शिमला मिर्च की संरक्षित खेती
लेखक: डॉ. रागनी भार्गव, डॉ.ओमपाल सिंह, प्रो. डॉ. पवन कुमार जैन और शशांक भार्गव, (सहायक प्रोफेसर) कृषि विश्वविद्यालय, एकलव्य विश्वविद्यालय दमोह, मध्य प्रदेश, भारत, (डीन), कृषि विश्वविद्यालय, एकलव्य विश्वविद्यालय दमोह , मध्य प्रदेश, भारत, (कुलपति महोदय) एकलव्य विश्वविद्यालय दमोह, मध्य प्रदेश, भारत
,(जूनियर रिसर्च फेलो) जैव प्रौद्योगिकी विभाग, जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर, मध्य प्रदेश, भारत,
25 जुलाई 2024, भोपाल: शिमला मिर्च की संरक्षित खेती – परिचय शिमला मिर्च की उत्पत्ति उत्तरी लैटिन अमेरिका और मैक्सिको से हुई है और यह हरे, लाल, पीले और नारंगी से लेकर विभिन्न रंगों में उपलब्ध है। शिमला मिर्च, जिसे मीठी मिर्च, बेल मिर्च या शिमला मिर्च के नाम से भी जाना जाता है। शिमला मिर्च (कैप्सिकम) को सलाद में कच्चा खाया जाता है, पास्ता में पकाकर खाया जाता है, अन्य सब्जियों के साथ डाला जाता है, पेप्र सॉस में डाला जाता है।
वैज्ञानिक: कैप्सिकम एन्नम, परिवार: सोलेनेसी
शिमला मिर्च में पाए जाने वाले पोषक तत्व -आवश्यक विटामिन और खनिजों से भरपूर, प्रत्येक 100 ग्राम ताजा शिमला मिर्च विटामिन ए (8493 आईयू), विटामिन सी (283 मिलीग्राम), और कैल्शियम (13.4 मिलीग्राम), मैग्नीशियम (14.9 मिलीग्राम), फास्फोरस (28.3 मिलीग्राम), और पोटेशियम (263.7 मिलीग्राम)।
स्वास्थ्यवर्धक:- यह एंटीऑक्सीडेंट, एंटीफंगल, सूजनरोधी, एंटीडायबिटिक, कैंसररोधी, न्यूरोप्रोटेक्टिव, जीवाणुरोधी, प्रतिरक्षादमनकारी इम्युनोस्टिमुलेंट एवं पीडानाशी के रूप में कार्य
कर सकता है।
जलवायु- दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 18 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है, जिससे सापेक्षिक आर्द्रता का स्तर 50-60% बना रहता है।
यदि तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है या 12 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है, तो फलों की सेटिंग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जिससे संभावित उपज हानि हो सकती है।
संरक्षण में उगाई गई शिमला मिर्च के कई फायदे हैं
- साल भर खेती
- तापमान नियंत्रण
- मौसम से सुरक्षा
उन्नतशील किस्मे
इंद्रा शिमला मिर्च, भारत शिमला मिर्च , कैलिफोर्निया वंडर शिमला मिर्च, येलो वंडर शिमला मिर्च ,
पूसा दीप्ती शिमला मिर्च , ओरोबेल किस्म, सोलन हाइब्रिड 2, इंद्रा।
स्थल का चयन – अच्छी जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी
मिट्टी का पीएच – 6 – 7
भूमि की तैयारी- 20-25 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से अच्छी तरह से सड़ी हुई जैविक खाद मिट्टी में मिलाई जानी चाहिए। पौधशाला की लम्बाई 10-15फुट,चौड़ाई 2.3-3फुट व ऊंचाई 1/2फुट होना चाहिए I कतार से कतार की दूरी 5-7सेमी रखते हुए बीज की बुवाई करनी चाहिए|पौध लगभग 6 सप्ताह में तैयार हो जाती हैI
पलवार– फसलों को मल्चिंग करने की प्रक्रिया से कीट और बीमारियों का प्रकोप कम होता है, पानी की बचत होती है, खरपतवारों का प्रबंधन होता है I
नर्सरी एवं रोपाई – एक एकड़ में रोपण के लिए लगभग 16,000 से 20,000 पौध की आवश्यकता होती है जिसके लिए 160-200 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
- प्रो-ट्रे को स्टरलाइज़्ड कोकोपीट से भर दिया जाता है और बीज बोए जाते हैं, बीज ½
सेमी की गहराई तक बोया जाता है । - बीज बोने के बाद, बीजों को अंकुरित होने में लगभग एक सप्ताह का समय लगता है। मोनो अमोनियम फॉस्फेट (12:61:0) (3 ग्राम/लीटर) को बीज बोने के 15 दिन
