अमरूद की उन्नत किस्में और आधुनिक बाग प्रबंधन: किसानों के लिए पूरी जानकारी
IARI विशेषज्ञ ने बताई उत्पादन बढ़ाने की कारगर तकनीकें
11 दिसंबर 2025, नई दिल्ली: अमरूद की उन्नत किस्में और आधुनिक बाग प्रबंधन: किसानों के लिए पूरी जानकारी – अमरूद देश की प्रमुख फलों में से एक फसल है, जिसकी खेती किसान भाई सर्दियों और बरसात दोनों मौसमों में करते हैं। कई सान लगातार यह पूछते हैं कि अच्छी उपज के लिए किस किस्म का चुनाव करें, कौन-सी समस्याएँ सबसे अधिक आती हैं और बाग का रखरखाव किस तरह किया जाए। इसी संबंध में पूसा संस्थान के विशेषज्ञ ने विस्तृत जानकारी दी।
अमरुद की खेती का सही प्रबंधन
पूसा संस्थान के शोध के अनुसार पिछले 30 वर्षों में अमरूद का कुल क्षेत्रफल लगभग चार गुना बढ़ा है, जबकि उत्पादकता भी पाँच गुना तक बढ़ चुकी है। देश में अमरूद की 150 से अधिक उन्नतशील प्रजातियाँ उपलब्ध हैं, जिनमें पूसा द्वारा विकसित पूसा आरुषि और पूसा प्रतीक्षा हाल ही में किसानों के बीच खासा लोकप्रिय हो रही हैं।
अमरूद की खेती में घनी बागवानी एक बड़ा लाभ देती है। यदि पौधों को 3×3 मीटर की दूरी पर लगाया जाए तो लगभग 1100 पौधे प्रति हेक्टेयर लगाए जा सकते हैं। एक पौधे से औसतन 50 किलोग्राम उत्पादन मानकर भी किसान आसानी से अच्छी मात्रा में फल प्राप्त कर सकते हैं। सर्दियों की फसल के दौरान अमरूद का होलसेल रेट करीब 30 से 50 रुपये प्रति किलोग्राम मिलता है, जिससे किसान लगभग 3 से 4 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक की आय आराम से प्राप्त कर सकते हैं।
रोगों से कैसे बचे?
अमरूद में मुख्य रूप से दो समस्याएँ आती हैं फल मक्खी और उकटा (विल्ट)। इसके अलावा हाल के वर्षों में निमेटोड की समस्या भी बढ़ी है। फल मक्खी नियंत्रण के लिए फलों की बैगिंग एक बेहद प्रभावी तरीका है। बाजार में उपलब्ध पॉलीप्रोपाइलीन ट्यूब या विशेष बैगिंग पॉलिथीन से फलों को ढकने पर कीटनाशकों की जरूरत लगभग समाप्त हो जाती है। इससे न केवल फल का आकार और रंग बेहतर होता है, बल्कि बाजार में इसकी कीमत भी डेढ़ से दो गुना तक बढ़ जाती है। बैगिंग के साथ-साथ फ्रूट थिनिंग यानी अतिरिक्त फलों को हटाना,
गुणवत्ता सुधारने के लिए आवश्यक है।
उकटा रोग से बचाव के लिए किसानों को एक गलती नहीं करनी चाहिए गहरी जुताई। अमरूद की पोषण-लेने वाली जड़ें सिर्फ 25 सेंटीमीटर की गहराई तक होती हैं, इसलिए तने के पास गहरी जुताई और पानी भराव दोनों नुकसानदेह हैं। जड़ों को सुरक्षित रखकर ही उकटा रोग का प्रभाव रोका जा सकता है।
अमरूद से बनने वाले वैल्यू-ऐडेड उत्पादों की मांग तेज़ी से बढ़ रही है। पिंक-फ्लश वाली किस्में जैसे पूसा आरुषि, अरका किरण, ललित, हिसार सुरखा आदि प्रसंस्करण उद्योग के लिए बहुत उपयुक्त हैं और किसानों को अतिरिक्त आय देती हैं।
अमरूद की नियमित छंटाई भी उत्पादन बढ़ाने का महत्वपूर्ण हिस्सा है। पुरानी और रगड़ खाने वाली शाखाओं को मार्च माह के पहले या दूसरे पखवाड़े में काट देना चाहिए, क्योंकि फलन मुख्य रूप से नई कोंपलों पर होता है। यदि किसान बरसात की फसल नहीं लेना चाहते तो अप्रैल के पहले सप्ताह में प्रूनिंग करके सर्दियों की फसल का उत्पादन लगभग दोगुना कर सकते हैं।
गरीबों का सेव
अच्छी किस्म का चयन, खेत की सही तैयारी, समय पर छंटाई, बैगिंग और फसल को जड़-क्षति से बचाना इन कुछ बुनियादी तरीकों को अपनाकर किसान कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाला उत्पादन ले सकते हैं। अमरूद पोषण से भरपूर, रोग-रोधी और कम खर्च वाली फसल है, जिसे ‘‘गरीबों का सेव’’ भी कहा जाता है। आज यह हर वर्ग के लोगों में लोकप्रिय है और औषधीय गुणों के कारण इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है।
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