फसल की खेती (Crop Cultivation)

सोयाबीन में जैविक, प्राकृतिक, रसायनिक कीट नियंत्रण कैसे करें

12 अगस्त 2022, इंदौर । सोयाबीन में जैविक, प्राकृतिक, रसायनिक कीट नियंत्रण कैसे करें – कृषक जगत द्वारा गत दिनों सोयाबीन में समेकित कीट प्रबंधन (खरीफ 2022 ) पर वेबिनार आयोजित किया गया , जिसके मुख्य वक्ता डॉ अमरनाथ शर्मा, सेवा निवृत्त प्रधान वैज्ञानिक (कीट प्रबंधन ), भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान, इंदौर थे। डॉ शर्मा ने सोयाबीन में लगने वाले कीटों एवं उनके जैविक, प्राकृतिक और रासायनिक उपचार की विस्तार से जानकारी दी। इस वेबिनार में मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान के किसान भी शामिल हुए। किसानों द्वारा सोयाबीन को लेकर पूछे गए सवालों का डॉ शर्मा ने समाधानकारक जवाब दिए। कृषि ज्ञान प्रतियोगिता के विजेता श्री लक्ष्मीनारायण दुबलिया,पोलाय जागीर (देवास ) को कृषक जगत द्वारा प्रकाशित ‘सदा बहार खेती’ पुस्तक पुरस्कारस्वरूप देने की घोषणा की गई। कार्यक्रम का संचालन कृषक जगत के संचालक श्री सचिन बोन्द्रिया ने किया।

डॉ. अमरनाथ शर्मा

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डॉ अमरनाथ शर्मा ने अपने उद्बोधन का आरम्भ इस साल मौसम की अनियमितता का जिक्र करते हुए कहा कि इस वर्ष बारिश अलग-अलग समय पर हुई है।इस खरीफ के सीजन में 15 जून से 15 जुलाई तक सोयाबीन की बोनी हुई है। कहीं-कहीं 10 -12 दिन की फसल है तो कहीं फूल आ चुके हैं। फलियां बनने की तैयारी है। ऐसी विविध स्थिति में कीट प्रकोप बढऩे की आशंका है। कीट भी फसल की संवेदनशील अवस्था को पसंद करते हैं, ऐसे में पूर्व तैयारी आवश्यक है। जलवायु परिवर्तन और मौसम बदलाव को देखते हुए कीट प्रबंधन के लिए पहले से ही व्यवस्था शुरू करनी चाहिए।

प्रमुख कीट समस्याएं

डॉ शर्मा ने कहा कि सोयाबीन फसल को तना मक्खी 40 त्न,गर्डल बीटल 58 त्न,सफ़ेद मक्खी 80 त्न ,सेमीलूपर 46 त्न और चने की इल्ली 95 त्न तक नुकसान पहुंचा सकती है, अत: इन्हें हल्के में नहीं लेना चाहिए। इनसे बचाव का मूल मंत्र यही है कि कीटों की सही पहचान हो और उनका सही समय पर सही उपचार हो। कीटों के प्रकोप से बचाव के लिए कीटों की पहली पीढ़ी को नियंत्रित करना अति आवश्यक है। यदि पहली पीढ़ी को नियंत्रित कर लिया तो फिर दूसरी और तीसरी पीढ़ी के कीटों की संख्या ज़्यादा नहीं बढ़ेगी और कीट प्रबंधन करना आसान हो जाएगा। आपने बोनी से पहले बीजोपचार करने की सलाह देते हुए कहा कि इससे 15-20 दिन तक फसल का प्रारम्भिक बचाव हो जाएगा।बीजोपचार के लिए एफआईआर अर्थात फंजीसाइड (एफ) ,इंसेक्टिसाइड (आई )और राइजोबियम (आर )से बीजोपचार करना चाहिए। रासायनिक बीजोपचार बोनी से 10 -15 दिन पहले भी कर सकते हैं, लेकिन राइजोबियम से बीजोपचार बोनी से तुरंत पहले करना चाहिए।

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सेमीलूपर से नुकसान

सेमीलूपर की पहली पीढ़ी से होने वाली क्षति के बारे में डॉ शर्मा ने बताया कि जैसे -जैसे सोयाबीन का पौधा बढ़ेगा वैसे -वैसे कीटों की संख्या भी बढ़ेगी। यदि दूसरी और तीसरी पीढ़ी की इल्लियां आ गई तो पत्तियों और दानों की संख्या में कमी आएगी जिससे उत्पादन में गिरावट आ सकती है। कामलिया कीट /तम्बाकू की इल्ली के लिए इसके पतंगे पट्टी के निचले हिस्से में झुण्ड में अंडे देते हैं। शुरू में यह एक ही पत्ती पर होते हैं। इसलिए खेत की लगातार निगरानी करते रहें और ऐसे कीट ग्रसित पौधों को खेत से तुरंत निकालकर नष्ट कर दें।

