पौधों को सहेजने का दायित्व
रबी फसलों में गेहूं, चना, मटर, मसूर, सरसों, गन्ना इत्यादि फसलों की बुआई लक्ष्य के आस-पास पहुंच चुकी है और अब समय आ गया है कि फसलों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाये। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये अच्छा बीज, भरपूर उर्वरक, सिंचाई साधन के अलावा समय से पौध संरक्षण उपायों का किया जाना नितांत आवश्यक है। गेहंू में विशेषकर असिंचित गेहूं में दीमक तथा सिंचित फसल में गुजिया तथा माहो का आक्रमण सामान्य रूप से होता है जिनकी रोकथाम समय पर यदि ना की जाये तो उत्पादन में हानि जरूर होगी। खड़ी फसल में क्लोरोपाईरीफास 20 ई.सी. की 2 से 3 लीटर दवा/हे. की दर से सिंचाई के पानी के साथ बहाकर खेत में फैलाने से अच्छा प्रभाव देखा गया है। माहो की रोकथाम हेतु आक्सीडिमेटान मिथाईल 25 ई.सी. 1 लीटर/हेक्टर की दर से छिड़काव किया जाये ताकि माहो का पलता-पूसता परिवार जहरीला रस पीकर समाप्त हो जाये खरपतवार की मार सिंचित गेहूं को सर्वाधिक सहनी पड़ती है। इसमें सकरी तथा चौड़ी पत्ती वाले दोनों प्रकार के खरपतवार पाये जाते है। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का सफाया उनकी कोमल अवस्था में ही सरलता से किया जा सकता है। बुआई के 30-35 दिनों के अंदर ही 2-4 डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण की 625 ग्राम, 2-4 डी एस्टर 34.6 प्रतिशत की 750 मि.ली. मात्रा को 750-800 लीटर पानी में घोल बनाकर/हेक्टर के हिसाब से एक छिड़काव करें। सकरी पत्ती वाले खरपतवारों का सफाया करने के लिये आईसोप्रोट्यूरान 75 प्रतिशत की 1 किलो मात्रा को 700-800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें इसके अलावा पेन्डीमिथालीन 30 प्रतिशत की 3.5 लीटर दवा का छिड़काव बुआई के 2-3 दिनों बाद अंकुरण के पूर्व किया जाये। गेहूं की फसल में विशेषकर नदी किनारे के खेतों में अथवा यदि एक शीतकालीन वर्षा हो चुकी हो तो वर्षा के 10 दिनों के भीतर डाईथेन एम 45 की 2 ग्राम मात्रा/लीटर पानी में घोल बनाकर 10 दिनों के अंतर से दो छिड़काव करने से गेरूआ तथा झुलसा रोगों की रोकथाम सरलता से की जा सकती है। नदी किनारे के असिंचित गेहूं के खेतों का शरदकालीन वर्षा के बाद सतत निरीक्षण करते रहना चाहिए। स्थानीय किस्मों पर गेरूआ जल्दी पनपता है और एक जगह पनपे गेरूआ की कवक हवा के द्वारा अन्य खेतों में सरलता से पहुंच जाती है। गेरूआ के बारे में उपचार से अधिक बचाव का महत्व है। यही कारण है कि मावठे के बाद का वातावरण, स्थिति गेरूआ को पनपने के लिये अच्छी बनती है और उपचार यदि प्रथम दृष्टि से ही शुरू कर दिया जाये तो बेहतर परिणाम मिल सकते है। चने की फसल का प्रमुख शत्रु चने की इल्ली होती है सोयाबीन आधारित फसल चक्र में इसका प्रकोप अधिक देखा जा सकता है। चूंकि सोयाबीन की चौड़ी पत्तियों पर इल्ली को अंडे देने की सहूलियत होती है इस कारण चने के खेत में सोयाबीन के स्वयं उगे पौधों को समूल उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। स्वयं ऊगे पौधों से उत्पादन के लालच में यदि ये पौधे नहीं उखाड़े गये तो चने की इल्ली का आक्रमण जल्दी आयेगा और अधिक हानिकारक होगा। खेत में टी आकार की खूटियां, फेरोमेन ट्रेप का उपयोग जरूरी कार्य माना जाये ताकि इल्ली के पनपने पर विराम लग सके। रबी की फसलों की बुआई के बाद में लक्षित उत्पादन पाने का एकमात्र रास्ता पौध संरक्षण का है। इसलिये इसे गंभीरता से लिया जाना वर्तमान की जरूरत है।