फसल से किसान का रिश्ता जरूरी : कृषि वैज्ञानिक डॉ. शर्मा
17 अगस्त 2022, इंदौर । फसल से किसान का रिश्ता जरूरी : कृषि वैज्ञानिक डॉ. शर्मा – कृषक जगत द्वारा गत दिनों सोयाबीन में समेकित कीट प्रबंधन (खरीफ 2022) पर वेबिनार आयोजित किया गया, जिसके मुख्य वक्ता डॉ. अमरनाथ शर्मा, सेवानिवृत्त प्रधान वैज्ञानिक (कीट प्रबंधन), भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर थे। डॉ. शर्मा ने सोयाबीन में लगने वाले कीटों एवं उनके जैविक, प्राकृतिक और रसायनिक उपचार की विस्तार से जानकारी दी। इस वेबिनार में मप्र के अलावा राजस्थान के किसान भी शामिल हुए। किसानों द्वारा सोयाबीन को लेकर पूछे गए सवालों का डॉ. शर्मा ने समाधानकारक जवाब दिए। इस प्रश्न उत्तर श्रृंखला की पहली कड़ी में चुनिंदा विषय पाठकों के लिए यहां प्रस्तुत हैं।
श्री परमानन्द पंवार (हरदा) ज़्यादा बारिश के कारण सोयाबीन फसल की ऊंचाई कम रहने, पीलापन की समस्या-क्या खड़ी फसल में यूरिया और डीएपी डाल सकते हैं। डॉ. अमरनाथ शर्मा ने कहा कि खड़ी फसल में उर्वरक डालने की अनुशंसा नहीं की गई है। जो भी उर्वरक डालने हैं वो बुवाई के समय ही डालने चाहिए ताकि पौधों को प्रारम्भिक अवस्था में ही पोषण मिल सके। अधिक पानी के कारण मिट्टी संतृप्त हो जाती है और पौधों की जड़ों में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है। इसके अलावा आइरन भी कैल्शियम के साथ मिल जाता है। इससे भी पीलापन आ जाता है और उसकी वृद्धि रुक जाती है। मौसम साफ होने और धूप निकलने पर पीलापन कम होने लगता है। यदि बीजोपचार कर लिया है तो फंगस नहीं होगा। चिलेटेड फार्मुलेशन भी हैं। फेरस सल्फेट के दो-तीन स्प्रे कर सकते हैं। टॉनिक के असर के सवाल पर डॉ. शर्मा ने स्पष्ट किया कि शुरुआत में ही पोषक तत्व दे दिए तो टॉनिक की जरूरत नहीं है। टॉनिक फसल को सिर्फ हरापन देते हैं, स्वस्थ दिखना अलग बात है, लेकिन यह अच्छे उत्पादन में परिवर्तित होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है।
बॉयो स्टूमिलेंट और टॉनिक में फर्क
डॉ. शर्मा ने बायो स्टूमिलेंट और टॉनिक में फर्क बताते हुए कहा कि टॉनिक सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति करता है लेकिन बायो स्टूमिलेंट में सी वीड और ओक्जिन होते हैं जो पौधे की सूखे या ज़्यादा पानी को सहने की क्षमता विकसित करते हैं और पौधे की ग्रोथ बढ़ाते हैं। बाजार में जो टॉनिक आकर्षक पैकिंग में महंगे दामों में बेचे जा रहे हैं उसमें केवल ह्यूमिक एसिड और पानी होता है। किसानों का बचाव करने के लिए ही इस विषय की यहाँ चर्चा की जा रही है। मूंग की फसल के कारण खड़ी फसल में यूरिया डीएपी डालना गलत है। सोयाबीन दलहनी फसल है ,जिसमें सल्फर की भी जरूरत है। इसकी अनुशंसित मात्रा डालना चाहिए, ताकि पौधा स्वस्थ रहे।
श्री सुशील पाटीदार मंदसौर चने की फसल में टी आकार की खूंटियां और एनपीवीबी संबंधी सवाल पर डॉ. शर्मा ने कहा कि सोयाबीन के लिए अलग अनुशंसा की गई है। दोनों के फेरो अलग होते हैं और अलग -अलग काम करते हैं। चने की इल्ली, तम्बाकू की इल्ली के लिए फेरोमोन उपलब्ध हैं।
श्री संजय मामोदिया (खाचरौद) ने करीब 40 दिन की फसल में कोराजन और सोलोमन का उपयोग किया है। यदि बाद में फलियां खाने वाली इल्लियां आएंगी तो क्या पुन: इसका उपयोग कर सकते हैं? डॉ. शर्मा – आपने दोनों को मिला दिया। अगर आगे इल्लियां आती हैं तो दूसरा कीटनाशक एमप्लिगो या अलिका लें। कोराजन का बड़ी इल्लियों पर असर नहीं होता। डॉ. शर्मा ने स्पष्ट किया कि इमिडाक्लोप्रिड का 17.8 एसएल वाला फार्मूला सोयाबीन के लिए अनुशंसित नहीं है। वह कपास की फसल के लिए है। इमिडाक्लोप्रिड का 41.8 प्रतिशत वाला सीड ट्रीटमेंट के लिए अनुशंसित है। पिछले दो सालों से सोयाबीन में अंतिम समय में बारिश होने से जड़ गलन की शिकायत आ रही है। कौन सा फंगीसाइड ठीक रहेगा। जेएस 2034 और 9560 में पौधा परिपक्व होने लगता है, अधिक पानी से समस्या आ जाती है। फलियों में दाना भरने लगे तब ओपेरा या प्रायक्सर डालें।