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फेरोमेन ट्रेप का प्रयोग

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तम्बाकू की इल्ली और चने की इल्ली से बचाव के लिए फिरामोन ट्रैप के उपयोग की सलाह देते हुए डॉ शर्मा ने कहा कि फिरामोन ट्रैप लगाएं। इसकी गंध से पतंगे यहाँ आने लगेंगे। यदि अधिक संख्या में लगा दिए तो फायदा ज़्यादा होगा। आपने सलाह दी कि इसके केप्सूल को कभी भी नंगे हाथ से नहीं निकालना चाहिए, क्योंकि हाथ की गंध केप्सूल की गंध को खत्म कर देगी। अन्य सावधानी यह रखें कि बारिश का पानी नीचे पन्नी में इक_ा न हो। इसके लिए आलपिन से छोटे-छोटे कुछ छेद कर दें। दोनों तरह के कीटों के लिए अलग-अलग फिरामोन ट्रैप लगाए। एक एकड़ में 7 -8 अर्थात कुल 15 फिरामोन ट्रैप पर्याप्त हैं।

जैविक कीटनाशक का उपयोग करें

सोयाबीन की इल्लियां जब छोटी रहती हैं, तब उनका बहुत अच्छा रासायनिक कीटनाशक जैसा नियंत्रण होता है। ये सूक्ष्म जीव कीटों ,इल्लियों में बीमारियां पैदा कर उन्हें मारते हैं। यह नैसर्गिक रूप से वातावरण में मौजूद रहते हैं। हालाँकि इनसे कीट बाद की अवस्था में मरते हैं। इसमें समय बहुत अधिक लगता है।दवाई निर्माता इन मरी हुई इल्लियों से सूक्ष्म जीव बेक्टेरिया, फफूंद और वायरस निकालकर दवाई बनाकर बेच रहे हैं। लेकिन इसकी मांग कम होने से कम प्रचलन में है। किसानों को इसके लिए मांग करनी पड़ेगी। इसका चलन शुरू करें। इसकी मारक क्षमता बहुत अच्छी है।छोटी इल्लियों में इसका प्रयोग करने पर 80 -90 त्न कीट नियंत्रित हो जाते हैं।

मिश्रित कीटनाशक

इन दिनों किसानों द्वारा खड़ी फसल में कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों के मिश्रण का प्रयोग बढ़ गया है। अधिकांश किसान इसे डाल रहे हैं। इसमें आसानी भी रहती है। उसी समय कीटों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। इस समस्या को देखते हुए किसानों के अनुभव के आधार पर अनुसन्धान कर उल्लेखित मिश्रित कीटनाशक तैयार किए हैं। देखें सूची। हालाँकि अब चार केमिकल वाले मॉलिक्यूल्स भी आ गए हैं, जिनमें से दो कीटनाशक और दो खरपतवारनाशक हैं। इनमें से कौन सा मिश्रण उपयुक्त रहेगा इस पर अभी अनुसन्धान चल रहा है। इसके लिए इंतज़ार करना पड़ेगा ,तब तक सूची के मिश्रण उपयोग किए जा सकते हैं। जिन किसानों ने बोने के तुरंत बाद वाला खरपतवारनाशक का प्रयोग किया है तो क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल का प्रयोग फसल में फूल आने के 4 -5 दिन पूर्व कर दें। यह बहुत सुरक्षित कीटनाशक है। इसका असर 25 -30 दिन तक रहता है। इल्लियों को नियंत्रित करता है। कीटनाशक और पानी के लिए अनुशंसित मात्रा का ही प्रयोग करें।

तना मक्खी

कुछ वर्षों से देखने में आया है कि तना मक्खी के कारण सोयाबीन की फसल को बहुत नुकसान होता है। मप्र और महाराष्ट्र में भी प्रकोप बढ़ गया है। तना मक्खी अकेला ऐसा कीट है जो पूरे भारत में नुकसान पहुंचाती है। वातावरण में बदलाव से इसका जीवन चक्र प्रभावित होता है। तापमान ज्यादा होने से जीवन चक्र 15 -16 दिन में एक जीवन चक्र पूरा हो जाता है। इनकी अंडा देने की क्षमता बढ़ जाती है। यह प्रारम्भिक अवस्था में ज़्यादा नुकसान पहुंचाती है। तीन पत्तियां आना शुरू होती है , तब से प्रकोप शुरू हो जाता है। पत्तियां सूखने लगती है। ऐसे प्रभावित कीटों का निरीक्षण करें। सूखे पौधे को उखाडक़र देखें यदि नीचे फफूंद जैसा दिखे तो यह अन्य बीमारी है , लेकिन इसे चीरकर देखें उसमे पीली इल्ली दिखे तो यह तना मक्खी की इल्ली है। यह पौधे को पूरा खोखला नहीं करती है ,बल्कि टेढ़ी मेढ़ी सुरंग बनाती है। बीजोपचार से बचाव हो सकता है। अफलन का कारण फूलों का नष्ट होना है। इन्हें इल्लियां खा जाती है। अत: फूलों की सुरक्षा महत्वपूर्ण है।

