फसल की खेती (Crop Cultivation)

शाही अनाज राजगिरा

शाही अनाज राजगिरा – यह पौष्टिकता के मामले में कई अनाजों से बेहतर है। गेहूं व चावल में जितनी प्रोटीन, कैल्शियम, वसा व आयरन की मात्रा पाई जाती है, उससे ज्यादा राजगिरा में होती है। राजगिरा में दूध के मुकाबले दोगुना कैल्शियम होता है। यह ब्लड कोलेस्ट्राल रोकने में मददगार है। राजगिरा व गेहूं के आटे को मिला कर बनी रोटी को एक पूर्ण भोजन माना जाता है। इसके दानों को फुला कर कई तरह की खाने की चीजें तैयार की जाती है। इससे बने लड्डू लोग बहुत पसंद करते हैं। इसके अलावा बेकरी में तैयार चीजें जैसे बिस्कुट, केक, पेस्ट्री वगैरह भी इस से बनाए जाते हैं। इसकी पत्तियों में औक्जलेट व नाइट्रेट की मात्रा कम होने की वजह से यह एक ताकतवर व अच्छी तरह पचने वाला हरा चारा माना जाता है।

राजगिरा की खेती की जानकारी : राजगिरा का बीज काफी छोटा होता है। इसके लिए खेत को अच्छी तरह जुताई करके तैयार करें। खेत में ढेले नहीं हो। इसकी बोआई अक्टूबर के आखिरी हफ्ते से नवंबर के पहले पखवाड़े तक करना ठीक रहता है। उन्नत किस्में : आरएमए 4 व आरएमए 7 है। बोआई के लिए 15 से 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर काफी होता है। बीज बिल्कुल हलका व बारीक होता है, इसलिए बीज में बारीक मिट्टी मिला कर बोआई करने से बीज की मात्रा काबू में रहेगी। कतार से कतार की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर रखें और बीजों को 1.5 से 2.0 सेंटीमीटर गहरा बोएं।

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खाद व उर्वरक : अच्छी सड़ी हुई 8-10 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के 1 महीने पहले कम से कम 3 साल में 1 बार जरूर डालें। अच्छी फसल के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन व 40 किलोग्राम फास्फोरस दें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फास्फोरस की पूरी मात्रा बोआई के समय डालें। बची नाइट्रोजन की आधी मात्रा 2 भागों में बांट कर पहली व दूसरी सिंचाई के साथ दें।

सिंचाई : राजगिरा को 4-5 सिंचाइयों की जरूरत होती है। बोआई के बाद पहली सिंचाई 5-7 दिनों बाद और बाद में 15 से 20 दिनों के अंतर पर जरूरत के हिसाब से करें।

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निराई-गुड़ाई : खरपतवार नियंत्रण के लिए बोआई के 15-20 दिनों बाद पहली और 35 से 40 दिनों बाद दूसरी निराई गुड़ाई करें। अगर पौधे ज्यादा हों तो पहली निराई के साथ बेकार के पौधों को निकाल कर पौधों के बीच की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर कर दें।

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कटाई : फसल 120 से 135 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। पकने पर फसल पीली पड़ जाती है। समय पर कटाई नहीं करने पर दानों के झडऩे का खतरा बना रहता है। फसल को काटते व सुखाते समय ध्यान रखें कि दानों के साथ मिट्टी न मिले।

उपज : राजगिरा की औसत उपज 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

राजगिरा को रामदाना या चौलाई भी कहते हैं। अंग्रेजी भाषा में राजगिरा को ऐमरंथ ग्रेन कहते हैं। राजगिरा की खेती खासतौर से उत्तर पश्चिमी हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है, लेकिन अब देश के कई भागों में इसे बोया जाता है। इसकी खेती गुजरात और राजस्थान में भी की जाती है। राजस्थान में करीब 70 हेक्टेयर में इसकी खेती होती है। सूखा सहन करने की वजह से इस के उत्पादन पर बढ़ती गरमी का असर कम पड़ता है। इसलिए राजगिरा की खेती को फायदेमंद माना जाता है। राजगिरा को दाना के रूप में या आटा के रूप में यानि दोनों रूपों में आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। दाना का रंग और वजन दोनों हल्का होता है। जब यह फूल जाता है तब इससे खीर या चिक्की बहुत अच्छी बनती है। इसके आटे का बहुत तरह से इस्तेमाल होता है। इसको गूंद कर परांठा या पूरी बना सकते हैं या शीरे (हलवे) में भी बदल सकते हैं।

राजगिरा के गुण :

हड्डियों के लिए स्वस्थ – इसमें अन्य अनाजों की तुलना में तीन गुना अधिक कैल्शियम होता है। इसे डायट में शामिल करने से आपकी हड्डियां मजबूत होती हैं और आपको ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्या का कम खतरा होता है।

बाल मजबूत होते हैं – नियमित रूप से इसका सेवन करने से आपको बालों को समय से पहले झडऩे से रोकने में मदद मिलती है। इसमें लाइसिन होता है जिससे आपके बाल मोटे और मजबूत होते हैं। इसमें सिस्टीन भी होता है जिससे बाल स्वस्थ रहते हैं।

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पोषक तत्वों से भरपूर – यह कैल्शियम के अलावा आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटेशियम, एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन ई और विटामिन सी और फोलिक एसिड का अच्छा स्रोत होता है। इसमें घुलनशील फाइवर, प्रोटीन और जिंक भी भारी मात्रा में पाए जाते हैं। सबसे बड़ी बात इसमें कम फैट होता है। इसमें दूध या अन्य अनाज के मुकाबले दोगुना कैल्शियम होता है।

कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करने में सहायक – राजगिरा के बीजों में फाइटोस्टरोल होते हैं जिस वजह से कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में ये मददगार होता है। ये बॉडी में शुगर लेवल को मैनेज करता है और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है। इसमें असंतृप्त वसीय अम्ल और घुलनशील फाइबर होता है, जो कि ब्लड कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मददगार होता है।

इन्फ्लामेशन कम करता है – चौलाई में पेप्टाइड्स होते हैं जिस वजह से ये इन्फ्लामेशन और दर्द को कम करता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स भी होते हैं जो शरीर से फ्री रेडिकल बाहर निकालने में सहायक होते हंै।

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