पशुपालन (Animal Husbandry)

कड़कनाथ पालन में है रोजगार की अपार संभावनाएं

  • डॉ. अंचल केशरी , डॉ. नरेश कुरेचिया, डॉ. आर. के. जैन
  • डॉ. अशोक कुमार पाटिल , पशुपोषण विभाग,
    पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, महू

27 सितम्बर 2021, कड़कनाथ पालन में है रोजगार की अपार संभावनाएं कड़कनाथ भारतीय नस्ल का मुर्गा है, जिसका औसत शारीरिक भार 1.5 से 2 किलोग्राम है और वयस्क मुर्गी का वजन 1 से 1.5 किलोग्राम है। कडक़नाथ मुर्गियाँ 6 महीने बाद से अंडे देना शुरू कर देती हैं और सालाना 80 से 90 अंडे देती हैं। क्षेत्रीय भाषा में कडक़नाथ को कालामांसी भी कहा जाता है। यह मुख्यत: पश्चिमी मध्य प्रदेश के झाबुआ और धार जिलों में पाया जाता है एवं मुख्य रूप से भील और भिलाला जनजातीय समुदायों द्वारा पाला जाता है। कडक़नाथ के कारण मप्र के झाबुआ जिले की पहचान आज पूरे देश भर में हो रही है। भारत सरकार पर द्वारा 30 जुलाई, 2018 को झाबुआ (मध्यप्रदेश) कडक़नाथ के मांस के लिए भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग) द्वारा अनुमोदित किया गया है। मध्य प्रदेश की ये प्रजाति अब यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा-पंजाब समेत कई राज्यों में पायी जाने लगी है।

कड़कनाथ की विशेषताएं

कडक़नाथ की सबसे प्रमुख खासियत इसका काला रंग है, जो कि मेलेनिन की अधिकता के कारण होता है। पक्षियों के पंख, पैर, पैर के नाखून, चोंच, मांस और हड्डियाँ और यहां तक की आंतरिक अंग भी काले रंग के होते हैं। कडक़नाथ का मांस सेहत के लिए फायदेमंद होता है, इसके मांस में अन्य चिकन के मुकाबले में उच्च प्रोटीन और न्यूनतम वसा पाया जाता है। कडक़नाथ के एक किलोग्राम के मांस में कॉलेस्ट्राल की मात्रा करीब 170-180 मिली ग्राम होती है, जबकि अन्य मुर्गों में करीब 210-225 मिली ग्राम प्रति किलोग्राम होती है। इसी प्रकार कडक़नाथ के मांस में 23 से 25 प्रतिशत प्रोटीन होता है, जबकि अन्य मुर्गों में केवल 18 से 20 प्रतिशत ही प्रोटीन पाया जाता है। इसके अलावा, कडक़नाथ में लगभग 1.5-2 प्रतिशत चर्बी होती है, जबकि अन्य मुर्गों में चर्बी का प्रतिशत 5 से 6 तक पाया जाता है। इसका मांस एवं अंडा कैंसर, डायबिटीज, हृदय रोगियों के लिए यह बहुत ही फायदेमंद होता है। आदिवासी समुदायों द्वारा कडक़नाथ का उपयोग पुरुषों की दुर्बलता एवं महिलाओं में बाँझपन, असामान्य मासिक धर्म और आकस्मिक गर्भपात के इलाज में किया जाता है। उपरोक्त स्वास्थ्यवर्धक गुणों के कारण कडक़नाथ के मांस एवं अंडों की मांग देश व विदेश में दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

कड़कनाथ पालन के लाभ

कडक़नाथ पालन व्यवसाय का भविष्य बहुत ही उज्जवल है एवं इसको प्रारम्भ करने में कम निवेश की जरुरत होती है। दूसरे देशी नस्ल के मुर्गों के मुकाबले ये पक्षी सिर्फ चार से पांच महीने में तैयार हो जाता है और बाजार में यह 700 -800 रुपए में बिक जाता है। पांच सौ मुर्गियों के फार्म में मुर्गीपालन हर महीने 10 से 12 हजार रुपए कमा सकते है। कडक़नाथ का रखरखाव अन्य मुर्गों के मुकाबले आसान होता है, ये कम बीमार होते हैं और अगर इनका पालन बेकयार्ड तरीके से किया जाये तो इस मुर्गे के खान-पान में कोई ज्यादा खर्च नहीं आता है। यह पक्षी हरे चारे में बरसीम, बाजरा चरी बड़े ही चाव से खाते हैं।

कड़कनाथ पालन की पद्धति

बेकयार्ड फार्मिंग- यह कडक़नाथ पालन की एक पारंपरिक प्रणाली हैं। यह एक प्रकार की जैविक खेती है जिसमें अंडे और मांस में कोई हानिकारक अवशेष नहीं पाये जाते हंै। उपरोक्त पद्धति सामान्यत: 50 से कम पक्षियों के लिए उपयुक्त हैं। उपरोक्त पद्धति में पक्षियों को घर में स्थित आँगन या पिछबाड़े में पाला जाता है। पक्षी अपनी पोषण आवश्यकताओं के लिए अपशिष्ट पदार्थ (कीड़े, चींटियों, गिरे हुए अनाज, हरी घास, रसोई का कचरा आदि) पर निर्भर रहते हैं तथा अनाज के दानो को पूरक आहार के रूप में दिया जाता

व्यावसायिक फार्मिंग– विशिष्ट विशेषताओं से परिपूर्ण होने के बावजूद यह नस्ल कम उत्पादन क्षमता के कारण उपेक्षित रही है। पक्षियों का 140 दिनों में 920 ग्राम शारीरिक भार प्राप्त कर रहा है और 6 महीने की उम्र में यौन परिपक्वता प्राप्त हो रही है। पिछले दो दशकों के दौरान, कडक़नाथ की उत्पादकता में काफी वृद्धि प्राप्त हुई है, जो की मुख्यतय पोषण द्वारा प्रेरित है।

