जैव उर्वरकों के प्रयोग से बढ़ेगा कोदो-कुटकी का उत्पादन
- डॉ. उमेश कुमार पटेल, डॉ. व्ही.एन. खुणे
- डॉ. एस. के. थापक , डॉ. आर. एल. साहू
- डॉ. निशा शर्मा , श्रीमती सोनिया खलखो
- कृषि विज्ञान केन्द्र, अंजोरा, दुर्ग (छ.ग.)
- मो. : 9424281260
19 मार्च 2023, जैव उर्वरकों के प्रयोग से बढ़ेगा कोदो-कुटकी का उत्पादन –
कोदो-कुटकी की खेती
ये फसलें गरीब एवं आदिवासी क्षेत्रों में उस समय लगाई जाने वाली खाद्यान फसलें हैं जिस समय पर उनके पास किसी प्रकार अनाज खाने को उपलब्ध नहीं हो पाता है। ये फसलें अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितम्बर के प्रारंभ में पककर तैयार हो जाती है जबकि अन्य खाद्यान फसलें इस समय पर नहीं पक पाती और बाजार में खाद्यान का मूल्य बढ़ जाने से गरीब किसान उन्हें नहीं खरीद पाते हैं। अत: उस समय 60-80 दिनों में पकने वाली कोदो-कुटकी, सावां एवं कंगनी जैसी फसलें महत्वपूर्ण खाद्यान्नों के रूप में प्राप्त होती हंै।
भूमि की तैयारी
ये फसलें प्राय: सभी प्रकार की मृदा में उगाई जा सकती हंै। जिस मृदा में अन्य कोई धान्य फसल उगाना संभव नहीं होता वहां भी ये फसलें सफलता पूर्वक उगाई जा सकती हैं। उतार-चढ़ाव वाली, कम जल धारण क्षमता वाली, उथली सतह वाली आदि कमजोर किस्म में ये फसलें अधिकतर उगाई जा रही हंै। हल्की मृदा में जिसमें पानी का निकास अच्छा हो इनकी खेती के लिये उपयुक्त होती है। बहुत अच्छा जल निकास होने पर लघु धान्य फसलें प्राय: सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है। मृदा की तैयारी के लिये गर्मी की जुताई करें एवं वर्षा होने पर पुन: खेत की जुताई करें या बखर चलायें जिससे मिट्टी अच्छी तरह से भुरभुरी हो जायें।
बीज का चुनाव एवं बीज की मात्रा
मृदा की किस्म के अनुसार उन्नत किस्म के बीज का चुनाव करें। हल्की पथरीली व कम उपजाऊ भूमि में जल्दी पकने वाली जातियों का तथा मध्यम गहरी व दोमट मृदा में एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में देर से पकने वाली जातियों की बोनी करें। लघु धान्य फसलों की कतारों में बुवाई के लिये 8-10 किलोग्राम बीज तथा छिटकवां बुआई के लिये 12-15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। लघु धान्य फसलों को अधिकतर छिटकवां विधि से बोया जाता है। किन्तु कतारों में बोनी करने से निंदाई गुड़ाई में सुविधा होती है और उत्पादन में लगभग 15-20 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
बोनी का समय, बीजोपचार एवं बोने का तरीका
वर्षा आरंभ होने के तुरंत बाद लघु धान्य फसलों की बोनी कर दें। शीघ्र बोनी करने से उपज अच्छी प्राप्त होती है एवं रोग, कीट का प्रभाव कम होता है। कोदो में सूखी बोनी मानसून आने के दस दिन पूर्व करने पर उपज में अन्य विधियों से अधिक उपज प्राप्त होती है। जुलाई के अंत में बोनी करने से तना मक्खी कीट का प्रकोप बढ़ता है।
बुआई से पूर्व बीज को मेन्कोजेब या थायरम दवा 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीजोपचार करें। ऐसा करने से बीज जनित रोगों एवं कुछ हद तक मिट्टी जनित रोगों से फसल की सुरक्षा होती है। कतारों में बुआई करने पर कतार से कतार की दूरी 20-25 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 7 से.मी. उपयुक्त पाई गई है। इसकी बोनी 2-3 से.मी. गहराई पर की जाये। कोदो में 6-8 लाख एवं कुटकी में 8-9 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर हो। कोदो एवं कुटकी मे बीजोपचार हेतु प्रयुक्त जैव उर्वरक निम्न है।
