Animal Husbandry (पशुपालन)

लम्पी त्वचा रोग : कारण एवं रोकथाम

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  • दशरथ सिंह चुण्डावत
    कृषि स्नातकोतर (पशु उत्पादन एवं प्रबंधन)
    राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर,
    महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर

 

18 अगस्त 2022, लम्पी त्वचा रोग : कारण एवं रोकथाम – हाल ही में भारत की गायों में गांठदार त्वचा रोग या ‘लम्पीस्किन रोग’ के संक्रमण का बहुत भयंकर प्रभाव देखने को मिला है। यह रोग भारतवर्ष में इसके मामले प्रथम बार ही देखे गये हैं। यह रोग अफ्रीका एवं एशिया के कुछ इलाको में होने वाला स्थानीय रोग है जिसे सबसे पहले वर्ष 1929 में देखा गया था। भारतीय क्षेत्र के आसपास इसे सबसे पहले बांग्लादेश में वर्ष 2019 में पाया गया। हमारे देश में इसका प्रथम मामला वर्ष 2019 में ओडिशा के मयूरभंज में दर्ज किया गया था। यह रोग मात्र 16 माह के भीतर लगभग 15 से अधिक राज्यों में फ़ैल गया इन राज्यों में इस रोग के कारण बहुत हानि देखी गयी है। मवेशियों में यह ‘गांठदार त्वचा रोग’ वायरस जनित रोग है। यह वायरस ‘कैप्री पॉक्स वायरस’ से संबंधित है। इसी रोग से सम्बंधित अन्य दो प्रजातियां ’शिपपॉक्स’ एवं ‘गोट पॉक्स’ वायरस है जो कि भेड़ एवं बकरी में प्रकोप करता है।

रोग के लक्षण

सबसे पहले पशु में बुखार, लार, आंखों एवं नाक में पानी बहना, वजन घटना, दुग्ध उत्पादन में कमी, शरीर पर गांठ एवं दर्द जैसे लक्षण दिखाई देते है। त्वचा पर ये घाव काफी समय तक बने रहते हंै। कई बार पशुओं में लंगड़ापन, गर्भपात, निमोनिया एवं बाँझपन जैसी समस्याएं भी देखने को मिलती हंै। यह रोग मुख्य रूप से मच्छर, मक्खी एवं जूं के द्वारा स्थानांतरित होता है। इस रोग के कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हंै।

  • गायों के अन्दर तेज बुखार देखने को मिलता है।
  • सम्पूर्ण शरीर पर गांठें बन जाती हैं। सबसे ज्यादा प्रकोप सिर, गर्दन एवं जनन अंगों के आसपास दिखाई देता है।
  • शुरुआत में ये गांठें दिखने में छोटी होती हंै परन्तु समय के साथ बड़ी हो जाती हैं तथा घावों के रूप में परिवर्तित हो जाती हंै।
  • दुग्ध उत्पादन में भारी कमी दिखाई देती है।
  • सम्पूर्ण शरीर एवं मुख्य रूप से गर्दन, सिर, थनों के आसपास 2 से 5 सेंटीमीटर के आकार की गांठें बन जाती हैं।
  • आंखों एवं नाक में पानी आना।
  • मादा पशु में गर्भपात देखने को मिलता है।
  • अधिक प्रकोप के कारण पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है।
रोग उपचार

यह रोग वायरस जनित रोग है जिसका इलाज संभव नहीं है। इसके उपचार हेतु उचित प्रबंधन एवं द्वितीयक संक्रमण को रोकना बहुत आवश्यक है। प्रति जैविक इसके उपचार में अहम भूमिका निभाती है। घावों को 2 प्रतिशत सोडियम हाइड्रो ऑक्साइड, 4 प्रतिशत सोडियम कार्बोनेट एवं 2 प्रतिशत फार्मेलिन से धोने पर कुछ राहत प्राप्त होती है। कुछ होमियोपैथी पशु दवा जैसे कि होमियो नेक्स्ट ड्राप नंबर 25 ( पिलाने हेतु) एवं मेरीगोल्ड प्लस प्रति जैविक का भी उपयोग किया जा सकता है।

रोकथाम एवं प्रबंधन के उपाय
  • पशुओं के आवास स्थान के आसपास एवं परिसर में सफाई सम्बंधित विशेष ध्यान रखें।
  • नये पशु को लाने की अवस्था में उसे शुरुआती कुछ दिनों के लिए अन्य पशुओं से अलग रखें। समय-समय पर उसके अंदर रोग सम्बंधित लक्षणों का अवलोकन करें।
  • रोग से ग्रसित क्षेत्र में पशुओं को जाने से रोकंे।
  • यह रोग कीटों द्वारा स्थानांतरित होता इसीलिए इन कीटों का उचित प्रबंधन आवश्यक है। कीटों के प्रबंधन हेतु उचित कीटनाशकों का उपयोग करें एवं समय-समय पर इनका अवलोकन करते रहें।
  • कीटों के प्रजनन स्थलों पर उचित प्रबंधन की आवश्यकता होती है। समय-समय पर पशु आवास की अच्छी तरीके से सफाई करवाएं।
  • पशु अपशिष्ट का उचित दूरी पर निस्तारण करें।
  • जिस भी पशु में इस रोग से सम्बन्धित लक्षण दिखाई दें उसे तुरंत अन्य पशुओं से दूर कर लें एवं चिकित्सक की उचित सलाह लें।

भारत के किसान विशेषकर पशुपालन पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर हैं। पशुपालन विशेषकर सीमांत एवं भूमिहीन किसानों द्वारा किया जाता है। दूध प्रोटीन का सबसे सस्ता एवं अच्छा स्त्रोत माना जाता है। लम्पी त्वचा रोग जैसे भयंकर रोग पशु अर्थव्यवस्था को बहुत प्रभावित करेगी। इस रोग को उचित प्रबंधन एवं उपचार से ही रोका जा सकता है। इस पर सरकार द्वारा उचित ध्यान देने आवश्यकता है। समय पर प्रबंध एवं रोग से पूर्व ही इसकी रोकथाम बहुत आवश्यक है।

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