पशुपालन (Animal Husbandry)

सूक्ष्म खनिज गायों को भी चाहिए कोबॉल्ट, कॉपर, क्लोरीन

सूक्ष्म खनिजों के जैविक कार्य –

  • ये कई एंजाइम के को-फैक्टर होते हैं।
  • एंजाइम निर्माण में मदद करते हैं।
  • कोशिका के निर्माण में मदद करते हैं।
  • मुक्त मूलकों से कोशिका को होने वाली क्षति को रोकते हैं।
  • कोशिकाओं में होने वाली उपापचयी क्रिया को क्रियान्वित करते हैं।
  • रोग प्रतिरोधक एवं कई प्रकार के संक्रमण से पशुओं की रक्षा करते हैं।

सूक्ष्म खनिजों की कमी से होने वाले रोग इस प्रकार हैं –

Advertisement
Advertisement

(अ) कॉपर/तांबा – ताँबा सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेज नाम एंजाइम के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। ये एंजाइम कोशिकाओं को मुक्तमूलकों द्वारा होने वाली क्षति को रोकते या कम करते हैं। शरीर में बी एवं टी कोशिकाओं ल्यूकोसाइट एवं हीमोग्लोबिन के स्थानांतरण में मदद करते हैं। तांबे की कमी से होने वाले प्रमुख रोग इस प्रकार हैं-
एनीमिया – इसकी कमी से माइक्रोसाइटिक हाइपोक्रिोपिक एनीमिया होती है।
हड्डी में विकृति उत्पन्न होना– हड्डियों की मजबूती कम हो जाती हैं।
तांत्रिकीय विकार उत्पन्न होना– तंत्रिक तंत्र में विकृति हो जाती है जिससे पशुओं के एक विशिष्ट लक्षण ‘नवजात गतिविभ्रमÓ कहा जाता है, दिखाई देता है।
रंजक/रोगन विकार उत्पन्न होना – बालों का रंग असामान्य हो जाता है जैसे कि लाल गाय का रंग पीला हो जाता है एवं काले रंग की गाय का रंग मटमैला या स्लेटी हो जाता है।
मायोकार्डिया में विकार उत्पन्न हो जाना– मायोकार्डिया में तंतुमयता हो जाती हैं जिससे पशु की अचानक मृत्यु भी हो सकती है।

  • बांझपन उत्पन्न होना, पशु का हीट में नहीं आना इत्यादि।

(ब) कोबाल्ट – कोबाल्ट, जुगाली करने वाले पशुओं के लिये अति आवश्यक है क्योंकि यह शरीर में बहुत ही सीमित मात्रा में पाया जाता है। यह विटामिन बी12 के संश्लेषण में मदद करता है। विटामिन बी12, लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण एवं वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
कोबाल्ट की कमी मुख्यत: खाद्य पदार्थों में इसलिये होती है क्योंकि जिस मृदा में खाद्यान्नों को उगाया गया है, उस मृदा में भी इसकी कमी थी। कोबाल्ट की कमी से भूख न लगना  कमजोरी, पाइका एवं कभी-कभी डायरिया। दस्त लगना तथा बांझपन इत्यादि लक्षण हो सकते हैं।
(स) जिंक – जिंक कई एंजाइम्स के निर्माण में मदद करता है जैसे कि कार्बोनिक एनहाइड्रेज, एल्कलाइन फॉस्फटेज, लैक्टेट डिहाइड्रोजिनेज इत्यादि। यह प्रोटीन संश्लेषण एवं कार्बोहाइड्रेट  के उपापचय में भी मदद करता है जिंक की कमी से होने वाले रोग एवं लक्षण इस प्रकार हैं:-
वृद्धि में कमी – पशु की वृद्धि बहुत धीरे-धीरे होने लगती है क्योंकि प्रोटीन संश्लेषण में कमी एवं कार्बोहाइड्रेट के उपापचय में बाधा उत्पन्न होने लगती है।
त्वचा संबंधी विकार उत्पन्न होना – त्वचा रूखी, कड़ी एवं मोटी हो जाती है।
प्रजनन संबंधी विकार उत्पन्न होना – लैंगिक वृद्धि परिपक्वता में कमी या देरी होना, शुक्राणु के निर्माण में कमी होना इत्यादि।

