उलाला से कपास कीटों पर प्रभावी नियंत्रण
- अभिजीत जगदले,
क्रॉप मैनेजर-कॉटन,
यूपीएल लि.
5 जुलाई 2021, उलाला से कपास कीटों पर प्रभावी नियंत्रण – कपास भारत की सबसे अधिक उगाई जाने वाली व्यावसायिक फसलों में से एक है। यह देश के लगभग सभी क्षेत्रों में काली मिट्टी में अच्छी तरह से पैदा होती है। इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब। इसे वस्त्र राजा के नाम से भी जाना जाता है। सरकार द्वारा न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) में निरंतर वृद्धि के साथ कपास किसानों की आय के आशाजनक स्रोत के रूप में बोई जाती है, इसलिए कपास सदियों से किसानों द्वारा सबसे अधिक पसंद की जाने वाली फसल है, इसी तरह कपास दुनिया भर में कीटों द्वारा भी पसंद की जाती है। दुनिया भर में कपास के प्रमुख कीट बॉल वर्म कॉम्प्लेक्स और सकिंग पेस्ट कॉम्प्लेक्स हैं, बैसिलस थुरिंजिनसिस (बीटी जीन) के सफल रूप से पेश होने के साथ वैज्ञानिकों ने बॉल वर्म कॉम्प्लेक्स को नियंत्रित करने में सफलता प्राप्त की है। हालांकि सकिंग पेस्ट कॉम्प्लेक्स से खतरा अभी भी बना हुआ है।
सकिंग पेस्ट कॉम्प्लेक्स में एफिड्स, जैसिड्स, सफेद मक्खी और थ्रिप्स आते हैं। सकिंग पेस्ट पौधे के बढ़ते सिरों पर हमला करके वनस्पति विकास को प्रभावित करके भारी नुकसान पहुंचाते हैं, जो फूल को प्रभावित करता है और बड़ी मात्रा में विकास को रोकता है। यदि ठीक से प्रबंधित नहीं किया जाता तो सकिंग पेस्ट उपज को 33 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा सकते हैं। यूपीएल अपनी फॉस्किल, लांसर गोल्ड जैसे ब्रांडों की अत्यधिक विश्वसनीय श्रृंखला के साथ हमेशा कपास किसानों के साथ रहा है। अब यूपीएल विश्व स्तर पर प्रशंसित नवीनतम तकनीक और भारतीय बाजार के लिए एकदम नया मॉलिक्यूल- उलाला लेकर आया है। उलाला भारतीय बाजार में लॉन्च होने के बाद से एफिड्स, जैसिड्स और सफेद मक्खी के प्रबंधन में सबसे आगे रहा है। अब तक उलाला ने हर साल पूरे भारत में 70 लाख एकड़ से अधिक का कृषि भूमि में कीट प्रबंधन किया है।
आइए समझते हैं कि उलाला हमारी कपास की फसल को सफेद मक्खी से कैसे बचाता है।
- उलाला की कार्रवाई का तरीका अनूठा है।
- आईआरएसी ने इसे ‘चयनात्मक आहार अवरोधक’ के रूप में वर्गीकृत किया है।
- उलाला का यह गुण सुनिश्चित करता है कि कीटों में कोई क्रॉस प्रतिरोध न हो।
उलाला
यूपीएल का उलाला रसचूसक कीटों (तेला,माहू और सफेद मक्खी) के नियंत्रण के लिए बना हुआ एक अत्याधुनिक कीटनाशक है।
उलाला की विशेषतायें
- उलाला रसचूसक कीटों को लंबी अवधि तक नियंत्रित करता है, जिसके कारण कम मात्रा में छिडक़ाव करना पड़ता है। इसीलिये उलाला किफायती है।
- उलाला के काम करने का तरीका बाजार में उपलब्ध अन्य कीटनाशकों से अलग है। जिसके कारण उलाला प्रतिरोधी (जिद्दी) कीटों को भी नियंत्रित करता है।
- उलाला छिडक़ाव करने के 3 घंटे बाद, यदि वर्षा होती है तो भी उलाला प्रभावी है।
- उलाला अन्य कीटनाशकों की तुलना में मित्र कीड़ों तथा पर्यावरण के लिये सुरक्षित है।
उलाला के काम करने का तरीका
- उलाला अंतरप्रवाही और पारगामी गतिविधि वाला कीटनाशक है। अत: छिडक़ाव करने पर यह जल्दी ही पूरे पौधे में फैल जाता है।
- उलाला छिडक़ाव की हुई पत्तियों का रस चूसने के कुछ मिनटों (30 मिनटों) में कीट अपनी रस चूसने की क्षमता खो देते हैं तथा भूख के कारण कुछ ही दिनों में उनकी मृत्यु हो जाती है।
- जिसके फलस्वरूप फसल को होने वाला नुकसान 30 मिनट में ही रूक जाता है।
छिडक़ाव का तरीका
- उलाला को पानी में अच्छी तरह से घोलने के बाद ही टंकी में डालें और छिडक़ें।
- छिडक़ाव के दौरान पौधों को पानी से अच्छी तरह ऊपर से नीचे तक भिगोएं। कम से कम 200 लीटर पानी प्रति एकड़ इस्तेमाल करें। उच्च मात्रा स्प्रेयर का ही इस्तेमाल करें।
प्रयोग की मात्रा
तेला, सफेद मक्खी और माहू के लिए 80 ग्राम/एकड़ के हिसाब से छिडक़ाव करें।