खरीफ में मूंगफली लगाएं
12 जुलाई 2021, खरीफ में मूंगफली लगाएं – म.प्र. में मूंगफली प्रमुख रूप से शाजापुर, शिवपुरी, छिंदवाड़ा, बड़वानी, टीकमगढ, झाबुआ, खरगोन जिलों में लगभग 220 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में होती है। ग्रीष्मकालीन मूंगफली का क्षेत्र विस्तार धार, रतलाम, खण्डवा, अलीराजपुर, बालघाट, सिवनी, होशंगाबाद एवं हरदा जिलों में किया जा सकता है।
मूंगफली में तेल 45 से 55 प्रतिशत, प्रोटीन 28 से 30 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट 21-25 प्रतिशत, विटामिन बी समूह, विटामिन-सी, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक फॉस्फोरस, पोटाश जैसे मानव शरीर को स्वस्थ रखने वाले खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
भूमि की तैयारी
मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है फिर भी इसकी अच्छी तैयारी हेतु जल निकास वाली कैल्शियम एवं जैव पदार्थों से युक्त बलुई दोमट मृदा उत्तम होती है। मृदा का पीएच मान 6.0 से 8.0 उपयुक्त रहता है। मई के महीने में खेत की एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके 2-3 बार हैरो चलायें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाये। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करें जिससे नमी संचित रहे। खेत की आखिरी तैयारी के समय 2.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से जिप्सम का उपयोग करें।
भूमि उपचार
मूंगफली फसल में मुख्यत: सफेद लट एवं दीमक का प्रकोप होता है। इसलिए भूमि में आखरी जुताई के समय फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी से 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपचारित करते हैं। दीमक का प्रकोप कम करने के लिये खेत की पूरी सफाई जैसे पूर्व फसलों के डण्ठल आदि को खेत से हटायें और कच्ची गोबर की खाद खेत में नहीं डालें। जिन क्षेत्रों में उकठा रोग की समस्या हो वहाँ 50 कि.ग्रा. सड़े गोबर में 2 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशी को मिलाकर अंतिम जुताई के समय प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिला देें।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
मिट्टी परीक्षण के आधार पर की गयी सिफारिशों के अनुसार ही खाद एवं उर्वरकों की मात्रा सुनिश्चित की जानी चाहिए। मूंगफली की अच्छी फसल के लिये 5 टन अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देें। उर्वरक के रूप में 20:60:20 कि.ग्रा./हे. नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग आधार खाद के रूप में करें। मूंगफली में गंधक का विशेष महत्व है अत: गंधक पूर्ति का सस्ता स्त्रोत जिप्सम है। जिप्सम की 250 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग बुवाई से पूर्व आखिरी तैयारी के समय प्रयोग करें। मूंगफली के लिये 5 टन गोबर की खाद के साथ 20:60:20 कि.ग्रा./हेक्टेयर नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश के साथ 25 कि.ग्रा./हेक्टेयर जिंक सल्फेट का प्रयोग आधार खाद के रूप में प्रयोग करने से उपज में 22 प्रतिशत वृद्धि प्रक्षेत्र परीक्षण व अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों में पायी गयी है।
बीज एवं बुवाई
मूंगफली की बुवाई प्राय: मानसून शुरू होने के साथ ही हो जाती है। कम फैलने वाली किस्मों के लिये बीज की मात्रा 75-80 कि.ग्राम. प्रति हेक्टेयर एवं फैलने वाली किस्मों के लिये 60-70 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर उपयोग में लें बुवाई के बीज निकालने के लिये स्वस्थ फलियों का चयन करें या उनका प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए। बोने से 10-15 दिन पहले गिरी को फलियों से अलग कर लें। बीज को बोने से पहले 3 ग्राम थाइरम या 2 ग्राम मेन्कोजेब या कार्बेन्डाजिम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर लें। इससे बीजों का अंकुरण अच्छा होता है तथा प्रारम्भिक अवस्था में लगने वाले विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाया जा सकता है। दीमक और सफेद लट से बचाव के लिये क्लोरोपायरीफास (20 ई.सी.) का 12.50 मि.ली. प्रति किलो बीज का उपचार बुवाई से पहले कर लें। मूंगफली को कतार में बोना चाहिए। गुच्छे वाली/कम फैलने वाली किस्मों के लिये कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. तथा फैलने वाली किस्मों के लिये 45 से.मी.रखें। पौधों से पौधों की दूरी 15 से. मी. रखें। बुवाई हल के पीछे, हाथ से या सीडड्रिल द्वारा की जा सकती है। भूमि की किस्म एवं नमी की मात्रा के अनुसार बीज जमीन में 5-6 से.मी. की गहराई पर बोयें। जैव उर्वरकों से उपचार करने से मूंगफली में 15-20 प्रतिशत की उपज बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
