Crop Cultivation (फसल की खेती)

लहसुन की खेती से कैसे कमायें अधिक लाभ

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  • जयपाल छिगारहा , डॉ. एस.के. सिंह
  • डॉ. आर.के. प्रजापति ,डॉ. बी.एस. किरार, कृषि विज्ञान केंद्र, टीकमगढ़

18 अक्टूबर 2021, लहसुन की खेती से कैसे कमायें अधिक लाभ – लहसुन एक दक्षिण यूरोप में उगाई जाने वाली प्रमुख मसाला फसल है। इसका मुख्यत: उपयोग सब्जियों एवं आचार में किया जाता है। इसके इलावा लहसुन कईं दवाइयों में उपयोग किया जाता है। इसमें प्रोटीन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे स्त्रोत पाए जाते हैं। यह पाचन क्रिया में मदद करता है और मानव रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करता है। बड़े स्तर पर लहसुन की खेती गुजरात, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश के अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ बुंदेलखंड क्षेत्र में भी लहसुन खेती की अपार संभावनाएं हैं।

मृदा

लहसुन सभी प्रकार की हल्की से भारी भूमि में उगाया जा सकता है। बलुई दोमट, अच्छी जल निकास वाली, पानी को बांध कर रखने वाली और अच्छी जैविक खनिजों वाली भूमि लहसुन के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। बुन्देलखंड क्षेत्र में भी पायी जाने वाली मिट्टी लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त है नर्म और रेतली जमीनें इसके लिए अच्छी नहीं होती क्योंकि इसमें बनी गांठें जल्दी खराब हो जाती हैं। भूमि का पीएच 6-7 हो।

भूमि की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत को 3-4 बार जुताई करें और मिट्टी में जैविक खनिजों को बढ़ाने के लिए कम्पोस्ट डालें। खेत को समतल करके क्यारियों बना लें।

लगाने का समय, दूरी एवं विधि

लहसुन लगाने का समय सितंबर के आखिरी सप्ताह से अक्टूबर का अंतिम सप्ताह उपयुक्त माना जाता है। पौधे से पौधे का फासला 7.5 से.मी. और कतारों में फासला 15 से.मी. रखें। लहसुन की गांठों को 3-5 से.मी. गहरा और उसका उगने वाला हिस्सा ऊपर की तरफ रखें। लहसुन लगाने के लिए केरा ढंग का प्रयोग करें। बिजाई हाथों से या मशीन से की जा सकती है। लहसुन की गांठों को मिट्टी से ढककर हल्की सिंचाई करें।

कलिका (बीज) की मात्रा

लहसुन की 225-250 किलोग्राम बीज (कलिका) प्रति एकड़ में उचित बीज दर है क्योंकि इससे कम या ज्यादा बीज लगाने से उपज पर प्रभाव पड़ता है।

कलिका (बीज) उपचार

प्रति किलो बीज को थीरम 2 ग्राम+ बेनोमाईल 50 डब्लूपी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी से उपचार कर उखेड़ा रोग और कांगियारी रोग से बचाया जा सकता है। रसायनिक उपचार के बाद बायो एजेंट ट्राइकोडर्मा विरीडी 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करने की सिफारिश की गई है। इससे नए पौधों को मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से बचाया जा सकता है।

खाद एवं उर्वरक

खाद एवं उर्वरक की मात्रा मिट्टी परीक्षण कराने के पश्चात आवश्यकतानुसार दें। सामान्यत: खेती की तैयारी के समय 10 से 12 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ की दर से भूमि में मिलाकर जुताई करें। कलियां लगाने से पहले 20 से 28 किलोग्राम नत्रजन, 24 किलोग्राम फॉस्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति एकड़ की दर से बुवाई से पूर्व आवश्यकता होती है व कलियों को पीएसबी से उपचारित करके बोयें। बुवाई के एक महिने बाद 20 किलोग्राम नाइट्रोजन खड़ी फसल में देना लाभकारी होता है। लहसुन की बुवाई के 55 से 60 दिन के बाद किसी भी प्रकार के रसायनिक खाद का प्रयोग नहीं करें।

