फसल की खेती (Crop Cultivation)

हरी खाद के लिए सनई या ढैंचा बोयें और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दें

30 अप्रैल 2024, टीकमगढ़: हरी खाद के लिए सनई या ढैंचा बोयें और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दें – कृषि विज्ञान केंद्र, टीकमगढ़ के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी.एस. किरार, वैज्ञानिक, डॉ. एस.के. जाटव, डॉ. आर.के. प्रजापति एवं डॉ. आई.डी. सिंह द्वारा द्वारा किसानों को प्राकृतिक खेती हेतु हरी खाद के लिए सनई या ढैंचा की फसलों की बुवाई करें। हरी खाद के लिए हमारे पूर्वज भी सनई या ढैंचा की फसल बोनी कर भूमि की उर्वराशक्ति और उत्पादकता को बढ़ाते थे। हमारे यहाँ कृषि में दलहनी फसलों का महत्व सदैव रहा है। दलहनी एवं गैर दलहनी फसलों को उनके वानस्पतिक वृद्धि के समय जुताई कर पौधों को सड़ने (अपघटन) के लिए मिट्टी में दबाना ही हरी खाद कहलाता है। इससे मृदा उर्वरता एवं उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है। ये फसले अपनी जलग्रांन्थियों में उपस्थित सहजीवी जीवाणुओं द्वारा वायुमंडल में उपस्थित नत्रजन को सोखकर भूमि में एकत्र करती हैं।  हरी खाद के लिए प्रयुक्त होने वाली प्रमुख फसले दलहनी फसलों में ढेंचा, सनई, उर्द, मूँग, अरहर, चना, मसूर, मटर, लोबिया, मोठ, खेसारी तथा कुल्थी मुख्य हैं। लेकिन जायद में हरी खाद के रूप में अधिकतर सनई ऊँचा, उर्द एवं मूँग का प्रयोग ही प्राय: अधिक होता है।

हरी खाद के लिए फसलों में निम्न गुणों का होना आवश्यक है –

दलहनी फसलों की जड़ों में उपस्थित सहजीवी जीवाणु ग्रंथियाँ (गाँठे) वातावरण में युक्त नाइट्रोजन को यौगिकीकरण द्वारा पौधों को उपलब्ध कराती हो।

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फसल शीघ्र वृद्धि करने वाली हो। हरी खाद के लिए ऐसी फसल होनी चाहिए जिसमें तना, शाखाएँ और पत्तियों कोमल एवं अधिक हों, ताकि मिट्टी में शीघ्र अपघटन होकर अधिक से अधिक जीवांश तथा नाइट्रोजन मिल सके।

चयनित फसलों मूसला जड़ वाली होनी चाहिए ताकि गहराई से पोषक तत्वों का अवशोषण हो सके।

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हरी खाद के लाभ

हरी खाद केवल नत्रजन व कार्बनिक पदार्थों का ही साधन नहीं है बल्कि इससे मिट्टी में कई पोषक तत्वों की पूर्ती भी होती है।

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हरी खाद के प्रयोग से मृदा की भौतिक दशा में सुधार होता है जिससे वायु संचार अच्छा होता है एवं जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है।

अम्लीयता / क्षारीयता में सुधार होने के साथ ही मृदा क्षरण भी कम होता है।

मृदा में हरी खाद के प्रयोग से मृदा में सूक्ष्मजीवों की संख्या एवं क्रियाशीलता बढ़ती है तथा मृदा की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है।

हरी खाद के प्रयोग से मृदा से पोषक तत्वों की हानि भी कम होती है।

हरी खाद के प्रयोग से मृदा जनित रोगों में कमी आती है।

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यह खरपतवारों की वृद्धि भी रोकने में सहायक है।

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