फसल की खेती (Crop Cultivation)

मौसम मैं करेला, ककड़ी, लौकी, कद्दू की खेती कैसे करें

आया मौसम करेला, ककड़ी लगाने का

जलवायु एवं भूमि:

इनकी बेलों की अच्छी वृद्धि 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर होती है। इनके लिए उपजाऊ दोमट भूमि जहां पानी का निकास अच्छा हो वह मृदा उत्तम रहती है। इनकी खेती गर्मी और वर्षा ऋतु में की जाती है।

उन्नत किस्में

लौकी: पूसा समर प्रोलिफिक लोंग, पूसा समर प्रोलिफिक राउण्ड, पूसा मंजरी, पूसा नवीन, पूसा मेघदूत, अर्का बहार।
कद्दू: पूसा विश्वास, पूसा अलंकार, अर्का चंदन।
तरबूज: शुगर बेबी, असीहो आमेटो, दुर्गापुरा मीठा, दुर्गापुरा केसर, अर्का ज्योति, मधु, आर डब्ल्यू 187-2, एन एस-295, सुरभि, मधु, सुगंध।
खरबूजा: दुर्गापुरा मधु, पंजाब सुनहरी, पंजाब हाईब्रिड, अर्का जीत, हरा मधु, पूसा मधुरस, आर एम. 43, आर.एम. 50, एमएचवाई 5, एमएचवाई 3, एनएस 455।
चिकनी तुरई: पूसा चिकनी, सलेक्शन 90
धारीदार तुरई: पूसा नसदार
खीरा: बालम खीरा, पॉइनसेट, पूसा संयोग, स्ट्रेट एवं जापानीज लॉग।
करेला: कोयम्बटूर, पूसा दो मौसमी प्रिया, अर्का हरित, पूसा विशेष, ग्रीन लॉग।
टिंडा: बीकानेरी ग्रीन, दिल पसंद, टिण्डा लुधियाना एस-48, हिसार,सलेक्शन -1, अर्का टिण्डा।
ककड़ी: लखनऊ अगेती, अर्का शीतल।

बुवाई:

तरबूज, खरबुजा व ककड़ी फरवरी-मार्च में तथा तुरई, खीरा लौकी, कद्दू, करेला तथा टिण्डे की बुवाई ग्रीष्म कालीन फसल के लिए फरवरी मार्च व वर्षाकालीन फसल की जून- जुलाई में करना उचित है।

बीमारियों की रोकथाम के लिए बीजों को बोने से पूर्व बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलों बीज के हिसाब से उपचारित कर बोना चाहिए। बुवाई का समय इस बात पर निर्भर करता है कि इन सब्जियों की बुवाई नदी के पेटे में की जाती रही है या समतल भूमि पर।

अगेती फसल लेने के लिए बीजों को सीधे खेत में न बोकर प्लास्टिक की थैलियों में बोया जा सकता है। थैलियों में 1/3 भाग चिकनी मिट्टी, 1/3 भाग बालू व 1/3 भाग मीगनी या गोबर की खाद मिलाकर एक थैली में दो बीज को बोया जाता है।

थैलियों में रखे बीजों की झारे से सिंचाई करे, वातावरण गर्म बनाये रखने के लिए रात के समय थैलियों को पॉलीथिन से ढक दें। उपयुक्त तापमान होने पर तेयार खेत में स्थानान्तरण करें।

सीधे खेत में बोने के लिए बीजों को बुवाई से पूर्व 24 घण्टे पानी में भिगोने के बाद टाट में बांध कर 24 घण्टे रखें। उपयुक्त तापक्रम पर रखने से बीजों की अंकुरण प्रक्रिया गतिशील हो जाती है। इसके बाद बीजों को खेत में बोया जा सकता है, इससे अंकुरण प्रतिशत बढ़ जाता है।

कुष्माण्ड कुल की सब्जियों की बुवाई नालियों में करते है और एक स्थान पर दो-तीन बीज बोये जाते हैं। अंकुरण के कुछ दिन बाद 1-2 पौधों को रखकर शेष को हटा देते है।

खाद एवं उर्वरक: 

देशी खाद 200 से 250 क्विंटल/हेक्टेयर
नत्रजन 80 से 100 किलो/ हेक्टेयर
फास्फोरस 40 किलो/हेक्टेयर
पोटाश 40 किलो/हेक्टेयर

देशी खाद, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की 1/3 मात्रा बुवाई के समय भूमि में मिलाकर देवें तथा शेष नत्रजन को दो बराबर भागों में बांटकर खड़ी फसल में बुवाई के 25 से 30 दिन बाद व फूल आने के समय देना चाहिए।

सिंचाई एवं निराई गुड़ाई:
ग्रीष्म ऋतु की फसल में प्रारम्भिक दिनों में लगभग 10-12 दिन के अंतर से तथा बाद में तापमान बढऩे पर 5-6 दिन के अंतर से सिंचाई करनी चाहिए। खरीफ की फसल में प्राय: सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यदि लम्बे समय तक वर्षा न हो तो आवश्यकता सिंचाई अवश्य कर देनी चाहिए। पोधों की प्रारम्भिक बढ़ावार में खरपतवारों से काफी हानि होती है। अत: पौधों की छोटी अवस्थाओं में निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है। गर्मी की फसल में दो-तीन बार तथा बरसात की फसल में 3-4 बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ सकती है।
कुष्मांड कुल की सब्जियों की सफल खेती के लिए कुछ विशेष बातें:- द्य    इन सब्जियों की बुवाई नालियां बनाकर करनी चाहिए। इसके लिए 20-25 सेमी गहरी व 40-50 सेमी चौड़ी पूर्व से पश्चिम की ओर बना लें तथा नाली के एक तरफ बिजाई की जानी चाहिए। अगर नालियों की चौड़ाई बढ़ा दी जाय तो दोनों तरफ बीजाई की जा सकती हैं।

  • तालाब व नदियों के किनारे अगैती फसल उगाई जा सकती है।
  • इस कुल की बहुत सी सब्जियां गंधक चूर्ण से प्रभावित हो कर नष्ट हो जाती है। अत: इन दवाइयों को सोच समझ कर या विशेषज्ञों के सुझाव अनुसार ही उपयोग करें।
  • कीटनाशी दवाइयों का छिड़काव फसल पर सुबह के समय न करें क्योंकि इन सब्जियों में परागकण करने वाले लाभदायक कीट भी दवाई के प्रभाव से मर जाते हैं
  • कच्चे फल खाने वाली उन सब्जियों के फलों की तुड़ाई कोमल अवस्था में करते रहने से अच्छी व अधिक पैदावार मिलती है।

उपज : उन्नत तौर तरीकों से खेती करने पर प्रति हेक्टेयर भूमि से विभिन्न सब्जियों की उपज निम्नानुसार होती है-

सब्जी उपज
लौकी 150-250 क्विंटल
कददू 250-400 क्विंटल
तरबूज 250-500 क्विंटल
खरबूजा 150-200 क्विंटल
तुरई 100-125 क्विंटल
खीरा 100-125 क्विंटल
ककड़ी 60-80    क्विंटल
करेला 75-100  क्विंटल
टिण्डा 80-100  क्विंटल
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