पशुपालन (Animal Husbandry)

दुधारू पशु एवं आदर्श पशुशाला

हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है तथा यहां पशुपालन साधारणत: कृषि का एक महत्वपूर्ण अंग है जो कि देश की अर्थव्यवस्था में मुख्य भूमिका अदा करता है। दुधारू पशुओं को मौसम की विशेषताओं जैसे गर्मी एवं सर्दी से बचाने की विशेष आवश्यकता होती है। इससे पशुओं की उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता में गिरावट एवं बीमारी होने से बचाया जा सकता है। संकर नस्ल की गायें एवं भैंस गर्मियों के प्रति अधिक संवेदनशील होती है।
देश का उत्तर पश्चिमी क्षेत्र पशुपालन व दूध उत्पादन के लिये विख्यात रहा है। इस क्षेत्र में दुग्ध उत्पादन के लिये दुधारू पशु पाले जाते है जिनमें गायों (देशी एवं संकर नस्ल) व भैसों की मुख्य भूमिका समय तक होती है। गर्मियों के मौसम में (मई व जून) में वायुमंडलीय तापमान 45 डिग्री से.ग्रे. से भी अधिक हो जाता है। ऐसे मौसम दुधारू पशुओं पर अपना अत्यधिक दुष्प्रभाव डालता है। जिसे पशुपालक अपने पशुओं में होने वाले व्यवहार के बदलाव से जान सकते हंै।
गर्मियों में पशुओं का उचित रखरखाव – ग्रीष्म ऋतु में दुधारू पशुओं में होने वाले उन दुष्प्रभावों को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय करना पशुओं के उत्पादन व प्रजनन क्षमता को बनाए रखने में मदद करता है –
उचित आवास होना अति आवश्यक- आवास साफ-सुथरी व हवादार होना चाहिए, जिसका फर्श पक्का व फिसलन रहित हो तथा मूत्र व पानी की निकासी हेतु ढलान हो।
– पशुगृह की छत उष्मा की कुचालक हो ताकि गर्मियों में अत्यधिक गरम न हो। इसके लिये एस्बेस्टस शीट उपयोग में लाई जा सकती हैं अधिक गर्मी के दिनों में छत पर 4-6 इंच मोटी घांसफूस की परत या छप्पर डाल देना चाहिये। ये परत उष्मा अवशोषक का कार्य करती है जिसके कारण पशु पशुशाला के अंदर का तापमान उचित बना रहता है।
– पशुशाला की छत की ऊंचाई से कम 10 फुट ऊंची होनी चाहिए ताकि हवा का समुचित संचार पशुगृह में हो सके तथा छत की तपन से भी पशु बच सके।
– पशुशाला में खिड़किया व दरवाजों व अन्य खुली जगहों पर जहां से तेज गरम हवा आती हो बोरी या टाट आदि टांग कर पानी का छिड़काव कर देना चाहिए।
– पशुशाला में पशुओं की संख्या अत्यधिक नहीं होनी चाहिए। प्रत्येक पशु को उसकी आवश्यकतानुसार पर्याप्त स्थान उपलब्ध कराएं। मुक्त हर व्यवस्था में गाय व भैसों को क्रमश: 3.5 व 4.0 वर्ग मीटर स्थान ढका हुआ तथा 7 से 8 वर्ग मीटर खुले स्थान बाड़े के रूप में प्रति पशु उपलब्ध होना चाहिए।
– पशुओं को नहलाने का उचित प्रबंध होना चाहिए- पशुओं के शरीर पर दिन में 2 या तीन बार ठंडे पानी का छिड़काव करें। यदि संभव हो तो तालाब में बैसों को नहलाएं। प्रयोगों से यह साबित हुआ है कि दोपहर को पशुओं पर ठंडे पानी का छिड़काव उनके उत्पादन व प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है।
– पशुओं को पीने की ठंडे पानी उपलब्ध होना चाहिए। इसके लिये पानी की टैंक पर छाया की व्यवस्था करना अति आवश्यक होता है।
