गर्मी में लगायें मक्का
भूमि का चुनाव – मक्के की खेती ऐसी भूमि में की जानी चाहिए जिसका पी.एच.मान 6.0 से 7.0 तक हो। जल भराव मक्के की फसल के लिए बहुत हानिकारक होता है। सामान्यत: मक्का की खेती सभी प्रकार की मृदाओं, बालुई मिट्टी से भारी चिकनी मिट्टी तक में सफलतापूर्वक की जा सकती है।
समय पर बुवाई – खरीफ की फसल के लिए बुवाई जून के द्वितीय पखवाड़ा से लेकर जुलाई के प्रथम पखवाड़ा तक व वर्षा आधारित द्विफसली खेती के लिए बुवाई जून में खरीफ व नवम्बर माह में रबी फसल की बुवाई करनी चाहिए। जायद फसल लेने के लिए बुआई का समय जनवरी से मार्च तक का है।
भूमि की तैयारी- खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करने के बाद दो से तीन बार कल्टीवेटर से आड़ी-खड़ी जुताई करके जमीन को भुरभुरी एवं महीन बना लेेते हैं। पाटा चलाकर खेत को समतल बना लेना चाहिए। इससे अच्छा अंकुरण होता है। बुआई के 20 दिन पूर्व 20-25 गाड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिला दिया जाता है।
उन्नतशील किस्में – विवेक मक्का हाईब्रिड-27, गंगा-4, गंगा-11, दक्कन-103, वी.एल.-42
बीज की मात्रा एवं बीजोपचार- साधारण तया संकर जातियों का 15-20 किलोग्राम बीज एक हेक्टेयर एवं चारे की फसल के लिये 40-50 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है। जायद में भुट्टे के लिए खेती करने पर 20 से 25 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। बीज बोने से पहले थायरम या बाविस्टीन नामक फफूंद नाश्क दवा की 2 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। बीज की बुआई 3-5 सेन्टी मीटर गहराई पर की जानी चाहिए। बोआई कतार विधि से करने पर अधिक लाभ प्राप्त होता है।
मक्का एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है जिसे अंग्रेजी में मेज कहते हैं एवं वास्तविक नाम जिया मेज है। विश्व एवं भारत में मक्का एक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। इसका उपयोग पशु चारे के रूप में भी किया जाता है। इसके उत्पादन का 26 प्रतिशत मनुष्य आहार, 11 प्रतिशत जानवरों के आहार, 48 प्रतिशत मुर्गी के आहार, 12 प्रतिशत औद्योगिक उत्पादन एवं शेष स्टार्च एवं बीज के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। इसके अलावा मक्का का प्रयोग कार्न फ्लेक्स, तेल निकालने में, स्टार्च के लिये, पाप कार्न, शराब बनाने आदि के रूप में भी किया जाता है। विश्व के खाद्यान्न उत्पादन में इसका 25 प्रतिशत योगदान है। धान्य फसलों के क्षेत्रफल एवं उत्पादन की दृष्टि से मक्का का स्थान तीसरा है। भारत में मक्का का रकबा 7.27 मिलियन हेक्टेयर है। |
पौध अन्तरण – मौसम के आधार पर अंतराल रखने से उत्पादन अच्छा प्राप्त होता है। जायद मौसम की फसल में कतार से कतार के बीच की दूरी 45-60 सेन्टीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 25 सेंटीमीटर होना चाहिए। सामान्यत: खेत में 25-30 हजार पौधे प्रति एकड़ होने पर वांछित उत्पादन प्राप्त होता है।
उर्वरक व खाद प्रबंधन – मक्के की अनुमानित उपज पाने के लिए 2 वर्ष में एक बार 8-10 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। मिट्टी का परीक्षण कराकर उसमें उपलब्ध पोषक तत्वों की स्थिति तथा बोई जाने वाली किस्में एवं अवधि के अनुसार ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए निम्नानुसार उर्वरकों का प्रबंधन करें-
फास्फोरस एवं पोटाश की संपूर्ण मात्रा बुवाई के समय खेत में मिला देना चाहिए। नत्रजन की मात्रा को तीन भागों में बांटकर प्रयोग करने से उर्वरक की पूरी मात्रा पौधों को प्राप्त होती है। नत्रजल की एक तिहाई मात्रा बुवाई के समय दूसरी तिहाई मात्रा मक्के की घुटने तक ऊंचाई होने पर व अंतिम मात्रा नरमंजरी अवस्था में देना चाहिए। जिंक की कमी वाले क्षेत्रों में 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टयेर की दर से जिंक सल्फेट का प्रयोग हर तीसरे वर्ष बुवाई के समय आधार उर्वरक के रूप में करना चाहिए।
जल प्रबंधन – फसल के लिए पानी की अधिकता एवं कमी दोनों ही हानिकारक है। खरीफ में सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। ग्रीष्म कालीन फसल में 10-15 दिन के अंतरात में सिंचाई करते रहना आवश्यक होता है। पूरी फसल अवधि में 8-10 सिंचाई की आवश्यकता होती है। जिसमें तीन सिंचाई फूल आने के पहले व तीन फूल आने के बाद की जाती है।
अंतरवर्तीय फसलों से अतिरिक्त लाभ – अंतरवर्तीय खेती में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए ऐसी फसल का चुनाव करना चाहिए जिससे कुल उत्पादन में वृद्धि हो। ग्रीष्म कालीन मक्का के साथ मूंग या उड़द की अंतरवर्तीय खेती की जा सकती है।
दाने वाली किस्म | उर्वरक किलोग्राम प्रति हेक्टेयर | ||
नाईट्रोजन | फास्फोरस | पोटाश | |
शीघ्र पकने वाली | 80 | 50 | 30 |
मध्यम पकने वाली | 100 | 60 | 40 |
देरी से पकने वाली | 120 | 60 | 40 |
- सृष्टि पाण्डेय
- दामिनी थवाइथ
गर्मी में मक्का की खेती