जे.एस. 95-60 छोड़ सोयाबीन की दूसरी किस्में लगाएं
सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान की सलाह
8 जून 2021, इंदौर । जे.एस. 95-60 छोड़ सोयाबीन की दूसरी किस्में लगाएं – भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान की निदेशक डॉ. नीता खांडेकर ने कहा कि विगत दो वर्षो से ख़राब मौसम के कारण सोयाबीन के बीजोत्पादन लक्ष्यों की पूर्ति में कमी देखी गई है. उन्होंने प्रदेश के किसानों को अपने पास उपलब्ध सोयाबीन किस्म जे.एस. 95-60 की गुणवत्ता में कमी आने के कारण सोयाबीन की अन्य वैकल्पिक किस्मों की खेती करने की सलाह दी। उपसंचालक कृषि, जिला इंदौर के सहयोग से गत दिनों भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान द्वारा “सोयाबीन की शीघ्र, मध्यम एवं अधिक समयावधि वाली किस्में तथा उनकी बीज उपलब्धता” विषय पर एक वेबिनार आयोजित किया गया जिसमे इंदौर के अलावा मध्य प्रदेश के अन्य जिले से कृषकों एवं विस्तार कर्मियों ने भाग लिया।
इंदौर के सांसद श्री शंकर लालवानी ने सोयाबीन की फसल में आ रही कीट एवं व्याधियों की समस्याओं तथा इसके लिए संस्थान द्वारा सोयाबीन खेती की निरंतर विकसित उत्पादन तकनीक एवं नवीनतम पद्धतियों के प्रचार-प्रसार हेतु किये जा रहे प्रयासों की प्रशंसा की.
उपसंचालक कृषि, श्री एस.एस. राजपूत ने सभी शासकीय एवं निजी बीज कंपनियों का उल्लेख करते हुए कहा कि किसान हमेशा सोयाबीन बीज अधिक मात्रा में उपयोग करते है। जबकि आई.आई.एस.आर की अनुशंसा के अनुसार किसान भाइयों को सोयाबीन के बीज का न्यूनतम 70 प्रतिशत अंकुरण के आधार पर 60-80 किलोग्राम/हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए, जिससे बीज की कमी की समस्या का भी कुछ हद तक निराकरण किया जा सके ।
बीज अंकुरण परीक्षण जरूरी
वेबिनार में सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान के डॉ. मृणाल कुचलन ने किसानों को रेत से भरी ट्रे का उपयोग करते हुए सोयाबीन के बीज का अंकुरण परीक्षण करने का सरल उपाय बताया. साथ ही डॉ अमरनाथ शर्मा, सेवा निवृत प्रधान वैज्ञानिक (कीट विज्ञान) एवं अध्यक्ष पौध संरक्षण विभाग द्वारा सोयाबीन की फसल में पीले मोज़ेक बीमारी, सफ़ेद मक्खी एवं अन्य कीटों के नियंत्रण करने का वैज्ञानिक तरीका बताया.आपने सोयाबीन की फसल में उचित कीट प्रबंधन हेतु समेकित कीट प्रबंधन के अन्य तरीके जैसे पीली चिपचिपी पट्टी फेरोमोन ट्रैप, प्रकाश प्रपंच आदि तरीको को अपनाने की सलाह दी ।
सोयाबीन पर सात ध्यान देने योग्य बातें
डॉ. बी.यू. दुपारे (प्रधान वैज्ञानिक,कृषि विस्तार) द्वारा सोयाबीन कृषकों को सात बिंदुओं में सम-सामायिक सलाह दी गई। पहली, एक ही किस्म पर निर्भर रहने की बजाए अलग अलग समयावधि में पकने वाली (शीघ्र ,मध्यम व अधिक समयावधि वाली ) कम से कम 2-3 किस्मों की खेती करने की साथ ही सोयाबीन प्रजाति जे.एस. 95-60 में आ रही समस्याओं को देखते हुए विकल्प के रूप में शीघ्र समयावधि में पकने वाली अन्य किस्म जे.एस. 20-34 की खेती करने की सलाह दी।
दूसरी , फलियाँ पकने के समय अधिक समय तक/अत्यधिक वर्षा के कारण सोयाबीन की फसल में हो रहे नुकसान को देखते हुए सोयाबीन किस्मों की विविधता बढाने हेतु जे.एस. 20-29, जे.एस. 20-69, जे.एस.20-98 जैसी किस्मों का क्षेत्र बढाकर जे.एस. 95-60 का क्षेत्रफल कम करे। तीसरी सोयाबीन की बोवनी से पूर्व उपलब्ध अच्छी गुणवत्ता वाले बीज का अंकुरण परीक्षण कर न्यूनतम 70 प्रतिशत अंकुरण, एवं बीज के आकार के आधार पर 60-80 किग्रा/हे. बीज दर का प्रयोग कर बोवनी के समय फफूंदनाशक, कीटनाशक एवं जैविक कल्चर से बीजोपचार अवश्य करें।
बोवनी से पहले सोयाबीन बीज को अनुशंसित पूर्वमिश्रित फफूंदनाशक पेनफ्लूफेऩ़ +ट्रायफ्लोक्सिस्ट्रोबीन 38 एफ.एस. (1 मि.ली./कि.ग्रा. बीज) या कार्बोक्सिन 37.5%+थाइरम 37.5% (3ग्राम/कि.ग्रा. बीज) या थाइरम (2 ग्राम) एवं कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम) प्रति कि.ग्रा. बीज अथवा जैविकफफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी (8-10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज) से उपचारित करें। चौथी सलाह पीला मोजाइक बीमारी एवं तना मक्खी का प्रकोप को रोकने की लिए फफूंदनाशक से बीजोपचार के पश्चात कीटनाशक थायामिथोक्सम 30 एफ.एस. (10 मि.ली.प्रति कि.गा. बीज) या इमिडाक्लोप्रिड (1.25 मि.ली./कि.ग्रा. बीज) से बीज उपचार करें। पांचवी , कवकनाशियों द्वारा उपचारित बीज को छाया में सूखाने के पश्चात् जैविक खाद ब्रेडीराइजोबियम कल्चर तथा पीएसबी कल्चर दोनों (5 ग्राम/कि.ग्रा बीज) से टीकाकरण कर तुरन्त बोवनी हेतु उपयोग करें। छठवीं किसान भाई इस बात का विशेष ध्यान रखें कि क्रमानुसार फफूंदनाशक, कीटनाशक से बीजोपचार के पश्चात् हीजैविक कल्चर/खाद द्वारा टीकाकरण करें।सातवीं सलाह कल्चर व कवकनाशियों को एक साथ मिलाकर कभी भी उपयोग में नहीं लाना चाहिए।