Advertisement8
Advertisement
  • अन्य रोग जैसे कि पशु के पिछले पैरों में सूजन, अनियमित चाल, घाव भरने में देरी होना, कमजोरी इत्यादि भी हो सकते हैं।

(द) सेलेनियम– यह विटामिन ई के साथ अंतरा संबंधित है। यह वृद्धि एवं प्रजनन के लिये बहुत ही आवश्यक खनिज है। यह ग्लूटाथियॉन परऑक्सिडेज नामक एंजाइम का महत्वपूर्ण अवयव है जो कि कोशिकाओं में एच2ओ2 को निकालता है। विटामिन ई एवं सेलेनियम दोनों ही शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करते हैं। यह कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाओं को भी नष्ट करता है। इसकी कमी से होने वाले रोग इस प्रकार हैं:-
मांसपेशियों में विकार उत्पन्न होना – इस अवस्था को ‘श्वेत मांसपेशीÓ रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह बिना सूजन के होने वाला विकार है जो मुख्यत: हाथ,पैर एवं हृदय की मांसपेशियों में होता है।

Advertisement8
Advertisement
  • इसके लक्षण बांझपन, हीट में नहीं आना इत्यादि प्रजनन संबंधी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, गर्भपात होना, गर्भनाल का ना गिरना इत्यादि रोग भी हो सकते हैं।

(इ) मैग्नीज– यह हड्डी के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इसकी कमी से पशुओं में गर्भाधान की दर में कमी आ जाती है। हीट में नहीं आना, बांझपन एवं मांसपेशियों में विकृति इत्यादि रोग भी हो सकते हैं।
इसके अलावा बछड़़ों में वृद्धि दर में कमी, बालों का गिरना, शुष्क त्वचा, जोड़ों में वृद्धि इत्यादि लक्षण भी दिखाई देते हैं।
आयरन/लौह – यह हिमोग्लोबिन में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। दूध में लौह तत्व बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में पाया जाता है जिसके कारण नवजात बछड़ें एवं सुअरों में एनीमिया हो जाती है। एनीमिया के प्रमुख लक्षण श्लेष्म झिल्लियों का रंग हल्का हो जाना, थकान एवं पीलिया हैं।
(झ) आयोडीन– आयोडजीन थायरॉइड नामक हार्मोन के संश्लेषण के लिये अति आवश्यक है। यह भ्रूण के निर्माण, रोग प्रतिरोधक क्षमता, मांसपेशियों के निर्माण एवं प्रवहन में भी आवश्यक है। आयोडीन की कमी मुख्यत: हिमालय क्षेत्रों में देखी गयी है। अत्यधिक कैल्शियम खिलाने, पशुओं को कुछ पौधे जैसे कि सरसों खिलाने से भी आयोडीन की कमी हो सकती है जिसके कारण थायरॉइड ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है।
अन्य लक्षण जैसे कि दुग्ध उत्पादन में कमी, गर्भपात, पैरों में कमजोरी, नवजात पशुओं में बाल का गिरना इत्यादि समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।
लगभग 15 सूक्ष्म खनिज हैं जिनकी आवश्यकता पशुओं में होती है जैसे कि आर्सेनिक, क्रोमियम, कोबाल्ट, कॉपर, क्लोरीन, आयरन, मैग्नीशियम, आयोडीन, मॉलीब्डेनम, सेलेनियम, सिलीकॉन, जिंक, निकिल, मैग्नीज, टिन। इनमें से सेलेनियम सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।

Advertisements
Advertisement5
Advertisement