Crop Cultivation (फसल की खेती)

मक्का में ‘ फॉल आर्मी वर्म ’

Share
  • आर.डी. बारपेटे वैज्ञानिक, पौध संरक्षण ,
    डॉ. व्ही. के. वर्मा वरिष्ठ वैज्ञानिक
    कृषि विज्ञान केन्द्र, बैतूल (म.प्र.)
12 जुलाई 2021,  मक्का में ‘ फॉल आर्मी वर्म’ –

आर्मी वर्म या फौजी कीट से हम पहले से परिचित हैं। अनुकूल परिस्थिति में यह कीट प्रभावित फसल को गंभीर क्षति पहुंचाता है। फौजी कीट अपने नाम के अनुरूप बड़े समूह में फसल के ऊपर आक्रमण करता है एवं उच्च तापमान (30-35 डिग्री से. से अधिक) एवं उच्च आद्र्रता (70 प्रतिशत से अधिक) होने पर यह कीट फसल को पूर्ण रूप से नष्ट करने की क्षमता रखता है।

मिथिमना सेपराटा एवं स्पोडोप्टेरा लिटुरा आर्मी वर्म की ये प्रजातियां पहले से हमारे क्षेत्रों में कहीं-कहीं देखी जाती रही है परंतु पिछले तीन वर्षों से फौजी कीट की नई प्रजाति स्पोडोप्टेरा फ्रूजीपर्डा हमारे देश में खासकर दक्षिण भारत (तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक आदि) में मक्के की फसल को गंभीर क्षति पहुंचा रहा है। इस वर्ष भी इन दक्षिण भारतीय राज्यों में रबी मौसम में मक्के की फसल को इस कीट से भारी क्षति हुई है।

fall-army-warm2

विगत वर्षों में म.प्र. के छिंदवाड़ा एवं बैतूल जिले में भी रबी मक्का में इसका गंभीर प्रकोप देखा गया है। इसके पूर्व बैतूल जिले में रबी मौसम में गेहूं की फसल जो अक्टूबर माह में बोई गई थी, उसमें भी इस कीट का प्रकोप हुआ था। अत: आगामी खरीफ में मक्का फसल पर इस कीट के गंभीर प्रकोप की संभावनाएं हैं। सोयाबीन में घटती उत्पादकता के कारण विगत वर्षों में मक्का फसल का क्षेत्रफल तेजी से बढ़ा है और आगामी मौसम में इसमें और वृद्धि संभावित है। अत: आने वाले मौसम में यह कीट हम सबके लिए एक गंभीर चुनौती हो सकता है। समय-समय पर कृषक भाई एवं कृषि विस्तार अधिकारी कुछ सावधानियां रखें तो इस कीट का प्रभावी प्रबंधन संभव है।

यह कीट बहुभक्षी है। अत: जिले की सभी फसलें इससे प्रभावित हो सकती हैं, पंरतु मक्का इस कीट के लिए पसंदीदा फसल है। इसलिए इस फसल में इसका सर्वाधिक प्रकोप संभव है।
कीट की पहचान- वयस्क शलभ तम्बाकू की इल्ली के शलभ से काफी समानता लिए हुए धब्बेदार धूसर से गहरे-भूरे रंग के होते हैं। इनके पंखों का विस्तार लगभग 40 मि.मी. होता है। पंखों के शीर्ष भाग पर सफेद पट्टियां होती हैं। फॉल आर्मी वर्म के अंडों का आकार ‘‘डोम शेप’’ में होता है। सामान्यत: 50 से अधिक अंडे एक समूह में होते हैं। मादा शलभ इन अंडों को धूसर रंग की पपड़ी से ढक देती है जो सामान्यत: फफूंद होने का आभास देती है। नव निशेचित इल्ली सामान्य रूप हल्के पीले हरे रंग की होती है जिसका सिर काला होता है। द्वितीय अवस्था के पश्चात् सिर का रंग लाल भूरा हो जाता है। इस लाल रंग के सिर पर उल्टे वाई आकार की काली संरचना इस कीट की प्रमुख पहचान है।