– पशुशाला के आसपास छायादार वृक्षों का होना अति आवश्यक है यह वृक्ष पशुओं को छाया तो प्रदान करते हैं साथ ही पशुओं को गरम लू से भी बचाते हैं।
अत: पशुपालकों को गर्मियों में पशुओं की सुरक्षा हेतु कुछ विशेष बतों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे –
– पशुओं को पीने के लिए ठंडा व ताजा जल उपलब्ध करायें।
– पशुओं को आहार में हरा चारा अधिक से अधिक मात्रा में उपलब्ध करायें।
– तेज गर्मी के दिनों में पशुओं को ठंडे पानी से नहलायें।
– पशुओं को लू से बचाने हेतु पशुशाला से आसपास छायादार वृक्ष लगावें।
– पशुशाला में प्रत्येक पशुओं को पर्याप्त मात्रा में स्थान उपलब्ध करायें।
– पशुशाला की छत की ऊंचाई अधिक से अधिक हो।
– पशुशाला में पशुओं को गर्मी से बचाने हेतु पंखे लगवायें तथा दरवाजों पर खिड़कियों पर खस व टाट लगाकर उन पर पानी का छिड़काव करें। इससे पशुशाला का तापमान सामान्य बना रहता है।
उपरोक्त बातों को ध्यान रखकर पशुपालक अगर अपने दुधारू पशुओं का प्रबंध करेंगे तो गर्मियों में भी अपने पशुओं के उत्पादन व प्रजनन क्षमता को बनाए रखकर डेयरी व्यवसाय के द्वारा अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं।
गर्मियों में दुधारू पशुओं पर पडऩे वाले मुख्य दुष्प्रभाव
– पशुओं की श्वसन क्रिया में वृद्धि होना- गर्मियों में शरीर की उष्मा को निकालने के लिये पशु अपने शरीर से पानी को पसीने के रूप से वाष्पीकरण करता है। पानी को शरीर से वाष्पित करने के लिये पशु के शरीर से उष्मा लेनी पड़ती है तथा पशु पसीने को शरीर से वाष्पीत होने पर राहत महसूस करता है। गर्मियों में पशु अपनी श्वसन क्रिया को बढ़ाकर पानी की वाष्पीकरण क्रिया को बढ़ा देते है इन सबके कारण पशुओं में पानी की आवश्यकता बढ़ जाती है।
– पशु सूखा चारा खाना कम कर देते हैं- गर्मियों में जल वायुमंडलीय तापमान पशुओं के शारीरिक तापमान से अधिक हो जाता है तो पशु सूखा चारा खाना कम कर देते है क्योंकि सूखा चारा को पचाने में शरीर में उष्मा का अधिक मात्रा में निकलता है ये क्रम चारा खाना उनकी दुग्ध क्षमता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है।
– दुधारू पशुओं के दुग्ध उत्पादन में कमी होना- गर्मियों के मौसम में दुधारू पशुओं हेतु चारे की उपलब्धता व गुणवत्ता में कमी हो जाती है जिसका दुष्प्रभाव दुधारू पशुओं के दुग्ध उत्पादन की क्षमता में कमी हो जाना है।
– प्रजनन क्रिया क्षीण मंद हो जाना- इस मौसम में भैसों व संकर नस्ल गायों की प्रजनन क्षमता मंद हो जाती है तथा मदचक्र लम्बा हो जाता है एवं मद अवस्था का काल व उग्रता दोनों बढ़ जाती है। जिसके कारण पशुओं में गर्भधारण की संभावना काफी घट जाती है जो कि दुग्ध उत्पादन पर सीधा प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
– पशुओं को लू लगने का डर बना रहता है – अत्यधिक गर्मी में पशुओं को लू लगने के कारण पशु बीमार पड़ जाते हैं जिससे उनके दुग्ध उत्पादन में तो काफी कमी आती है साथ ही बीमार पशु की उचित देखभाल न होने के कारण उसकी मृत्यु तक हो जाती है जिससे पशुपालक को काफी आर्थिक हानि होती है।

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