पशुपालन (Animal Husbandry)

छोटी कद-काठी के लिए दुनियाभर में प्रसिध्द हैं ‘पुंगनूर गाय’

11 मई 2023, नई दिल्ली: छोटी कद-काठी के लिए दुनियाभर में प्रसिध्द हैं ‘पुंगनूर गाय’ – भारत में गाय का पालन कई वर्षों से चलता आ रहा हैं। किसान कई सदियों से खेती के साथ गायो को भी पाल रहे हैं। भारत में गाय की बहुत सारी देसी नस्लें हैं, जिनकी सबकी अपनी-अपनी खासियत होती हैं। इनमें से आपने विभिन्न प्रजातियों की गायो को देखा होगा और कुछ के बारें सुना भी होगा, इन्हीं में शामिल हैं एक पुंगनूर गाय, जो अपने कद-काठी के लिए पूरी दुनियाभर में मशहूर है। पुंगनूर गाय दुनिया की सबसे छोटे गाय हैं, जो अब विलुप्ती की कगार पर हैं। दिखनी में छोटी सी यह गाय में खूबियां बाकी नस्लों से काफी अलग है। इस नस्ल की गाय के दूध में वसा (Fat) की मात्रा अधिक होती है और यह औषधीय गुणों से भरपूर होता है। छोटा कद होने के चलते इस रख-रखाव में भी आसानी रहती है.

भारत में कहां पाई जाती हैं पुंगनूर गाय?

विलुप्त हो रही भारतीय देसी नस्ल पुंगनूर गाय की मूलरूप से आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले से हैं। इसकी उत्पत्ति चित्तूर जिले के पुंगनूर शहर में हुई थी। इस पुंगनूर मवेशी की नस्ल का नाम आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के पुंगनूर गाँव के नाम पर रखा गया है, जो दक्कन के पठार के दक्षिणी

बिंदु पर है।

दुनियाभर में क्यों प्रसिध्द हैं पुंगनूर गाय?

पुंगनूर गाय दुनियाभर में अपने छोटे कद, उच्च दूध उत्पादन दक्षता और कुशल प्रजनन गुणों के लिए जानी जाती है। इस गाय का दूध 5 प्रतिशत वसा के साथ औषधीय गुणों से भरपूर होता हैं। यह छोटी कद-काठी वाली गाय का औसत दुग्ध उपज 546 किलोग्राम प्रति स्तनपान है, जिसमें 5% औसत दुग्ध वसा है। यह नस्ल दुनिया की सबसे छोटी कूबड़ वाली  मवेशियों की नस्लों में से एक है।

विलुप्त हो रही नस्ल के संरक्षण के लिए पुंगनूर मिशन

मवेशी प्रजनन पथ में समय की अवधि में व्यापक अंधाधुंध क्रॉसब्रीडिंग के कारण विलुप्त होने के कगार पर है, जिनमें कुछ ही जानवर शेष बचे हैं। इन बचे हुए जानवरों को मुख्य रूप से एसवी पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय से जुड़े पशु अनुसंधान केंद्र, पलमनेर, चित्तूर जिले में पाला जा रहा है। श्री वेंकटेश्वर पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय के तहत पशुधन अनुसंधान केंद्र, पालमनेर में इस नस्ल को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। पशुधन अनुसंधान केंद्र मवेशियों की पुंगनूर नस्ल के संरक्षण और सुधार पर आईसीएआर एडहॉक योजना के तहत इस नस्ल को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। नस्ल को आधिकारिक तौर पर नस्ल के रूप में मान्यता नहीं दी गई है क्योंकि कुछ ही जानवर शेष हैं।

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