कड़कनाथ पालन तकनीक का विवरण

मुर्गी पालन में कुक्कुट प्रबंधन का महत्वपूर्ण योगदान होता है, कुक्कुट व्यवसाय में लगभग 80 प्रतिशत समस्याएं कुक्कुट प्रबंधन में की गयी लापरवाही के कारण ही उत्पन्न होती है । अत: कडक़नाथ मुर्गी पालकों को निम्न लिखित बातों को ध्यान में रखकर आगे बढऩे की सलाह दी जाती है। जैसे आहार व्यवस्था, आवास व्यवस्था, ब्रूडिंग व्यवस्था की सही जानकारी, कडक़नाथ चूजों में सही समय पर टीकाकरण कार्यक्रम, और सही समय पर कृमिनाशक दवाई का प्रयोग साथ ही साथ जैव सुरक्षा का ध्यान रखना मुख्य रूप से सम्मलित है।

आहार व्यवस्था

कडक़नाथ मुर्गों को मुख्यत: तीन प्रकार का दाना दिया जाता है।
चिक आहार – इस प्रकार के दाने में चूजों की आवश्यकतानुसार प्रोटीन एवं एनर्जी बराबर मात्रा में दी जाती है। इस प्रकार के दाने को देने की अवधि 500 ग्राम वजन तक मानी जाती है और अवधि 30-40 तक होती है।

गोवर आहार – इस प्रकार के दाने को 500 ग्राम वजन के बाद चालू करते है। इसमें एनर्जी की तुलना में प्रोटीन की मात्रा कम होती है।
लेयर आहार – इसको 750 ग्राम भार से चालू करें एवं अंतिम अवस्था तक चालू रखें इस दाने में एनर्जी एवं प्रोटीन का प्रतिशत क्रमश: 60 एवं 40 प्रतिशत होता है।

ब्रूडिंग व्यवस्था

ब्रूडिंग व्यवस्था चूजों के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण इकाई है। क्योंकि ब्रूडिंग में ही पक्षी का भविष्य, उत्पादन एवं लाभ व हानि निर्धारित होती है। इसलिये ब्रूडिंग का सही प्रबंधन पहले दिन से लेकर 4-6 सप्ताह तक की आयु तक करें। ब्रूडर का तापमान 90एस्न से 95एस्न तक होना अति आवश्यक है।

ब्रूडिंग के पहले दिन से ही चूजों को दाना खिलाने एवं पानी पिलाने का अभ्यास आवश्यक रूप से प्रारम्भ करें। प्रारंभिक अवस्था में चूजों को क्रम्बल दाना दें एवं चूजों को देखें की वे दाना व पानी सही मात्रा में ग्रहण करते हंै या नहीं। पानी में इलेक्ट्रोलाइट, विटामिन बी. कम्पलेक्स, सी., ई., के. और डी. दें। टीकाकरण हमेशा ठंडे मौसम में या रात के समय करें ताकि चूजे तनाव मुक्त रह सके।

आवास व्यवस्था

मुर्गी आवास में आवश्यक है कि सूर्य का प्रकाश मिलता रहे, लेकिन सूर्य का प्रकाश आवास के अंदर सीधा प्रवेश न करें। इससे बचने के लिए आवास की लंबाई पूर्व पश्चिम दिशा में हो। मुर्गी आवास की ऊंचाई 12 से 15 फिट तक हो। पानी एवं विद्युत की सही व्यवस्था हो। मुर्गी आवास शहर या कस्बों से दूर हो।

जैव सुरक्षा

जैव सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें क्योंकि इससे पक्षियों में आने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है। अत: बाहरी पशु पक्षी या इंसान को जो अपने साथ बीमारी के कारक लाते है पर रोक लगायें।

कडक़नाथ पालन में प्रमुख चुनौतियां –

  • तकनीकी ज्ञान का अभाव।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार की अपर्याप्त सुभिधा।
  • दाने लिए के पर्याप्त संसाधनों की कमी।
  • पशु चिकित्सा की अपर्याप्त सुविधा।
कड़कनाथ पालन का ग्रामीण रोजगार पर प्रभाव एवं सामाजिक न्याय प्रभाव

केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, कृषि विज्ञान केन्द्रों के सतत प्रयास और आर्या परियोजना, निकरा परियोजना एवं प्रधानमंत्री कोशल विकास योजना अंतर्गत ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण देकर उनको स्वावलंबी बनाने का कार्य किया जा रहा है। आदिवासी किसान भाई कडक़नाथ पालन की सम्पूर्ण तकनीकी जानकारी समझकर स्वेच्छा से अब इसका पालन कर आत्म निर्भर बन रहे हैं। जिसके फलस्वरूप इन गांवों से अदिवासी भाईयों के पलायन में काफी गिरावट दर्ज की गयी है। वर्तमान परिस्थिति एवं बाजार आकलन के आधार पर आने वाले समय में कडक़नाथ की बाजार माँग अत्यधिक बढऩे की संभावना है। अत: शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए कडक़नाथ पालन में रोजगार की अपार संभावना निहित है।

टीकाकरण
टीका  उम्र कैसे दें
मेरेक्स बीमारी पहला दिन मांस में
रानीखेत 7 दिन आई ड्राप / नाक में
आई.बी.डी.  14 दिन आई ड्राप / नाक में
लासोटा, रानीखेत 21 दिन पंख में
चेचक 42 दिन मांस में
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