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पीला मोजेक

पीला मोजाइक वायरस की बीमारी है। इसके वाहक का काम सफ़ेद मक्खियां करती है। इसे खत्म तो नहीं लेकिन कम किया जा सकता है। इसके लिए यलो स्टिकी ट्रैप का प्रयोग करें। खेत में 15 -20 जगह लगाएं। मक्खियां चिपक जाएंगी। रोगग्रस्त पौधों को खेत से निकाल दें। उपचार के लिए बीटासायफ्लुथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड @ 350 मिली /हे या थायोमिथाक्सम +लेम्बड़ा सायहेलोथ्रिन @125 मिली /हे का प्रयोग करें। बर्ड पर्च का प्रयोग – खेती में चिडिय़ों का खेती में बहुत महत्व है। प्रत्येक चिडिय़ा एक घंटे में 40 -50 इल्लियां खा जाती है। टी आकार की खूंटियां फसल से डेढ़ -दी फ़ीट की ऊंचाई पर जितनी चाहे लगाएं। फिरोमान ट्रैप भी लगाएं। इससे यह पतंगों को भी खाएंगी। इससे चिडिय़ों की क्षमता में 20 त्न की वृद्धि हो जाती है। गर्डल बीटल की इल्लियां तने को खोखला कर देती है। पत्तियां मुरझाने लगती है। इसके लिए जागरूक रहें। समय -समय से फसल का निरीक्षण करते रहें और रोगग्रस्त पौधे खेत से बाहर कर दें ।

बर्ड पर्च का प्रयोग

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खेती में चिडिय़ों का खेती में बहुत महत्व है। प्रत्येक चिडिय़ा एक घंटे में 40-50  इल्लियां खा जाती है। टी आकार की खूंटियां फसल से डेढ़-दो फ़ीट की ऊंचाई पर जितनी चाहे लगाएं। फेरोमेन ट्रैप भी लगाएं। इससे यह पतंगों को भी खाएंगी। इससे चिडिय़ों की क्षमता में 20त्न की वृद्धि हो जाती है। गर्डल बीटल की इल्लियां तने को खोखला कर देती है। पत्तियां मुरझाने लगती हंै। इसके लिए जागरूक रहें। समय-समय से फसल का निरीक्षण करते रहें और रोगग्रस्त पौधे खेत से बाहर कर दें ।

कीटनाशक का प्रयोग कम कैसे करें

ट्रैप क्रॉप -डॉ शर्मा ने सोयाबीन में ट्रैप क्रॉप का जिक्र करते हुए कहा कि सोयाबीन के कीट विशेष गंध की ओर आकर्षित होते हैं। मालवा -निमाड़ में सुआ पालक की भाजी रूचि से खाई जाती है। यही सुआ में ऐसी गंध होती है जो पत्तियां खाने वाली इल्लियों और पतंगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। कीट सुआ पर आ जाते हैं और सोयाबीन की फसल सुरक्षित रहती है। इसके लिए 12 लाइन सोयाबीन की और 2 लाइन सुआ की डालें। अर्थात सोया और सुआ का 12 : 2 का अनुपात रखें। कतार से कतार की दूरी 45 सेमी रखें। 222 लाइन सोया की और 38 लाइन सुआ की आएगी अर्थात एक हेक्टेयर के बजाय सिर्फ 1710 वर्ग मीटर में कीटनाशक लगेगा। क्विनालफॉस ,लेम्बड़ा और इंडोक्साकार्ब जैसे कीटनाशक की मात्रा घट जाएगी। इस तरह 5 गुना कीटनाशक की मात्रा को कम कर सकते हैं।

