सोयाबीन लगाने वाले किसान खेत की जुताई करें
10 मई 2024, नई दिल्ली: सोयाबीन लगाने वाले किसान खेत की जुताई करें – भा. कृ. अनु.प.- भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान की सलाह
सोयाबीन फसल के लिए 3 वर्षों में एक बार खेत की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करना उत्पादन स्थिरता एवं आर्थिक की दृष्टि से लाभकारी होता हैं। इसी प्रकार एकल किस्म की खेती के स्थान पर न्यूनतम 2-3 किस्मों की खेती करने में जोखिम कम होती हैं। अत: कृषकगण यथासंभव ध्यान दे.
खेत की तैयारी: कृषकों को सलाह है कि 3 वर्षों में एक बार अपने खेत की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें और विपरीत दिशाओं में दो बार कल्टीवेटर एवं पाटा चलाकर खेत को तैयार करें। विगत वर्षों में गहरी जुताई किये जाने पर केवल विपरीत दिशाओं में कल्टीवेटर (बखरनी) एवं पाटा चलाकर खेत तैयार करने की सलाह हैं
कार्बनिक खाद का प्रयोग: पोषण प्रबंधन के लिए, अंतिम बखरनी से पूर्व गोबर की खाद (5-40 टन/हे.) या मुर्गी खाद (2.5 टन/हे.) को खेत में फैलाकर अच्छी तरह मिला दें।
वर्षाजल के समुचित उपयोग हेतु सब सॉइलर का प्रयोग: संभव होने पर 5 वर्ष में एक बार अपनी सुविधा अनुसार अंतिम बखरनी से पूर्व 40 मीटर के अंतराल पर सब-सॉइलर चलायें, जिससे वर्षा जल खेत की गहरी सतह तक जा सके और सूखे की अनपेक्षित स्थिति फसल को नमी मिलती रहे। साथ ही इससे मिट्टी की कठोर परत तोडऩे में तथा नमी का संचार अधिक समय तक रखने में सहायता मिलती है।
किस्मों का चयन: अपने जलवायु क्षेत्र के लिए अनुकूल विभिन्न समयावधि में पकने वाली न्यूनतम 2-3 नोटिफाइड सोयाबीन की किस्मों का चयन कर बीज उपलब्धता सुनिश्चित करें। ऐसे किसान जो सोयाबीन के बाद आलू, प्याज, लहसुन जैसी फसल लेकर गेहूं/चना लगाते हों, सोयाबीन की शीघ्र समयावधि वाली किस्म को लगायें. उसी प्रकार वर्ष में केवल दो फसलें लेने वाले कृषक मध्यम/अधिक समय परिपक्वता अवधि वाली किस्मों का चयन करें।
अंकुरण परिक्षण: बीज की गुणवत्ता (न्यूनतम 70 प्रतिशत अंकुरण) एवं बीज दर निर्धारण हेतु उपलब्ध बीज का अंकुरण परिक्षण करें।
बोवनी/दूरी: उत्पादन की दृष्टि से प्रति हेक्टेयर पौध संख्या अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु है। अत: सोयाबीन फसल के लिए अनुशंसित 45 सेमी कतारों पर तथा 5-10 सेमी पौधों की दूरी पर बोवनी करें।
बीज दर: सोयाबीन में बड़े आकार के बीज की तुलना में छोटे या माध्यम आकार के बीज की अंकुरण क्षमता अधिक होती हैं। अत: न्यूनतम 70 प्रतिशत बीज अंकुरण, बीज का आकार एवं अनुशंसित दूरी को ध्यान में रखकर 60-75 किग्रा/हे. बीज दर अपनाना उत्पादन एवं आर्थिक दृष्टि से लाभकारी होगा।
बुवाई विधि: कृषकों को सलाह है कि जहाँ तक संभव हो सोयाबीन की बोवनी बी.बी.एफ. (चौड़ी क्यारी प्रणाली) या (रिज-फरो पद्धति) कूढ़-मेड़-प्रणाली से करें।
मशीनीकरण: सोयाबीन की खेती के लिए उपयोगी अन्य यंत्र (सीड ड्रिल, स्प्रेयर, आदि) की मरम्मत कर समय पर उपयोग योग्य रखे।
आदान उपलब्धता: सोयाबीन की खेती के लिए आवश्यक आदान (बीज, खाद-उर्वरक, फफूंदनाशक, कीटनाशक, खरपतवारनाशक, जैविक कल्चर आदि) का क्रय एवं उपलब्धता सुनिश्चित करें।
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