फसल की खेती (Crop Cultivation)

अरबी की उन्नत खेती

भूमि एवं जलवायु
इसकी खेती के लिये गहरी उपजाऊ व अच्छे पानी के निकास वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती हैं।
उपयुक्त किस्में
बी-250 तथा बी-260, पंचमुखी, सतमुखी, सीओ-1, श्री किरन, श्री पल्लवी, श्री रश्मी अरबी की उपयुक्त किस्में हैं।
खेत की तैयारी एवं बुवाई
इसके लिये खेत की गहरी जुताई करते हैं तथा बुवाई हेतु 45 सेन्टीमीटर की दूरी पर डोलियाँ बना लेनी चाहिये। इसे फरवरी-मार्च तथा जून-जुलाई में बोया जाता हैं। इसे 45 सेन्टीमीटर की दूरी पर बनी डोलियों पर 30 सेन्टीमीटर की दूरी पर लगाते हैं। बुवाई के लिये 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मंझोले अंकुरित बीज या 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर छोटे बीज की आवश्यकता होती हैं।
खाद एवं उर्वरक
150 से 200 क्विंटल प्रति हैक्टेयर गोबर की खाद खेत तैयार करते समय दें। इसके अतिरिक्त 50 किलो फास्फोरस तथा 100 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर डोलियाँ बनाने से पहले जमीन में दें। इसके बाद प्रति हेक्टेयर 100 किलो नत्रजन दो भागों में बांटकर, कंद लगाने के एक माह बाद एवं शेष इसके एक माह बाद दें।
सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई
गर्मी में सिंचाई 8 से 10 दिन के अन्तर पर तथा वर्षा ऋतु में आवश्यकतानुसार करनी चाहिये। अरबी फसल में 3 से 4 सप्ताह बाद निराई-गुड़ाई करने की आवश्यकता होती हैं। वर्षा के बाद गुड़ाई कर डोलियों पर मिट्टी चढ़ानी चाहिये।
व्याधियाँ
रोग की शुरूआत पर पत्तियों पर जलीय धब्बे बनते हैं जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं। ऐसे धब्बे गोल से अनियमित आकार के होते हैं। धब्बों के ऊतक मर जाते हैं और सम्पूर्ण पत्तियाँ झुलसती जाती हैं।
नियंत्रण हेतु रोग के लक्षण दिखाई देते ही कवकनाशी दवायें जैसे- मैन्काजेब या जाइनेब 2 ग्राम या रिडोमिल एम जेड 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें। यह छिड़काव 10 से 12 दिन बाद दोहरायें।
खुदाई व उपज
अरबी की फसल 130 से 140 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं। इसकी उपज 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती हैं।
बीज संग्रहण
पौधों की पत्तियाँ जब पूरी तरह सूखकर गिर जायें तब जड़ों को क्षति पहुँचाये बिना पौधों को जड़ों सहित उखाड़ लेना चाहिये तथा ठण्डी जगह पर सुरक्षित रख लेना चाहिये।

कीट
माहू (मोयला)
ये अरबी का महत्वपूर्ण कीट हैं तथा पत्तियों व टहनियों से रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं। जब प्रकोप अधिक होता है तो पत्तियाँ नीचे की ओर मुड़ जाती हैं और पीली पड़कर सूख जाती हैं। ये कीट विषाणु रोग फैलाने में भी सहायक हैं।
नियंत्रण हेतु डाईमिथिएट 30 ई.सी. या मिथाइल डिमेटोन 25 ई. सी. 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़कें।
मिलीबग

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इसके शिशु कीट कंदों से रस चूसकर नुकसान पहुँचाते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके द्वारा भी एक तरह का मीठा चिपचिपा पदार्थ (हनीड्यू) छोड़ा जाता है जिस पर काला कवक शूटी मोल्ड लग जाता है।

स्केल कीट – ये कीट रस चूसकर नुकसान पहुँचाते हैं जिसके फलस्वरूप उत्पादन में गिरावट आ जाती है।
बुवाई के लिये रोग रहित प्रमाणित स्वस्थ कंद ही उपयोग में लाने चाहिये। सिकुड़े हुए या सूखे कन्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये। मिलीबग एवं स्केल कीट के नियंत्रण हेतु बुवाई से पूर्व कंदों को डाईमिथियेट 30 ई सी 0.05 प्रतिशत के घोल से उपचारित करना चाहिये। इसके बाद कंदों को छाया में सुखाकर बुवाई के काम में लेना चाहिये।

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