उन्नतशील जातियाँ
कोदो – जवाहर कोदो 48, जवाहर कोदो 439, जवाहर कोदों 41, जवाहर कोदो 62, जवाहर कोदो 76
कुटकी- जवाहर कुटकी -1, जवाहर कुटकी -2, जवाहर कुटकी -8
खाद एवं उर्वरक का उपयोग
प्राय: किसान इन लघु धान्य फसलों में उर्वरक का प्रयोग नहीं करते हैं। किंतु कुटकी के लिये 20 किलो नत्रजन 20 किलो स्फुर प्रति हेक्टे. तथा कोदों के लिये 40 किलो नत्रजन व 20 किलो स्फुर प्रति हेक्टेयर का उपयोग करने से उपज में वृद्धि होती है। उपरोक्त नत्रजन की आधी मात्रा व स्फुर की पूरी मात्रा बुवाई के समय एवं नत्रजन की शेष आधी मात्रा बुवाई के तीन से पांच सप्ताह के अन्दर निंदाई के बाद दें। बुवाई के समय एजोटोबैक्टर 2-3 किग्रा. एवं पी.एस.बी. जैव उर्वरक 4 से 5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 100 किग्रा. मिट्टी अथवा कम्पोस्ट के साथ मिलाकर प्रयोग करें।
निंदाई गुड़ाई
बुवाई के 20-30 दिन के अन्दर एक बार हाथ से निंदाई करेें तथा जहां पौधे न उगे हों वहां पर अधिक घने ऊगे पौधों को उखाडक़र रोपाई करके पौधों की संख्या उपयुक्त करें। यह कार्य 20-25 दिनों के अंदर कर ही लें। यह कार्य पानी गिरते समय सर्वोत्तम होता है।
फसल की कटाई गहाई एवं भंडारण
फसल पकने पर कोदों व कुटकी को जमीन की सतह के उपर कटाई करें। खलियान में रखकर सुखाकर बैलों से गहाई करें। उड़ावनी करके दाना अलग करें। रागी, सांवा एवं कंगनी को खलिहान में सुखाकर तथा इसके बाद लकड़ी से पीटकर अथवा पैरों से गहाई करें। दानों को धूप में सुखाकर (12 प्रतिशत) भण्डारण करें।
भण्डारण करते समय सावधानियाँ
- भण्डार गृह के पास पानी जमा नहीं हो।
- कोठी, बण्डा आदि में दरार हो तो उन्हें बंदकर दें।
- कोदों का भण्डारण कई वर्षों तक किया जा सकता है, क्योंकि इनके दानों में कीट का प्रकोप नहीं होता है। अन्य लघु धान्य फसल को तीन से पांच वर्ष तक भण्डारित किया जा सकता है।
पी.एस.बी. ( स्फुर घोलक जीवाणु ) कल्चर
मृदाओं में रासायनिक स्फुर उर्वरकों की दी गई मात्रा का प्राय: 5 से 25 प्रतिशत भाग ही पौधे उपयोग कर सकते है। स्फुर उर्वरकों की शेष मात्रा मृदा के अघुलनशील अवस्था में बदल कर पौधों के लिये अनुपयोगी हो जाती है। ऐसी अवस्था में असहजीवी स्फुर घोलक जीवाणु जो पी.एस.बी. (फास्फेट सोल्युबिलाइजिंग बेक्टीरिया) जैविक उर्वरक के नाम से बाजार में उपलब्ध है। यह जीवाणु कल्चर अघुलनशील स्फुर को घोलकर पौधों को उपलब्ध कराने की क्षमता रखता है। शोध परिणामों से यह देखा गया है कि स्फुर के विभिन्न स्तरों की मृदाओं में पी.एस.बी. के प्रयोग से 3 से 10 प्रतिशत तक फसल की उपज में वृद्धि प्राप्त की जा सकती है। खरीब, रबी, तथा ग्रीष्मकाल में उगने वाली प्राय: सभी फसलों में इनका प्रयोग लाभप्रद होता है।
पी.एस.बी. के संबंध में आवश्यक बातें
- कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में किये गये शोध परिणामों से यह स्पष्ट है कि जल भराव वाली धान की अनाक्सीकृत मृदाओं के लिये बेसिलस पोलिमिक्सा से निर्मित पी.एस.बी. सर्वोत्तम रहती है।
- आक्सीकृत मृदाओं (जल भराव रहित खेत) के लिये स्यूडोमोनास सिट्रयेटा से निर्मित पी.एस.बी. का उपयोग अधिक लाभप्रद।
- अम्लीय मृदाओं में पी.एस.बी. उपयोग करने की प्राय: सिफारिश नहीं की जाती है।