बाद भिगोना चाहिए, और 19:19:19 (3 ग्राम/लीटर) घोल को 22 दिन बाद भिगोना चाहिए। रोपण से पहले, प्रोट्रे में पौधों को 3 ग्राम/लीटर COC में भिगोया जाता है।
30 से 35 दिनों में, पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाएंगे। - पौध रोपण से पहले इमिडाक्लोप्रिड की 0.2 मिली/ली और क्लोरोथेलोनिल की 1 ग्राम/ली डालें।
पॉली हाउस
चूंकि वर्षा जल पॉलीहाउस में प्रवेश नहीं कर सकता है, इसलिए यह नेट हाउस की तुलना में बेहतर सुरक्षा प्रदान करता है और पत्ती रोगों का प्रबंधन करना आसान बनाता है। पॉलीहाउस
में, उपज आम तौर पर 15-25% अधिक होती है।
बीज दर – किस्मों के लिए बीज दर 1.25 किलोग्राम/हेक्टेयर है, और संकर किस्मों के लिए बीज दर 200
ग्राम/हेक्टेयर है।
सिंचाई- सिंचाई प्रक्रिया आम तौर पर साप्ताहिक या 10-दिन के अंतराल पर की जाती है।
उर्वरकों का प्रयोग- रोपण के 30, 60 और 90 दिनों पर FYM 25 टन/हेक्टेयर और N:P:K 40:60:30किलोग्राम/हेक्टेयर और प्रत्येक 40 किलोग्राम एन/हेक्टेयर लागू करें।
अंतर्सवर्धन संचालन
छंटाई– रोपाई के 30 दिन बाद 8 से 10 दिनों के अंतराल पर छंटाई की जाती है, जिससे बेहतर गुणवत्ता और उच्च उत्पादकता वाले बड़े फल मिलते हैं।
खरपतवार नियंत्रण– पौधों को मिट्टी से भर दिया जाता है और तीसवें दिन एक बार निराई
निराई-गुड़ाई करने की आवश्यकता होती है।
प्रशिक्षण- रोपाई के चार सप्ताह बाद यह किया जाता है। प्लास्टिक की सुतलियों का उपयोग नई शाखाओं और पौधों को प्रशिक्षित करने के लिए किया जाता है।
भूमि की तैयारी
मिर्च की फसल के लिए दोमट मिट्टी,बलुई मिट्टी व बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है| जिसमे दोमट मिट्टी मिर्च की खेती के लिए सर्वोतम मानी जाती है |
खाद एवं उर्वरक
जुताई के समय लगभग 300-400सेमी गोबर की सड़ी हुई खाद मृदा में मिला देना चाहिए|रोपाई से पहले 175kg(SSP),100kg(MOP) मृदा में मिला देना चाहिए|
रोपाई
रोपाई के लिए सर्वोत्तम समय अप्रैल-जून का होता है| इसके अलावा दूसरी फसल की बुवाई नवम्बर –दिसम्बर में की जाती है|खरीफ फसल की रोपाई जून में करे| पौधे को विभिन्न प्रकार के कीट जैसे दीमक,रसचूसक,लाल कीड़े से बचने हेतु खाद के साथ 300 ग्राम कार्बोफुरान डालकर जमीन में अच्छी
तरह मिला देंI
निराई –गुड़ाई
पौधे की वृद्धि में खरपतवार मुख्य अवरोधक होते है इसलिए खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए दो तीन बार निराई अवशयक है I
पौध संरक्षण
विभिन्न प्रकार के कीट से बचाव हेतु पौध संरक्षण आवश्यक है I
एन्थ्रक्नोसे- यह एक प्रकार का रोग है जिसमें पत्तियों एवं फलों में विशेष आकार के काले धब्बे पाए जाते है I इस रोग से बचाव हेतु मेन्कोजेब या कार्बेन्डाजिम नामक दवा 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव कर देना चाहिए I
मोज़ेक रोग – इस प्रकार के रोग में पत्तों पर हल्के पीले रंग के धब्बे आ जाते हैं और पौधे की वृद्धि रुक जाती है I
एफिड एवं थ्रिप्स- यह पौधे की वृद्धि में बेहद हानिकारक है| इस कीट के नियंत्रण हेतु रोगर या मेतासिस्तास्क 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़क देना चाहिए, ऐसा करने से इन्की ट का नियंत्रण किया जा सकता है I
उपज- हरी मिर्च की औसत पैदावार लगभग 85-90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं सूखे फल की उपज 16-
20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|
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