जैविक कीटनाशकों का प्रयोग

इसके अलावा डॉ शर्मा ने वानस्पतिक कीटनाशकों की भी जानकारी दी जो इल्लियों का प्राकृतिक नियंत्रण करते हैं।नीम में कीटनाशक का गुण नहीं रहता है। पेड़ों की 2200 जातियों में कीटों को मारने के गुण रहते हैं। इनमें कुछ बबूल, सीताफल, धतूरा के बीज और पत्तियां ,नीलगिरि , बेशरम, कुरी (लेंटाना ), तम्बाकू,और करंज की पत्तियां शामिल हैं।इनके कीटनाशक को घोल की तीव्रता के अनुसार चयन किया जा सकता है। 75 या 50 त्न तीव्रता वाले घोल ठीक रहते हैं। इल्लियों की दूसरी या तीसरी अवस्था में डालने से किसी भी रासायनिक कीटनाशक के बराबर परिणाम आते हैं।

रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग में रखी जाने वाली सावधानियां

डॉ शर्मा ने कहा कि सोयाबीन के लिए अनुमोदित कीटनाशक खरीदें, एक्सपायरी डेट का ध्यान रखें और दुकानदार से पक्का बिल अवश्य लें,कीटनाशक और पानी की अनुशंसित मात्रा का ही प्रयोग करें। स्प्रे तभी करें जब अगले 3 -4 घंटे वर्षा की संभावना न हो। इसके लिए मौसम विभाग के पूर्वानुमान की जानकारी ले लें। कीटनाशकों के खाली डिब्बों और पैकिंग को नष्ट कर दें। किसी अन्य उपयोग में न लें। छिडक़ाव के बाद हाथ, पैर और मुंह अच्छी तरह धोएं और कीटनाशक के दुष्प्रभाव के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें।

रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग

इसके बारे में डॉ शर्मा ने कहा कि कीटनाशक भी अलग -अलग कीटों के लिए पंजीकृत किए जाते हैं। कई कीटनाशक ऐसे होते हैं जो एक ही फसल के कई कीटों के लिए होते हैं। ब्लू बीटल अब नहीं आता है। तना मक्खी,सफ़ेद मक्खी ,अलसी की इल्ली के लिए फसल की अवस्था के अनुसार जानकारी देते हुए कहा कि यदि बीजोपचार कर चुके हैं, तो इनकी मात्रा कम लगेगी। आपने सेमी लूपर , तम्बाकू की इल्ली , हेलिओथिस के लिए प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशक की विस्तार से जानकारी दी। इसके अलावा केवल गर्डल बीटल के लिए उपचार बताए। (देखें सूची ) अंत में, डॉ शर्मा ने किसान भाइयों से अनुरोध किया कि कंपनियों ने कीटनाशकों के मिश्रण बनाकर दे दिए हैं। इनके अलावा अलग से कोई मिश्रण न बनाएं। इससे आपको अतिरिक्त लाभ नहीं होगा, बल्कि आपके रुपयों का नुकसान ही होगा।
(अगले अंक में देखें वेबिनार में शामिल कृषक बंधुओं की सोयाबीन से जुड़ी शंकाएं, समस्याएं और डॉ. शर्मा के समाधान)

ड्रोन बना स्टेटस सिम्बल

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संचालक श्री सचिन बोन्द्रिया ने ड्रोन के संबंध में डॉ शर्मा का दृष्टिकोण जानना चाहा। डॉ शर्मा ने कहा कि यह बहुत उपयोगी है। अब बहुत सी चीजें सरल हो गई हैं।दवाई और पानी ले जाने के लिए खेतों में जाना नहीं पड़ता। लेकिन इसकी कुछ सीमाएं भी है ड्रोन में अल्ट्रा लो वॉल्यूम कीटनाशक पड़ते हैं जो कम मात्रा में लगते हैं, जबकि अभी जो प्रचलित कीटनाशक हैं वह लो वॉल्यूम के हैं। ड्रोन के इस्तेमाल के पहले वहां का वातावरण कैसा है ?रसायन डालते समय वायु की गति, तापमान और ड्रोन की ऊंचाई का भी ध्यान रखना पड़ेगा। पायलट कितना सक्षम है यह भी देखना पड़ेगा कंपनियों को इसका संज्ञान है। धीरे धीरे यह सुविधा भी विकसित हो जाएगी। डॉ शर्मा ने किसानों से आग्रह किया कि पहले इस पूरी तकनीक को समझ लें उसके बाद ड्रोन को अपनाएं यह अब स्टेटस सिंबल बन गया है ,इस और ना जाएं श्री राजेश बांके और श्री बनाप सिंह वर्मा ने भी प्रश्न पूछे कृषि ज्ञान प्रतियोगिता कासवाल था कि सोयाबीन की फसल में कोई पांच की कोई पांच प्रमुख कीट बताएं इसका सबसे सही और त्वरित उत्तर श्री लक्ष्मीनारायण दुबलिया , पोलाय जागीर (सोनकच्छ) जिला देवास ने दिया। इन्हें कृषक जगत द्वारा सदाबहार खेती पुरस्कार स्वरूप भेजी जा रही है ।

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