियों के शिरा एवं किनारों का मुडऩा, झुर्रीदार होना, पौधों का घौना रह जाना इत्यादि लक्षण प्रकट होते है।
बचाव के लिए प्रभावित पौधों के दिखाई पड़ते ही कंद सहित उखाड़कर नष्ट कर दें। विषाणु रोग फैलाने वाले कीटों जैसे एफिड, जैसिड एवं सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु जनवरी माह से पूर्व आवश्यकतानुसार थायमेथाक्जेम 25 डब्ल्यूडीजी की 150 ग्राम प्रति हे. के मान से छिड़काव करें। साथ ही प्रत्येक छिड़काव के समय सल्फेक्स 1000 ग्राम मिश्रित करें।

पपीता का पर्ण कुंचन रोग

रोगग्रस्त पौधे की पत्तियाँ विकृत हो जाती है तथा इनकी शिराओं का रंग पीला पड़ जाता है जो इस रोग का सामान्य लक्षण है। प्रभावित पत्तियाँ नीचे की तरफ मुड़ जाती है जिससे वह उल्टे प्याले के समान दिखाई पड़ती है। रोगग्रस्त पत्तियों की शिरायें व शिरिकायें नीचे से मोटी एवं गहरे रंगी की हो जाती है पत्तियॉ मोटी, भंगुर व ऊपरी सतह पर अतिवृद्धि के कारण खुरदरी हो जाती है संक्रमित पौधे में पुष्पक्रम या न के बराबर आते है व फल भी कम तथा छोटे लगते हैं। रोग नियंत्रण हेतु रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर जला दें एवं रोगवाहक कीट सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु एसिटामिप्रिड की 125 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर के मान से छिड़काव करें ।

विषाणु जनित रोगों के समेकित नियंत्रण हेतु उपाय

  • खेत की सफाई समय पर करें, पूर्व फसल के अवशेषों को एकत्र कर नष्ट करें, खेत के आस-पास खरपतवारों को न उगने दें। समय पर निंदाई करने से विषाणु जनित रोगों से भी बचा जा सकता है।
  • सभी प्रकार की सब्जियों में रसचूसक कीट सफेद मक्खी, थ्रिप्स आदि से बचाव हेतु पीले, नीले चिपचिपे प्रपंचों को 150 प्रति हेक्टेयर के मान से लगाएं।
  • आलू में विषाणु जनित मोजेक रोग नियंत्रण हेतु खेत की प्रथम/किनारे की लाइन में माहू (वाहक कीट) का निरीक्षण कर प्रकोपित पौधों की टहनियों का तोड़कर नष्ट करें। इसी प्रकार पीला मोजेक रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट करें।
  • रस चूसक कीटों से बचाव हेतु बीज को बोने के पहले इमिडाक्लोप्रिड 600 एफएस (48 प्रतिशत) अथवा थायोमेथोक्सेम 70 डब्ल्यू.पी. की 3 ग्राम मात्रा द्वारा प्रति कि.ग्रा. बीज का उपचार कर बोयें इससे 25-30 दिनों तक रसचूसक कीटों का प्रकोप नहीं होता और उस समय तक प्राकृतिक शत्रुओं की संख्या बढ़ जाती है।
  • सब्जियों में नीम का तेल अथवा नीम अर्क 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने में रसचूसक कीटों व पत्तीभक्षक कीटों के प्रकोप से बचा जा सकता है।
  • व्यापक आधार वाले कीटनाशियों जैसे-मोनोक्रोटोफॉस का उपयोग न करें इससे हानिकारक कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं की संख्या कम हो जाती है। पाइरेथ्राइड का प्रकोप फसल काल में केवल एक बार अंतिम समय पर करें। सिंथेटिक पाइरथ्राइड के अधिक उपयोग से सफेद मक्खी का प्रकोप और अधिक उग्र हो जाता है।
Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *