फसल की खेती (Crop Cultivation)

गुगल, शताबर और अश्वगंधा औषधि के पौधे लगाकर बहुत खुश है बामसोली के किसान

22 जनवरी 2022, मुरैना ।  गुगल, शताबर और अश्वगंधा औषधि के पौधे लगाकर बहुत खुश हैं बामसोली के किसान – जिला मुरैना से 90 किलोमीटर दूर दूरस्थ ग्राम बामसौली तहसील सबलगढ़ के किसान श्री धीरेन्द्र सिंह पुत्र स्व. श्री रामपाल सिंह जादौन ने असिंचित एवं वंजर भूमि में सोना ऊगाया कहावत को चरितार्थ किया हैं। धीरेन्द्र सिंह ने बताया कि मैं ऐसी खेती कर रहा हूं, जिसमे पानी बहुत कम लगे, बार-बार की मेहनत भी कम लगे। क्योंकि मेरे खेत के पास पानी की उपलब्धता बहुत ज्यादा नही है, साथ ही मजदूर भी आसानी से नहीं मिलते। लेकिन मन में यह भी था कि खेती फायदे का सौदा भी बने। इसी बीच इस बारे में मेरी चर्चा सुजागृति समाजसेवी संस्था के श्री जाकिर हुसैन से हुई। उन्होंने मार्गदर्शन दिया कि यदि थोड़ा धैर्य रखें और मेरी बात पर भरोसा रखें तो गुग्गल और सतावर का रोपड़ अपने खेत में कर इस जमीन के भाग्य बदल सकते हैं। यह एक ऐसी प्रजाति है, जिसे संरक्षण की जरूरत है। गुग्गल में 5, 6 साल बाद गोंद आना शुरू होगा और उसकी कीमत इतनी होती है कि 5 साल का इंतजार करना भी आपको फायदे का सौदा ही साबित होगा। साथ ही शतावर की फसल से 2 साल बाद ही आमदनी शुरू हो जायेगी। इसके अतिरिक्त श्री जाकिर हुसैन ने बताया कि गुग्गल और शतावर के बीच में जो जगह है, उसमें अश्वगंधा भी लगा ले तो उससे 6 माह में ही आपकी आमदनी शुरू हो जाएगी। उन्होंने कहा कि बस थोड़ा धैर्य और थोड़ा विश्वास रखना होगा। अपने खेत की सुरक्षा के लिए फेंसिंग और निगरानी की व्यवस्था करना होगी। ताकि गुग्गल, शतावर और अश्वगंधा को जंगली जानवरों के नुकसान से बचाया जा सके।

श्री ज़ाकिर हुसैन ने कहा हमारी संस्था राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड के सहयोग से गूगल और जैव विविधता संरक्षण आजीविका परियोजना के तहत खेतों में गूगल सताबर लगाने के लिये यह सब पौधे हम उपलब्ध कराएंगे। इनसे होने वाले उत्पादों के विक्रय में भी सहयोग करेंगे। ये विचार किसान श्री धीरेन्द्र सिंह जादौन को पसंद आया और उन्होंने अपने ग्राम बामसौली के बालाजी मंदिर के पास अपनी एक हेक्टेयर जमीन में गुग्गल लगाने का निर्णय जून 2021 में लिया। उसके बाद मई 2021 में शतावर और नवंबर 2021 में अश्वगंधा भी लगाई। इनके लगाने के बाद मात्र एक बार पानी दिया, उसके बाद से ये सब पौधे आज निकल आये है तथा अच्छी स्थिति में है। इस कम पानी वाले इलाके में आसपास के बहुत सारे किसान औषधीय खेती करने के लिए लालाइत हैं। वे सभी औषधी तथा संपर्क बनाए हुए हैं। निश्चित रूप से इसका सकारात्मक परिणाम देख कर औषधीय पौधों की खेती करेंगे। जिससे लुप्त होती हुई प्रजाति तो बचेगी ही साथ ही साथ कंपनियों की डिमांड भी पूरी होगी तथा किसानों की आय तीन से चार गुनी बढ़ जाएगी, क्योंकि आज के समय में गूगल गौद का भाव 2 हजार, शतावर 300, अश्वगंधा की जड़ 700 रूपये किलो चल रहा है। 10 लाख रूपये की आय होगी साथ ही साथ पर्यावरणीय लाभ होगा। क्योंकि यह फसल में जैविक तरीके से पैदा की जा रही हैं। जिससे खेत में कीटनाशक दवा व रासायनिक खाद ड़ालने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जिससे जमीन भी अच्छी रहेगी। किसान श्री धीरेंद्र सिंह की सफलता में सुजागृति समाजसेवी संस्था मुरैना, राष्ट्रीय पादप बोर्ड, आयूष मंत्रालय भारत सरकार तथा तकनीकी सहयोग के लिए आरसीएफसी जबलपुर का महत्त्वपूर्ण सहयोग व मार्गदर्शन रहा है।

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