बिजाई से 10 दिन पहले खेत में 2 टन रूड़ी की खाद डालें। 50 किलो नाइट्रोजन (110 किलो यूरिया) और 25 किलो फासफोरस (155 किलो एसएसपी) प्रति एकड़ डालें। सारी एस एस पी बिजाई से पहले और नाइट्रोजन तीन हिस्सों में बिजाई के 30, 45 और 60 दिन बाद डालें। फसल को खेत में लगाने के 10-15 दिन बाद 19:19:19 और सूक्ष्म तत्व 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

जैव उर्वरकों का प्रयोग

अदरक के प्रकंदों को बीजोपचार के लिये ट्राइकोडर्मा, एजेटोबेक्टर, स्फुर घोलक जीवाणु प्रत्येक की 10 मिली तरल मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर 30 मिनट तक डुबोने के बाद छायादार स्थान में 3-4 घण्टे सुखाकर रोपाई करें। भूमि उपचार के लिये गोबर की सड़ी खाद में जिंक घोलक जीवाणु, स्फुर घोलक जीवाणु, पोटाश घोलक जीवाणु साथ ही ट्राइकोडर्मा विरडी प्रत्येक की 5 लीटर 50 कि.ग्रा. गोबर खाद में प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर प्रकंदों के रोपण से पूर्व खेत की अंतिम जुताई के समय मिलाकर उपयोग कर सकते हंै एवं खड़ी फसल में जिंक घोलक जीवाणु, पोटाश घोलक जीवाणु एवं स्यूडोमोनास प्रत्येक की 10 मिली प्रति लीटर का घोल बनाकर अरदक की खड़ी फसल में छिडक़ाव करने से उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।

खरपतवार नियंत्रण

लहसुन की खेती से अच्छी पैदावार के लिए 3 से 4 गुड़ाई अवश्य करें। जिससे की कंद को हवा मिले और नई जड़ों का विकास हो सकें। एक माह बाद सिंचाई के तुरन्त बाद डंडे या रस्सी से पौधों को हिलाने से कंद का विकास अच्छा होता है। खरपतवार रोकथाम हेतु पेन्डीमिथालिन 1.2 लीटर प्रति एकड़ की दर से बुवाई के 1 से 3 दिन के अंदर प्रयोग कर सकते हैं या ऑक्सीडायजन 400 ग्राम प्रति हेक्टर अंकुरण से पूर्व प्रयोग करने से खरपतवार नियंत्रण अच्छा होता है और उपज भी अच्छी प्राप्त होती है।

वृद्धि नियामक का प्रयोग

कंद की खुदाई से दो सप्ताह पहले 3 ग्राम मैलिक हाइड्रोजाइड प्रति लीटर पानी में छिडक़ाव करने से भण्डारण के समय अंकुरण नहीं होता है और कंद 10 माह तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं।

सिंचाई

वातावरण और मिट्टी की किस्म के आधार पर सिंचाई करें। लगाने के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें और आवश्यकता के आधार पर 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहें।

खुदाई एवं भण्डारण

यह फसल बिजाई के 135-150 दिनों के बाद या जब 50 प्रतिशत पत्ते पीले हो जायें और सूख जायें तब कटाई की जा सकती है। कटाई से 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें। पौधों को उखाड़ कर छोटे गुच्छों में बांधें और 2-3 दिनों के लिए खेत में सूखने के लिए रख दें। पूरी तरह सूखने के बाद सूखे हुए तने काट दें और गांठों को साफ करें।
कटाई करने के पश्चात 7-8 दिन सुखायें एवं सुखाने के बाद गांठों को आकार के अनुसार छांटकर बोरों में भरें।


