फसल की खेती (Crop Cultivation)उद्यानिकी (Horticulture)

रजनीगंधा की उन्नत खेती करने के आसान तरीके

रजनीगंधा की खेती 

रजनीगंधा एक व्यावसायिक एवं बहुवर्षीय कंद वाला फूल है। इसका प्रसारण कंद से किया जाता है। फूल चिकने, सुगंधित एवं रंग सफेद होता है।  फूल को अच्छी किस्म के इत्र बनाने में प्रयोग किया जाता है। भारत में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, महाराष्ट्र और कर्नाटक में इसकी खेती काफी बड़े क्षेत्र में ही जाती है।

भूमि  का चयन 

बलुई दोमट भूमि जिसमें जल निकास की समुचित व्यवस्था हो, रजनीगंधा उत्पादन के लिए अति उत्तम होती है।

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खेत की तैयारी

खेत की अच्छी तरह से तैयारी करें। इसके लिए दो बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2 बार देशी हल, डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से जुताई करके खेत तैयार करें। अंतिम जुताई के साथ ही खेत में 40-50 टन अच्छी तरह से पकी हुई गोबर खाद को मिट्टी में मिला दें। उत्तम होगा यदि खाद मिलाने का कार्य फरवरी-मार्च में ही पूरा कर दें।

खाद एवं उर्वरक

प्रति हैक्टर खेत के लिए 260 यूरिया तथा 370 किग्रा सुपर फास्फेट एवं 100 किलो ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश की आवश्यकता होती है। फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा रोपाई के समय तथा बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा रोपाई के 6 सप्ताह बाद दें।

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रोपण विधि

30-60 ग्राम वजन के कंद रोपाई के लिये उपयुक्त पाये गये हैं, रजनीगंधा के कंद की रोपाई मार्च-अप्रैल माह में करें। रोपाई में देरी करने से फूलने की अवधि कम हो जाती है। ङ्क्षसगल किस्मों को खेल की उर्वराशक्ति तथा फसल की अवधि के अनुसार 15-30 सेमी. की दूरी पर्र जबकि डबल किस्मों की दूरी 20&20 या 25&25 सेमी पर रोपा जाता है।

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देखरेख

रजनीगंधा की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिऐ भूमि में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। इससे स्वस्थ पौधे प्राप्त होने के साथ-साथ फूल उत्पादन पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। अप्रैल-जून के महीनों में एक-एक सप्ताह के अंतराल पर सिंचाई करें। अक्टूबर से मार्च माह तक 10-15 दिन के अंतराल नमी देखते हुए सिंचाई करें।

वृद्धि नियामक रसायन का उपयोग

जीए3 का 25-100 पीपीएम सांद्रता का फसल पर छिड़काव या 10-500 पीपीएम के घोल का उपयोग रोपाई के पहले कन्द के उपचार हेतु करने से स्पाइक की लम्बाई तथा प्रति स्पाइक फूलों (फ्लोरेट) की संख्या में कुछ बढ़ोत्तरी पायी गयी। फूल रोपाई के लगभग 90-105 दिन बाद काटने योग्य तैयार हो जाते हैं। फूल स्पाइक पर एक-एक करके खिलते हैं। अत: माला बनाने के लिए फूल जैसे ही खिलें उन्हें तोड़ कर उपयोग में लाएं। अंतिम फूल तोडऩे के साथ-साथ डंठल (स्पाइक) को भी जमीन के पास से काट लें। एक हेक्टेयर खेत में लगभग 8-10 टन तक फूल प्राप्त किये जा सकते हैं। एक किलो वजन में लगभग 650 फूल आते हैं। यदि कटे फूल के रुप में अर्थात स्पाइक को ही बेचने के लिए रजनीगंधा की खेती करें तो स्पाइक अर्थात् फूल के डंठल को उस समय काटें जबकि स्पाइक की सबसे नीचे वाली फूल की पंखुड़ी खिलने वाली हो। काटने के बाद अच्छी तरह से पैंकिग कर यथाशीघ्र भेजने का प्रबंध करें नहीं तो ठंडे भंडारण में तब तक रखें जब तक कि बेचने की व्यवस्था न हो जाये, लेकिन ध्यान रहे कि यह समय बहुत लम्बा न होने पाये। फूल की सुबह में कटाई करना अतिउत्तम होता है। कटे फूल की ग्रेडिंग (छटाई) आकार एवं गुणवत्ता के अनुसार करके छोटे-छोटे बंडल में बांध कर (ग_र बनाकर) भण्डारगृह (स्टोर) में रखें, हो सके तो स्टोरेज (भण्डारगृह) में कम से कम समय के लिए रखें। साधारणत: एक रात रखने से फूल यथास्थिति में रहते हैं। फूल के डंठल को हमेशा खड़ी दशा में ही रखने की व्यवस्था करें। इससे फूल अधिक सुरक्षित रहते हैं।

किस्में

फूल की बनावट तथा पौधे की पत्तियों के आधार पर किस्मों को चार वर्गो में रखा गया है कि सिंगल, डबल, सेमी डबल तथ बेरीगेटेड नाम से जाना जाता है। सिंगल किस्में ज्यादा क्षेत्र में उगायी जाती हंै परंतु डबल किस्में भी काफी महत्वपूर्ण और आकर्षक होती है। मुम्बई, कलकत्ता व दिल्ली में इसके फूल की बहुत ही मांग है। डबल किस्मों की स्पाइक मध्य पूर्व देशों में भी विदेशी मुद्रा अर्जित करने के लिए भेजी जाती है क्योंकि वहां पर इस किस्म के फूल को लोग ज्यादा पसंद करते हैं।

सिंगल (इकहरी पंक्ति) किस्में

सिंगल किस्मों के फूल में सुगंध डबल किस्मों से ज्यादा पाई जाती है। सिंगल फूल की पंखुड़ी एक ही लाइन की होती है व फूल एकदम सफेद रंग के होते हैं। जैसे- कलकत्ता सिंगल, पंतनगर सिंगल, कोयम्बटूर सिंगल, बंगलौर सिंगल, सिंगल मैक्सिकन इत्यादि।

दोहरी किस्में

दोहरी किस्मों को पर्ल (मोती) के नाम से जाना जाता है। इसकी पंखुडियां की हर एक लाइन को आसानी से अलग किया जा सकता है। फूल सफेद रंग के साथ ही हल्के गुलाबी रंग की झलक लिऐ हुए होते हंै। इनमें कलकत्ता डबल तथा डबल पर्ल मुख्य है। जाड़े के समय में इसके फूल में सुगंध काफी बढ़ जाती है।

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अद्र्ध दोहरी

यह किस्म भी दोहरी फूल की तरह ही होती है, परंतु पंखुडिय़ों की संख्या डबल फूल से कम होती है। इसकी मुख्य किस्म है कलकत्ता सेमी डबल।

बेरीगेटेड (रंगबिरंगी) किस्म 

बेरीगेटेड किस्मों में रजत (रजत रेखा) एवं धवल (स्वर्ण रेखा) है। इन किस्मों की पत्तियों के बेरीगेटेड होने के कारण से किस्में आकर्षक पत्ती व फूल दोनों के लिए ही उगायी जा सकती हैं क्योंकि जब पौधे में फूल नहीं भी होते हंै तो भी ये पौधे सुंदर लगते है।

  • बीएस असाटी  
  • आशुलता कौशल
  • अभय बिसेन
  • एमके चन्द्राकर 
  • मो. : 9424278185 
  • email: bsa_horti@yahoo.co.in
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