रामतिल की खेती कैसे करे, जाने आसान और आधुनिक तरीके
14 जून 2025, नई दिल्ली: रामतिल की खेती कैसे करे, जाने आसान और आधुनिक तरीके – रामतिल, जिसे नाइजर या राम तिल भी कहते हैं, एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। यह ज्यादातर बारिश पर निर्भर खेती में उगाई जाती है और इसके बीजों का इस्तेमाल खाने से लेकर कई उद्योगों में होता है। रामतिल के बीज में 37-47% तेल होता है, जो हल्का पीला, अखरोट जैसा स्वाद और खुशबू वाला होता है। इस तेल का उपयोग खाना पकाने, त्वचा पर लगाने, पेंट, मुलायम साबुन, और इत्र उद्योग में बेस ऑयल के रूप में किया जाता है। साथ ही, इसका उपयोग जन्म नियंत्रण और कुछ बीमारियों के इलाज में भी होता है। रामतिल का खल (बीज निकालने के बाद बचा हिस्सा) पशुओं, खासकर दुधारू मवेशियों के लिए पौष्टिक चारा है और खाद के रूप में भी काम आता है। इसे हरी खाद के तौर पर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं।
भारत में रामतिल की खेती खरीफ के मौसम में करीब 2.61 लाख हेक्टेयर में होती है, लेकिन ओडिशा में इसे रबी की फसल के रूप में उगाया जाता है। आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और पश्चिम बंगाल इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। औसत उपज 3.21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, लेकिन बेहतर तकनीकों से इसे बढ़ाया जा सकता है।
रामतिल की खेती के लिए जरूरी बातें
1. जलवायु और मिट्टी
रामतिल को बारिश आधारित खेती के लिए 1000-1300 मिमी वर्षा आदर्श है। इसे खरीफ या रबी में अकेले या बाजरा, रागी, मूंगफली जैसी फसलों के साथ मिश्रित रूप में बो सकते हैं। यह फसल चिकनी दोमट, रेतीली दोमट, हल्की काली मिट्टी, या लैटेराइट मिट्टी में अच्छी तरह उगती है। यह थोड़ी क्षारीय और लवणीय मिट्टी को भी सहन कर लेती है।
2. रामतनी की उन्नत किस्में
हर राज्य में अलग-अलग उन्नत किस्में लोकप्रिय हैं:
- मध्य प्रदेश/छत्तीसगढ़: जेएनसी-6, जेएनसी-1, जेएनसी-9
- महाराष्ट्र: आईजीपी-76, फुले कराला-1
- कर्नाटक: आरसीआर-317, आरसीआर-18, केबीएन-1
- ओडिशा: जीए-10, उत्कल रामतिल-150
- झारखंड: बिरसा रामतिल-1, बिरसा रामतिल-2, बीएनएस-10
- गुजरात: गुजरात रामतिल-1, एनआरएस-96-1
- तमिलनाडु: पैतूर-1
3. बीज और बुआई
- बीज की मात्रा: अकेली फसल के लिए 5 किलो प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है।
- बीज उपचार: बुआई से पहले बीज को थिरम या कैप्टान (3 ग्राम/किलो बीज) से उपचार करें। साथ ही, 10 ग्राम/किलो एजाटोबैक्टर, 8 ग्राम/किलो ट्राइकोडर्मा, और 10 ग्राम/किलो पीएसबी से उपचार करने से उपज 20% तक बढ़ सकती है।
- बुआई का तरीका: खेत को 3-4 बार जोतकर तैयार करें, उसके बाद सीढ़ीनुमा तरीके से जुताई करके अच्छी तरह से मिट्टी तैयार की जानी चाहिए। फसल को बड़े पैमाने पर छिटककर बोया जाता है। बीजों को रेत/पीसा हुआ एफवाईएम/राख के साथ मिलाया जाता है, ताकि बीज का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए 20 गुना अधिक मात्रा में बीज डाला जा सके। 30 सेमी x 10 सेमी की दूरी पर लाइन में बोना लाभदायक पाया गया है। 25 सेमी की दूरी पर 5 सेमी गहराई के खांचे तैयार किए जाने चाहिए। बीजों को अधिमानतः 3-5 सेमी गहराई पर खांचे में रखा जाना चाहिए। फिर खांचे के साथ सीढ़ीनुमा तरीके से बीज को लगभग 3-5 सेमी की मिट्टी की परत से ढक दिया जाना चाहिए। इससे मिट्टी का संघनन सुनिश्चित होता है, जिसके परिणामस्वरूप त्वरित और समान अंकुरण होता है।
4. खाद और उर्वरक
रामतिल ज्यादातर बिना उर्वरक के उगाई जाती है, लेकिन थोड़ा ध्यान देने से उपज बढ़ सकती है। कुछ राज्यों में अनुशंसित उर्वरक खुराक:
- मध्य प्रदेश: बुआई के समय 10 किलो नाइट्रोजन + 20 किलो फॉस्फोरस, और 35 दिन बाद 10 किलो नाइट्रोजन।
- महाराष्ट्र: 4 टन गोबर की खाद + 20 किलो नाइट्रोजन बुआई के समय।
- ओडिशा: 20 किलो नाइट्रोजन + 40 किलो फॉस्फोरस बुआई के समय, और 30 दिन बाद 20 किलो नाइट्रोजन।
- झारखंड/बिहार: 20 किलो नाइट्रोजन + 20 किलो फॉस्फोरस + 20 किलो पोटाश + 15 किलो जिंक सल्फेट।
- सल्फर (20-30 किलो/हेक्टेयर) देने से बीज और तेल की मात्रा बढ़ती है।
5. खरपतवार नियंत्रण
बुआई के 15-20 दिन बाद पहली निराई करें। ओडिशा में कुसकुटा (परजीवी पौधा) की समस्या हो सकती है। कुसकुटा-मुक्त बीज लें और 1 मिमी की छलनी से बीज साफ करें।
बुआई से पहले फ्लूक्लोरालिन (1 किलो/हेक्टेयर) या पेंडीमेथालिन (1.5 किलो/हेक्टेयर) का छिड़काव करें।
6. पानी का प्रबंधन
रामतिल बारिश पर निर्भर फसल है, इसलिए आमतौर पर सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन अगर सूखा पड़े, तो अंकुरण के समय हल्की सिंचाई से उपज दोगुनी हो सकती है।
7. कीट और रोग नियंत्रण
रामतिल में गंभीर कीट या रोग की समस्या नहीं देखी गई, इसलिए पौध संरक्षण की जरूरत कम ही पड़ती है।
8. मधुमक्खी परागण
परागण बढ़ाने के लिए प्रति हेक्टेयर 5 मधुमक्खी कॉलोनियां रखें। इससे उपज में सुधार होता है।
9. कटाई और उपज
- कटाई का समय: बुआई के 95-105 दिन बाद, जब पत्तियां सूख जाएं और फूलों का रंग भूरा/काला हो जाए, फसल काट लें।
- उपज: अकेली फसल में 400-500 किलो/हेक्टेयर और मिश्रित फसल में 150-300 किलो/हेक्टेयर
रामतिल की खेती के फायदे
- कम लागत और कम मेहनत वाली फसल।
- तेल, चारा, खाद, और हरी खाद के रूप में बहुउपयोगी।
- सूखा और खराब मिट्टी में भी अच्छी तरह उगती है।
- इत्र, साबुन, और औषधीय उद्योगों में मांग।
रामतिल की खेती छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है। सही किस्म, बीज उपचार, और हल्का उर्वरक प्रबंधन अपनाकर आप इसकी उपज और आय को आसानी से बढ़ा सकते हैं।
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