बुवाई एवं बुवाई की विधि
मूंगफली की बुवाई जून के द्वितीय सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जाती है। झुमका किस्म के लिए कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखें। विस्तार और अर्धविस्तारी किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सें.मी. रखें। बीज की गहराई 3 से 5 से.मी. रखें। मूंगफली फसल की बोनी को रेज्ड/ब्रॉड-बेड पद्धति से किया जाना लाभप्रद रहता है। बीज की बुवाई ब्रॉड बेड पद्धति से करने पर उपज का अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस पद्धति में मूंगफली की 5 कतारों के बाद एक कतार खाली छोड़ देते है। इससे भूमि में नमी का संचय, जलनिकास, खरपतवारों का नियंत्रण व फसल की देखरेख सही हो जाने के कारण उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
मूंगफली की अच्छी पैदावार लेने के लिये कम से कम एक निराई-गुड़ाई अवश्य करें। इससे जड़ों का फैलाव अच्छा होता है, साथ ही भूमि में वायु संचार भी बढ़ता है। और मिट्टी चढ़ाने का कार्य स्वत: हो जाता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है। यह कार्य कोल्पा या हस्तचलित व्हील हो से करें। रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण हेतु पेण्डीमिथालीन 38.7 प्रतिशत 750 ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 3 दिन के अंदर प्रयोग कर सकते है या खड़ी फसल में इमेजाथायपर 100 मि.ली. सक्रिय तत्व को 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर बोनी के 15-20 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही एक निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद अवश्य करें जो तंतु (पेगिंग) प्रक्रिया में लाभकारी होती है।
सिंचाई प्रबंधन
मूंगफली वर्षा आधारित फसल है अत: सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती है। मूंगफली की फसल में 4 वृद्धि अवस्थाएं क्रमश: प्रारंभिक वानस्पतिक वृद्धि अवस्था, फूल बनना, अधिकलीन (पैगिंग) व फली बनने की अवस्था सिंचाई के प्रति अति संवेदनशील है। खेत में आवश्यकता से अधिक जल को तुरंत बाहर निकाल दें अन्यथा वृद्धि व उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
खुदाई एवं भण्डारण
जब पौधों की पत्तियों का रंग पीला पडऩे लगे और फलियों के अंदर का टेनिन का रंग उड़ जाये तथा बीज खोल रंगीन हो जाये तो खेत में हल्की सिंचाई कर खुदाई कर लें और पौधों से फलियाँ को अलग कर लें। मूंगफली खुदाई में श्रम ह्रास कम करने के लिए यांत्रिक ग्राउण्डनट डिगर उपयोगी है।
मूंगफली में उचित भंडारण और अंकुरण क्षमता बनाये रखने के लिए खुदाई पश्चात् सावधानीपूर्वक सुखायें। भंडारण के पूर्व पके हुये दानों में नमीं की मात्रा 8 से 10 प्रतिशत से अधिक नहीं हो। अन्यथा नमी अधिक होने पर मूंगफली में एस्परजिलस प्लेक्स फफूंद द्वारा एफलाटाक्सिन नामक विषैला तत्व पैदा हो जाता है जो मानव व पशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यदि मूंगफली को तेज धूप में सुखायें तो अंकुरण क्षमता का ह्रास होता है।
अंकुरण क्षमता को बनाये रखने के लिए
- उपयुक्त नमी होने पर ही मूंगफली को जमीन से निकालें।
- मूंगफली को भूमि से उखाडऩे के बाद इसके पौधों को उल्टा करके, छोटे-छोटे ग_र बनाकर फलियाँ हमेशा धूप की तरफ होना चाहिए।
- पूर्णतया सूखी फलियों को हवादार स्थान में भण्डारित करें। जहाँ पर नमीं ग्रहण नहीं कर सकें या फिर प्रत्येक बोरे में कैल्शियम क्लोराइड 300 ग्राम प्रति 40 कि.ग्रा. बीज की दर से भंडारण करें।
- भण्डारण के समय हानि पहुँचाने वाले कीट पतंगों से सुरक्षा रखें, जिससे भण्डारण के समय फलियाँ खराब नहीं हो।
समूह-1 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हेक्टर) | ||
यूरिया | सु.फा. | म्यू.पोटाश |
43 | 375 | 33 |
समूह-2 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हेक्टर) | ||
डी.ए.पी. | सु.फा. | म्यू.पोटाश |
109 | 63 | 33 |
उन्नत किस्में |
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किस्म | अवधि (दिन) | उपज | विमोचन |
(क्विं/हे.) | वर्ष | ||
जे.जी.एन.-3 | 100-105 | 15-20 | 1999 |
जे.जी.एन.-23 | 90-95 | 15-20 | 2009 |
टी.जी.- 37ए | 100-105 | 18-20 | 2004 |
जे.एल.- 501 | 105-110 | 20-25 | 2010 |
जी.जी.-20 | 100-110 | 20-25 | 1992 |