आम की खेती
डॉ. नीरज शुक्ला , डॉ. डी.ए. सरनाईक , डॉ पी.एन. सिंह
आम को फलों का राजा कहा जाता है और यह हमारे देश का राष्ट्रीय फल है आम में विटामिन ए तथा सी प्रचुर मात्रा में होता है। इस फल से परिरक्षित पदार्थ जैसे अमचूर, चटनी, अचार, स्कैेवश, जैम इत्यादि बनाये जा सकते हैं।
जलवायु : आम को समुद्रतल से लेकर 1250 मीटर ऊंचाई तक लिया जा सकता है। तीनों कृषि जलवायु क्षेत्रों में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। इस फल में फूल आने के समय वर्षा होने पर फसल कम बनते है और कीड़े व बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। अधिक तेज हवा, आंधी द्वारा भी आम की फसल को नुकसान पहुंचता है।
मिट्टी : केवल कंकरीली, पथरीली, उसर व पानी जमाव वाली भूमि को छोड़ कर यह फसल सभी प्रकार की मिट्टियों में पैदा किया जा सकता है। मिट्टी की गहराई कम से कम 6 फीट एवं मिट्टी का पीएच मान 5.5-7.5 होना चाहिए।
प्रवर्धन : वीनियर, साईड, सॉफ्टवुड या एप्रोच ग्राफटिंग के द्वारा व्यवसायिक रुप से कलमी पौधे तैयार कर लगाये जाते हंै। बीजू पौधे लगाने पर पैतृक वृक्षों के गुणों के समान फल नहीं मिल पाते तथा अधिक समय बाद फल देना प्रारंभ करते है इसलिए वानस्पतिक प्रवर्धन द्वारा तैयार पौधों को प्राथमिकता दी जाती है।
आम की गुठली लगाकर पौधे (मूलवृत्त) तैयार किये जाते हैं। तदपश्चात इन मूलवृंत पर उन्नत किस्म की शाखा विभिन्न प्रवर्धन विधियों से लगाकर पौधे तैयार (जुलाई-सितम्बर में)किये जाते है।
जातियां :
शीघ्र पकने वाली जातियां : हिमसागर, दिल पसंद, बाम्बेे ग्रीन, अमीन, बरबेलिया इत्यादि।
मध्यम समय में पकने वाली जातियां : दशहरी, लंगडा, सुन्दरजा, अलफांसो, मल्लिका, केसर, मालदा, कृष्णभोग इत्यादि।
देर से पकने वाली जातियां : चौसा, नीलम, फजली, आम्रपाली, तोतापरी, इत्यादि।
भूमि की तैयारी : भूमि की अच्छी तरह से जुताई कर समतल बना लेना चाहिए एवं घास-पात, झाडिय़ोंं इत्यादि को जड़ समेत निकाल कर फेंक देना चाहिए।
पौधा रोपण : वर्गाकार पद्धति द्वारा 10&10 मीटर की दूरी पर 1&1&1 (ल&चौ&ग) मीटर आकार का गड्ढ़ा (गर्मी में) खोद लिया जाता है। गड्ढ़ें की भराई 40 किलो गोबर खाद, आधा किग्रा सुपरफास्फेट और 250 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश मिट्टी में मिलाकर करना चाहिए।सघन पौध रोपण के लिये आम्रपाली किस्म का चयन किया जाता है जिसको 2.5 & 2.5 भी या 3&3 मीटर की दूरी पर लगाया जा सकता है।
रोपण समय : पौधों को वर्षा की शुरुआत में (जून-जुलाई) ही लगाना अच्छा रहता है।
सिंचाई : वर्षा ऋतु में पानी देने की आवश्यकता नहीं होती है परंतु फिर भी अगर वर्षा के असमान वितरण से सूखे जैसी स्थिति निर्मित हो तो सिंचाई देने की आवश्यकता पड़ती है ठण्ड के मौसम में 10 से 15 दिन के अंतराल पर तथा गर्मी के मौसम में 5-7 दिन के अंतराल पर सिंचाई देना चाहिए।
पुराने फलदार वृक्षों को 10-15 दिन के अंतराल पर फल बनने से लेकर परिपक्व होने तक सिंचाई करने पर फल झडऩा कम हो जाता है तथा फल का आकार मिलता है। फलदार वृक्षों में वृक्षों में फूल आने के 2 महीने पहले सिंचाई रोक दी जानी चाहिए।
खाद व उर्वरक प्रति पौध प्रतिवर्ष के हिसाब से वर्षा ऋतु के शुरुआत एवं मानसून के बाद दो बराबर भागों में मिट्टी में अच्छी तरह मिला कर देना चाहिए। व्यवसायिक रुप से उत्पादन शुरू कर चुके फलवार वृक्षों को नत्रजन की पूरी मात्रा मानसून के समय ही (तोड़ाई बाद) दे देनी चाहिए।
कांट-छांट : सामान्यतया आम में कांट-छांट नहीं की जाती है परंतु सूखी रोगग्रसित, आड़ी तिरछी शाखाओं की कांट-छांट करनी चाहिए।
एकांतरित फलन : आम में सामान्यत: एक वर्ष अच्छा फूल आता है। तथा दूसरे वर्ष बहुत कम या बिल्कुल नहीं आता है जिस वर्ष अच्छा फूल आता है उसे आन ईयर तथा जिस वर्ष फूल नहीं या कम आता है उसेे आफ ईयर कहते है। अधिकतर व्यवसायिक किस्मों में एकान्तरित फलन होता है कुछ प्रजातियां में एकान्तरित फलन की समस्या नहीं है जैसे नीलम, आम्रपाली, मलिका इत्यादि में प्रत्येक वर्ष फलन मिलता है। उचित प्रबंधन देखरेख करने पर अन्य कारणों से जो फलत कम हो जाती है उसे रोका जा सकता है।
फल झडऩ : फल झडऩ चूंकि प्राकृतिक रुप से फल एवं वृद्धि के संतुलन को बनाये रखने के लिये होता है इसलिए पूर्ण रुप से इस पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता, केवल फल झडऩ को कम किया जा सकता है।
सिंचाई द्वारा : फल बनने से लेकर परिपक्वता तक नियमित रुप से सिंचाई करने पर फलों का गिरना कम हो जाता है फल का आकार भी अच्छा मिलता है।
हार्मोन द्वारा : एनएए का 15-25 पीपीएम का छिड़काव या बाजार में प्लेनोफिक्स नामक दवा आती है इसके छिड़काव से फल झडऩ कम हो जाता है।
खाद व उर्वरक :अच्छी वृद्धि एवं उपज के लिए संतुलित खाद एवं उर्वरक देना आवश्यक है। | ||||
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वर्ष | गोबर खाद किग्रा | नत्रजन ग्रा. | स्फुर ग्रा. | पोटाश ग्रा. |
प्रथम | 10 | 50 | 40 | – |
द्वितीय | 20 | 100 | 80 | – |
तृतीय | 40 | 200 | 160 | – |
चतुर्थ | 60 | 400 | 320 | 150 |
पंचम | 80 | 600 | 400 | 300 |
एवं आगे |