श्री अमित त्यागी (बारां) सोयाबीन की 15 दिन की फसल में पहले कोराजन और फिर अलिका डालने के बाद भी रिंग कटर की समस्या आ रही है। गर्डल बीटल के लिए थायोक्लोप्रिड और टेट्रानिलीप्रोल का फूलों पर अनुशंसित मात्रा में स्प्रे कर सकते हैं। यह बाजार में एलांटो, वायगो और एक्सपोनस के नाम से बिकते हैं।
श्री बलवंत चंद्रावत नीमच सोयाबीन में चारकोल राठ बीमारी की समस्या। डॉ. शर्मा – चारकोल रॉट में एंथ्रेक्नोज से ग्रसित पौधों की पत्तियां उलट जाती हैं और शिराएं बुरी पडऩे लगती हैं। चारकोल रॉट पर कोई फंगीसाइड कंट्रोल नहीं कर पाता यह बीमारी वातावरण से प्रभावित होकर दिखाई देती है। वातावरण में स्वच्छता होने पर लक्षण दिखते हैं। पौधे की पत्तियां, तने पर कालापन दिखता है, इसके लिए जरूरी है कि जमीन की नमी को बनाए रखने के लिए एक सिंचाई कर दें। यह प्रकोप वहीं रुक जाएगा। स्प्रिंकलर भी दे सकते हैं। यह अच्छी बात है कि मध्य प्रदेश में यह बीमारी ज्यादा नहीं है दक्षिण भारत में देखी जाती है चारकोल रॉट में तना काला पडक़र सूखने लगता है यदि नाखून से खुरच कर देखें तो इसमें सुरमा जैसा पाउडर दिखता है। इसके पत्ते पौधों से झड़ते नहीं है बल्कि तिरछे होकर लटक जाते हैं। मौसम ठीक रहा और गर्मी ज्यादा समय तक रही तो इसके लक्षण पनप नहीं पाएंगे।
गर्डल बीटल कब तक रहता है
श्री अंकित जोशी गौतमपुरा गर्डल बीटल रोग कितनी अवस्था तक रहता है। डॉ. शर्मा ने स्पष्ट किया कि यह रोग नहीं बल्कि कीट है इसका एक बार नियंत्रण कर लिया तो 70 से 80 प्रतिशत तक यह नियंत्रित हो जाता है। रिंग कटर में सोयाबीन की पत्तियां तने के ऊपर पत्तियां सूखने लगती है। इसके लिए दवाई डालने की जरूरत है इसमें कीट शाखाओं के ऊपर अंडे देते हैं और 90 प्रतिशत तक इल्लियां निकल आती है। आर-3 में फलियों में दाना भरना शुरू होता है। इसमें फंगीसाइड का प्रयोग करने के अच्छे नतीजे मिलते हैं। पौधा, बीज का अंकुरण होने के समय से ही सही मात्रा लेना शुरू कर देता है, अत: बोनी के साथ उर्वरक देना चाहिए।
फसल से किसान का रिश्ता जरूरी
श्री लक्ष्मी नारायण दुबे दुबलिया, देवास क्या नया केमिकल ब्रूफ्लानिलाइट गर्डल बीटल के अलावा तना छेदक,सफेद मक्खी और अन्य इल्लियों को भी कंट्रोल कर सकता है ? डॉ. शर्मा जिस कीट को ज्यादा नियंत्रित करने की जरूरत है, उसे कर लेना चाहिए। अन्य को प्रिवेंशन में ले लिया जाए। एक पीढ़ी के खत्म होते ही दूसरी पीढ़ी जन्म ले लेती है दवाइयों की मात्रा, अपने विवेक और तर्क के आधार पर खेत के परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेना चाहिए। जो विकल्प सस्ते हैं, उनका प्रयोग करें क्योंकि कीटों की प्रतिरोधी क्षमता बढऩे का खतरा रहता है आवश्यकता के अनुसार नया कीटनाशक प्रयोग कर सकते हैं। डॉ. शर्मा ने बताया कि यदि पत्ती खाने वाली इल्लियां एक वर्ग मीटर में चार से ज़्यादा होने दिखाई दे तो समझ लीजिए गंभीर समस्या हो रही है। 4-5 दिन में कीटनाशक डालने की जरूरत है। फेरोमेन ट्रैप लगाएं। पहली रात से पतंगे आना शुरू हो जाते हैं। तीन रात तक देखें। यदि औसत 5-8 पतंगे दिखे तो यह अंडे देने की तैयारी है। ऐसे में खेतों का मौका मुआयना करें। फसल को नजदीक से देखें तो आपको महसूस होगा की फसल आपसे बात कर रही है फसल से किसान का रिश्ता होना जरूरी है।
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