पी.एस.बी. से प्रमुख लाभ
- डोरसा एवं कन्हार मृदाओं में यह अघुलनशील स्फुर (फास्फेट) को घोलकर फसल के लिये स्फुर की उपलब्धता बढ़ाता है।
- मृदा में सेन्द्रिय पदार्थो की पर्याप्त उपलब्धता से पी. एस. बी. द्वारा फास्फेट घुलन क्रिया अधिक होती है तथा राइजोबियम युक्त ढेंचा आदि हरी खाद के उपयोग से भी पी.एस.बी. की फास्फेट घोलक क्रिया की गति बढ़ती है।
- इस कल्चर का उपयोग बीज या जड़ों में प्रयोग करना अधिक लाभप्रद होता है।
- एक पैकेट पी.एस.बी. कल्चर जिसकी कीमत लगभग 10 से 15 रूपये होती है एक एकड़ में बोए जाने वाले बीजों के लिए एक पैकेट तथा एक एकड़ रोपाई हेतु जड़ों के निवेशन के लिए 2 पैकेट पी.एस.बी. कल्चर पर्याप्त होता है और इससे लगभग 20 से 25 किलो तक सिंगल सुपर फास्फेट की बचत करता है।
- यह कल्चर मृदा में घुलनशील स्फुर के स्तर को प्राय: गिरने नहीं देता।
- वायुमण्डलीय नत्रजन इकट्ठा करने वाले जीवाणु जैसे राइजोबियम, एजोस्पाइस्लिम आदि की क्रियाशीलता को पी.एस.बी. बढ़ा देता है।
एजोस्पाइस्लिम
धान, कोदों, कुटकी एवं छोटे बीज वाली फसलों के लिए उपयुक्त है। यह असजीवी जीवाणु मृदा में स्वतंत्र रूप से निवास करते हुये वायुमण्डलीय नत्रजन को इक_ा कर पौधों को प्रदान करता है तथा यह कल्चर उन फसलों के लिये विशेष रूप से उपयुक्त है जिन्हें जल भराव वाली या अधिक नमी युक्त मृदा में उगाया जाता है। एजोस्पाइस्लिम के प्रयोग से 10 प्रतिशत तक फसल की उपज में वृद्धि प्राप्त की जा सकती है। धान रोपाई से पहले एजोस्पाइस्लिम और पी.एस.बी. के घोल से रोपा धान की जड़ को निवेशित करना मृदा निवेशन की अपेक्षा बहुत अधिक लाभप्रद है। जड़ निवेशन विधि का पी.एस.बी. एवं एजोस्पाइस्लिम कल्चर से निवेशन करना चाहिए यदि किसी कारणवश बुवाई के समय कल्चर का उपयोग नहीं कर पाये है तो बियासी के समय मृदा निवेशन हेतु कल्चर का प्रयोग भी लाभप्रद पाया गया है।
एजोटोबेक्टर जीवाणु
यह असहजीवी जीवाणु मृदा में स्वतंत्र रूप से निवास करता है तथा राइजोबियम प्रभाव के कारण राइजोस्फीयर क्षेत्र में जड़ों की सक्रियता के कारण इसकी वृद्धि होती है। यह वायुमण्डल की नत्रजन को स्थिर करके पौधों के लिये इस तत्व की उपलब्धता बढ़ाते है। इसके साथ-साथ यह जीवाणु इन्डोल एसिटिक एसिड, जिब्रेलिक एसिड जैसे वृद्धि हार्मोन्स आदि को उत्सर्जित करके बीजों के अंकुरण एवं जमाव पर अच्छा प्रभाव डालते है। खरीफ सीजन में तिल, टमाटर, भिन्डी, तोरई, लौकी, कद्दू, परवल, बैंगन, मिर्च तथा धान, कोदों, कुटकी एवं छोटे बीज वाली फसलों के लिए उपयुक्त वे फलीय फसलें जिन्हें कम नमी वाली भूमि में उगाया जा सकता है । इसे अन्न कुल की फसलों में प्रयोग करते हैं।
पी.एस.बी. एवं अन्य जीवाणु उर्वरक उपयोग
- छिडक़ाव विधि से बोये फसल के लिए 5 से 10 ग्राम कल्चर प्रति किलो बीज एक एकड़ रोपा फसल की रोपाई से पहले जड़ों को 300 ग्राम कल्चर का घोल बनाकर निवेशित करें।
- कल्चर उपचारित बीजों को छाया में सुखायें तथा शीघ्र बुआई करें।
- फसल के लिए निर्धारित कल्चर उपयोग।
- कल्चर पैकेट पर अंकित प्रयोग करने की अंतिम तिथी के अनुसार प्रयोग करें।
- कल्चर के पैकेट को ठंडे स्थान पर रखें।
पी.एस.बी. के साथ राइजोबियम या पी.एस.बी. के साथ एजोस्पाइस्लिम या पी.एस.बी. के साथ एजोटोबेक्टर जीवाणु उर्वरकों को साथ-साथ प्रयोग करना लाभदायक है।
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