क्षति के लक्षण –

Makka1jpg

आरंभिक अवस्था में इस कीट की इल्ली भूमि की सतह के पास की पत्तियों का भक्षण करती है। प्रगत अवस्था में पूरे पौधे (मक्के की पत्तियां, भुट्टे, नर पुष्प) पर आक्रमण कर पौधों में सिर्फ डंठल एवं पत्तियों में मध्य शिरा छोडक़र शेष भाग को गंभीर क्षति पहुंचाती है। स्वभाव से निशाचर होने के कारण इल्लियां दिन में पत्तियों में छुप जाती हैं एवं रात में ज्यादा सक्रिय होकर फसल को क्षति पहुंचाती है।
जीवन चक्र- 35-40 दिन में एक चक्र पूरा करने वाला यह कीट अनुकूल मौसम में इस कीट की 6-7 पीढिय़ां एक वर्ष में होती है। प्रतिकूल मौसम में यह कीट शंखी अवस्था में भूमि में रहता है एवं मानसून आने पर तेजी से अपनी संख्या में वृद्धि करता है। कीट की वयस्क तितली लंबी उड़ान भरकर अपने जीवनकाल में सैकड़ों किलोमीटर तक उड़ सकती है। अत: अनुकूल मौसम रहने पर यह कीट बड़े भूभाग को अपनी चपेट में ले सकता है।

 

प्रबंधन- किसान भाई फॉल आर्मी वर्म के प्रबंधन हेतु कीट वैज्ञानिकों द्वारा की गई निम्नलिखित अनुशंसाएं एवं उपाय करना सुनिश्चित करें-

  •  ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करके शंखी अवस्था को नष्ट करें।
  • समय पर बुआई करें, मानसून पूर्व शुष्क बोनी ज्यादा प्रभावी है। शुष्क बोनी नहीं करने पर मानसून वर्षा के साथ ही बुआई करें, विलंब न करें। देर से बोई गई फसल में इस कीट का प्रकोप ज्यादा गंभीर होता है।
  • अनुशंसित पौध अंतरण (60-75 से.मी. कतार से कतार एवं 30 से.मी. पौध से पौध) पर बुआई करें
  • संतुलित उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा 120: 60-80: 30 प्रति हेक्टेयर के अनुपात में क्रमश: नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश की मात्रा का प्रयोग करें। नत्रजन की मात्रा 3 बार में दें। प्रथम मात्रा 1/3 भाग बोनी के समय अन्य तत्वों के साथ, शेष मात्रा को दो समान भागों में बोनी के पश्चात् 20-25 दिन के अंतराल पर दें। संकर मक्का के लिए 20-25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट बोनी के समय दें। नत्रजन युक्त उर्वरक विशेष रूप से यूरिया का अतिरिक्त उपयोग इस कीट को गंभीर रूप से बढ़ाता है।
  •  जिन क्षेत्रों में खरीफ की मक्का ली जाती है उन क्षेत्रों में ग्रीष्मकालीन मक्का ना लें तथा अनुशंसित फसल चक्र अपनाएं।
  • अंतरवर्तीय फसल के रूप में दलहनी फसल मूंग, उड़द लगाएं।
  • प्रारंभिक अवस्था में लकड़ी का बुरादा या राख या बारीक रेत पौधे की पोंगली में डालें।
  • जैविक कीटनाशक के रूप में बी.टी. 1 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर अथवा बिवेरिया बेसियाना 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर का छिडक़ाव सुबह अथवा शाम के समय करें।
  • फॉल आर्मी वर्म की निगरानी एवं नियंत्रण हेतु इस कीट का फेरोमोन प्रपंच 8-10 प्रति हेक्टेयर, 20-25 दिन की फसल अवस्था से लेकर नर पुष्प के आने तक लगायें। 20 दिन के अंतराल पर फेरोमोन का सेप्टा बदल देे।
  • लगभग 5 प्रतिशत प्रकोप होने पर रसायनिक कीटनाशक के रूप में फ्लूबेन्डामाइट 20, डब्ल्यू. डी.जी. 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर, एमिमामेक्टिन बेंजोएट 5 एस.जी. का 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर में कीट प्रकोप की स्थिति अनुसार 15-20 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिडक़ाव करें। प्रथम छिडक़ाव बुआई के बाद 15 दिन की अवधि में अवश्य करें।

 

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *