उड़द की खेती
भूमि की तैयारी:- उड़द सभी प्रकार की भूमि मेंं (अधिक रेतीली भूमि को छोड़कर) सफलता पूर्वक पैदा की जा सकती है। परन्तु हल्की रेतीली, दोमट या मध्यम प्रकार की भूमि में जिसमें पानी का निकास अच्छा हो, उड़द के लिये अधिक उपयुक्त होती है। पी.एच.मान 7 से 8 के बीच वाली भूमि उड़द के लिये उपयुक्त होती है। अम्लीय या क्षारीय भूमि उड़द की खेती के लिये उपयुक्त नहीं है। अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिये उन्नत जाति के बीजो के चयन के साथ खेत की तैयारी भी नई तकनीक से करना चाहिये।
बीजोपचार एवं बीज दर :- बोनी से पहले बीज को फफूंदनाशक दवा कार्बेन्डाजि़म एवं मेनकोजेब से उपचारित अवश्य कर लें। दो ग्राम फफूंद नाशक दवा प्रति किलो की दर से बीज को उपचारित करें। उपचारित बीज में साथ ही राइजोबियम कल्चर (1 पैकेट/10 कि.ग्रा.) से उपचारित करना चाहिए। 20 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करना चाहिए।
बोने की विधि:- जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह में बोनी करना चाहिये। बोनी सीडड्रिल से कतारों में करें। कतारों की दूरी 30 से.मी. तथा पौधों की दूरी 10 से.मी. रखें एवं बीज 4-6 से.मी. गहराई में बोयें।
खाद एवं रसाययनिक खाद:- साधारण तया नाइट्रोजन 20 कि.ग्रा. तथा 50 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बोते समय उपयोग में लाये। उपरोक्त दी गई मात्रा की पूर्ति 100 किलो डी.ए.पी. प्रति हेक्टेयर देने से हो जाती है। मिट्टी परीक्षण करवा कर गंधक की मात्रा जान लेे। गंधक की कमी वाले क्षेत्र में 20 कि.ग्रा. गंधक प्रति हेक्टेयर दें। इसी तरह मिट्टी परीक्षण में यदि पोटाश की कमी पाई जाती है तो 20 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर दे। दलहनी फसलों में गंधक युक्त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, अमोनिया सल्फेट जिप्सम आदि का उपयोग करना चाहिये।
निंदाई- गुडाई:- अधिक उत्पादन के लिये खेत को खरपतवार से मुक्त रखना अति आवश्यक है यह 20-50 प्रतिशत तक क्षति पहुंचा सकते है। नींदा नाशक पेन्डीमिथालीन 30 ई सी$ इमेजाथापर 2 ई सी को 0.75 कि. ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के पूर्व तथा क्यूजालोफाप इथाइल 50 ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से बोनी के 25-30 दिन बाद छिड़ाकाव करने से खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सकता है। आवश्यकतानुसार 2-3 निंदाई करना चाहिये। खेत को कम से कम 45 दिन तक खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिये।
उड़द दलहन फसल होने के कारण भूमि की उर्वरता को भी बढ़ाती है एवं इसकी वानस्पतिक वृद्धि शीघ्र होने के कारण यह खरपतवारों को पनपने नहीं देता है। प्रदेश के किसानों द्वारा देशी किस्मों के बीज का उपयोग करने का कारण उत्पादन बहुत ही कम होता है लगभग 2-4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर। उन्नत जातियों में 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देने की क्षमता है। उड़द खरीफ ऋतु में एकल या अंतरवर्तीय फसल के रूप में ली जाती है। |
उन्नत जातियां | ||
किस्में | पकने की अवधि | उपज (क्वि./हे.) (दिनों में) |
एलबीजी-20 | 65-70 | 10-Dec |
जे.यू.-86 | 65 | Dec-14 |
जे.यू.-2 | 70 | 10 |
जे.यू.-3 | 70-75 | 10-Dec |
पंत उर्द-30 | 70 | Dec-15 |
पंत उर्द-31 | 70-75 | 10-Dec |
आजाद उर्द-3 | ||
(के यू 96-3) | 73 | 10-Dec |
एन यू एल-7 | 70 | Nov-13 |
शेखर-3 | 75-80 | Dec-13 |
इंदिरा उर्द प्रथम | 70-75 | 12 |
उत्तरा | 73-75 | Nov-13 |