पशुपालन (Animal Husbandry)

प्रसव काल में पशुओं की देखभाल

  • धर्मेंद्र प्रताप सिंह (तकनीकी अधिकारी पशुपालन)
    कृषि विज्ञान केन्द्र, सागर

28 सितम्बर 2022,  प्रसव काल में पशुओं की देखभाल – अधिक दूध उत्पादन के लिए यह आवश्यक है कि पशुओं का स्वास्थ्य अच्छा रहे और उनके ब्याने के समय में उनको किसी प्रकार की तकलीफ न हो। अगर पशु के बच्चा देने से पहले और बच्चा देने के बाद देखभाल में थोड़ी सी भी कमी या लापरवाही हो जाती है तो उसके बच्चे व दूध की पैदावार पर बुरा असर पड़ता है। पशुओं की देखरेख व खानपान का काम अधिकतर महिलाएं करती हैं, अत: यह आवश्यक हो जाता है कि महिलाओं को भी इस बात की जानकारी दी जाए कि पशुओं की प्रसूति काल में देखरेख कैसे करें।

प्रसव से पहले
  • इन दिनों भोजन ऐसा दें जो हल्का व जल्दी पचने वाला हो। भोजन की मात्रा एकदम से न बढ़ाएं। प्रसूति से लगभग दो महीने पहले से ही उसको संतुलित आहार देना शुरू कर दें जिससे कि माता व बच्चे दोनों को उचित मात्रा में प्रोटीन व विटामिन प्राप्त होते रहें।
  • पशु के रहने की जगह ऐसी हो जहां ताजी हवा हर समय मिलती रहे। पशुघर में सफाई व रोशनी की पूरी व्यवस्था हो।
  • गाय या भैंस को ज्यादा तेज न चलाएं और न ही दौड़ाएं। शरीर पर भारी चोट लगने पर तुरंत ही पास के अस्पताल में दिखाएं।
प्रसव के समय
  • प्रसूति से एक या दो सप्ताह पूर्व पशु को दूसरे पशुओं से दूर रखें। पशुशाला का फर्श साफ हो व उस पर साफ मिट्टी, गेहंू या चावल का भूसा बिछा दें।
  • प्रसव के समय पशु के समीप ज्यादा आदमियों को इक_ा न होने दें व पशु को छेड़े भी नहीं।
  • ब्याते समय अगर पशु खड़ा है तो यह ध्यान रहे कि बच्चा जमीन पर जोर से न गिरे। बच्चा जब योनी से बाहर आने लगे तो हाथों द्वारा बाहर निकालने में सहायता करें।
  • प्रसव के समय यदि पशु को कुछ तकलीफ होने लगे, बच्चा बाहर न आए या बच्चे का कुछ भाग बाहर आ जाए और पूरा बच्चा बाहर न निकले तो तुरंत ही डॉक्टर की सहायता लें अन्यथा पशु व बच्चे दोनों की ही मृत्यु हो सकती है।
प्रसव के पश्चात
  • ब्याने के बाद, पशु को अपने बच्चे को चाटने दें और दूध पिलाने दें।
  • पशु के पास ज्यादा शोर न होने दें।
  • पशु को जो भूसा खिलाएं वह अच्छी किस्म का हो तथा जो भी अनाज खिलाएं वह हल्का व शीघ्र पचने वाला हो। इसके लिए पशु को भूसी व जई खिलाएं।
  • ब्याने के बाद पहले तीन हफ्तों तक पशु को दिए जाने वाले अनाज की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाएं।
  • पशु को मिल्क फीवर की बीमारी के लिए देखते रहें। यह बीमारी खून में चूने या क्षार की मात्रा कम होने के कारण होती है। इस बीमारी में पशु गर्दन मोडक़र जमीन पर लेटा रहता है। यह अधिक दूध देने वाले पशु में ज्यादा होती है। इस बीमारी में पशु से कम दूध निकालें तथा निकाला हुआ दूध पशु को पिला दें एवं नजदीकी पशु-चिकित्सालय में जाकर पशु का इलाज करवाएं।
  • यदि पशु की ल्योटी में ज्यादा सूजन हो तो इसके लिए थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बार-बार दूध निकालें व ल्योटी की हल्की-हल्की मालिश करें।
  • ब्याने के बाद कुछ दिनों तक पशु को हल्की व पर्याप्त मात्रा में कसरत हर रोज करवाएं।
  • कुछ पशु नाल नहीं डालते। यदि ब्याने के 8-12 घंटों तक पशु नाल न गिराए तो यह बीमारी की वजह से होता है। इसके लिए पशु का इलाज नजदीकी पशु चिकित्सालय में करवाएं।
  • यदि पशु ब्याने के 14-20 दिनों बाद तक भी मैला (लोकिया) डालता रहे या इसकी मात्रा ज्यादा हो व इसमें बदबू आती हो या इसमें मवाद हो तो डॉक्टर से ही इसका इलाज करवाएं।
  • यदि ब्याने के बाद पशु की ल्योटी से दूध न निकले तो यह ल्योटी में दूध न उतरने या दूध न बनने के कारण होता है। दूध का न उतरना, पशु में दर्द, डर या भय के कारण होता है। इसके लिए पशु को ऑक्सीटोक्सिन हारमोन की 5-10 यूनिट मांसपेशियों में लगाएं। यदि ल्योटी में दूध नहीं बनता तो यह या तो हारमोन की कमी है या थन की बनावट ठीक न हो, तब होता है। ऐसे में पशु का कोई इलाज नहीं हो सकता।

महत्वपूर्ण खबर: सोयाबीन की तीन नई किस्मों को मध्य प्रदेश में मंजूरी मिली

Advertisement
Advertisement
Advertisements
Advertisement5
Advertisement