कीट, व्याधि एवं नियंत्रण

थ्रिप्स: यदि इस कीड़े को ना रोका जाये तो लगभग 50 प्रतिशत तक पैदावार कम हो जाती है और यह कीट शुष्क वातावरण में आमतौर पर आता है। यह पत्ते का रस चूसकर उसे ठूठी के आकार का बना देता है।
इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मिली प्रति लीटर पानी या थायोमिथाक्साम 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति 15 दिन के अंतराल में 3 बार छिडक़ाव करें।
सफेद सुंडी: इस सुंडी का प्रकोप जनवरी-फरवरी के महीने में होता है और यह जड़ों को खाती है और पत्तों को सुखा देती है।
इसे रोकने के लिए फोरेट 4 किलोग्राम मिट्टी में डालकर हल्की सिंचाई करें या क्लोरोपाइरीफॉस 1 लीटर को प्रति एकड़ में पानी और रेत में मिलाकर डालें या प्रोफेनोफॉस 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलकर छिडक़ें।
जामुनी धब्बे और तने का फाइलियम झुलसा रोग : बीमारी का अधिक प्रकोप होने की स्थिति में उपज का लगभग 70 प्रतिशत तक नुकसान हो जाता है। पत्तों के ऊपर गहरे जामुनी धब्बे दिखाई देते हैं। पीली धारियां भूरे रंग की होकर पत्तों के शिखरों तक पहुंच जाती हैं।

इस रोग का समाधान करने के लिए फसल चक्र अपना सकते हैं। ध्यान रखें कि इसमें लहसुन, प्याज न लगाएं।

  • पौधों को कम संख्या में लगाएं।
  • सिंचाई का उचित प्रबंधन रखें। साथ ही ज्यादा सिंचाई नहीं करें।
  • बुवाई के लिए स्वस्थ खेत से लहसुन प्राप्त करें।
  • फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर मैंकोजेब करीब 0.2 प्रतिशत या रिडोमिल एम जेड करीब 0.2 प्रतिशत घोल का छिडक़ें।

उन्नतशील किस्में

पीजी- 17: इस किस्म के पौधे के पत्ते गहरे हरे रंग के और ऊपर की सतह सफेद और आकर्षित होती है। जिसमें 25-30 कलियां प्रति गांठ होती हैं। यह किस्म 165-170 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 125-135 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
यमुना सफेद 2 (जी-50): इसकी गांठें भी सख्त और सफेद होती हैं और 35-40 कलियां प्रति गांठ होती हैं। इस किस्म की औसतन उपज लगभग 150-175 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
यमुना सफेद 3 (जी 282) : गांठें सफेद और आकार में बड़ी होती हैं और 15-16 कलियां प्रति गांठ होती हैं। इस किस्म की औसतन उपज लगभग 175-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
यमुना सफेद 4 (जी 323) : गांठें सफेद और 20-25 कलियां प्रति गांठ होती हैं। इस किस्म की औसतन उपज लगभग 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
यमुना सफेद 5 : यह फसल पककर कटाई के लिए 150-160 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 150-170 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
भीमा परपल : यह फसल 120-135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। इसकी ऊपरी सतह जामुनी रंग की हो जाती हैं। इसकी औसतन पैदावार 100-120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
वी.एल.लहसुन- 1 : इसकी ऊपरी सतह सफेद रंग की हो जाती है। यह फसल 180-190 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी औसतन पैदावार 125-135 क्विंटल प्रति एकड़ और समतल क्षेत्रों में 100-120 क्विंटल प्रति एकड़ है।
टाइप 56-4 : इसमें लहसुन की गांठें छोटी होती हैं और सफेद होती हैं। प्रत्येक गांठ में 25 से 34 पुत्तियां होती हैं। इस किस्म से किसान को प्रति हेक्टेयर 140-160 क्विंटल तक उपज मिलती है
को.2 (सीओ-2) : इस किस्म में कंद सफेद होते हैं और इस किस्म से किसानों को प्रति हेक्टेयर 150-175 उपज मिलती है।
आईसी 49381: इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की ओर से किया गया है। इस किस्म से लहसुन की फसल 160 से 180 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म से किसानों प्रति हेक्टेयर 150-200 क्विंटल तक उपज मिलती है।
सोलन : इस किस्म में पौधों की पत्तियां काफी चौड़ी व लंबी होती हैं और रंग गहरा होता है। इसमें प्रत्येक गांठ में चार ही पत्तियां होती हैं और काफी मोटी होती हैं।। इस किस्म से किसानों प्रति हेक्टेयर 150-190 क्विंटल तक उपज मिलती है।
एग्री फाउंड व्हाईट (41 जी) : लहसुन की इस किस्म में भी फसल 150 से 160 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म से लहसुन की उपज 125-150 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

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One thought on “लहसुन की खेती से कैसे कमायें अधिक लाभ

  • लहसुन 2022 mein kya rate rahenge please help me लहसुन ka rate 2022 me keya rhi ga

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