फसल की खेती (Crop Cultivation)

खरीफ फसलों के विपुल उत्पादन हेतु सलाह

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6 जुलाई 2022, टीकमगढ़ । खरीफ फसलों के विपुल उत्पादन हेतु सलाह कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ़ के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी.एस. किरार, वैज्ञानिक, डॉ. आई.डी. सिंह, डॉ. यू.एस. धाकड़, डॉ. एस.के. जाटव द्वारा किसानों को खरीफ फसलों की विपुल उत्पादन हेतु समसामयिकी सलाह दी गयी। जिले में खरीफ मौसम में मुख्यत: उड़द, मूंगफली, तिल, सोयाबीन, ज्वार की खेती की जाती है। विगत 2-3 वर्षों से जिले में मूंगफली का क्षेत्रफल बढ़ रहा है और तिल, सोयाबीन एवं उड़द का क्षेत्रफल एवं उत्पादन जलवायु परिवर्तन के कारण घट रहा है। फसलों का चयन समय के अनुरूप मांग एवं जलवायु सहनशीलता कृषि पद्धति को अपनाकर फसलों के गिरते क्षेत्रफल एवं उत्पादकता को कम कर सकते हैं। उड़द की उन्नत किस्में प्रताप उड़द-1, आईपीयू 94-1, मुकुन्दरा, शेखर-2, 3, पीयू-30 आदि पीला मौजेक रोग प्रतिरोधी किस्में हैं।

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मूंगफली की उन्नत किस्में टीजी-37ए, जेजीएन-23, आरजी-578, गिरनार-2, टीजी-39, जीजी-20 आदि। इन सभी में तेल की मात्रा 48 से 51 प्रतिशत तक है। तिल की अधिक उत्पादन वाली नई किस्में टीकेजी-306 (दाना सफेद), 308 (दाना सफेद), जवाहर तिल-14 (काला बीज), 12 (दाना सफेद) आदि का चयन कर बीज की 1.5 से 2 कि.ग्रा. प्रति एकड़ व्यवस्था करें। सोयाबीन की नई किस्मों के अंतर्गत जेएस 20-34, 20-29, 20-69, 20-98 एवं आरवीएस 2001-04 आदि किस्में बहुरोग रोधी हैं। जेएस 20-69, 20-34 कम पानी एवं कम वर्षा वाले क्षेत्रों हेतु उपयुक्त हैं। मूँग की उन्नत किस्में सिखा, विराट, आईपीएम 2-3, एमएच-421 आदि पीला मौजेक प्रतिरोधी एवं अधिक उत्पादन देने वाली किस्में हैं।

सभी फसलों के बीजों को बुवाई से पूर्व बीजोपचार कार्बोक्सिन + थायरम दवा 2 ग्रा./किग्रा बीज की दर से उपचार कर बुवाई करें, जिससे बीज जनित फफूंदनाशक बीमारियों से फसल को बचाया जा सके। दलहनी एवं तिलहनी फसलों की बुवाई रेज्ड एवं फरौ पद्धति या बीबीएफ (चौड़ी क्यारी नाली) विधि से कतारों में बुवाई करने से कम पानी एवं अधिक पानी दोनों ही स्थिति में फसल सुरक्षित रहती है। जिले में अधिकांशत: किसान छिडक़वा विधि से बोते हैं इसलिए दलहन एवं तिलहन फसल में नुकसान उठाना पड़ रहा है।

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