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समस्या – समाधान

समस्या- कपास में सफेद मक्खी का प्रकोप पाया जाता है, उपचार बतायें।
– शोभा शंकर, खरगौन

समाधान – सफेद मक्खी कपास सहित अन्य खरीफ, रबी तथा जायद फसलों में आक्रमण करके साल भर अपनी चुनौती फसल को देती रहती है। उपचार के लिये निम्न उपचार करें।
1. कपास की बिजाई समय से करें यथासम्भव मई में ही कर लें।
2. मेढ़ों पर लटजीरा नामक खरपतवार हो तो उन्हें हटा दें ताकि सफेद मक्खी वहां पनप कर कपास में ना आ पाये।
3. नत्रजन उर्वरक का उपयोग सिफारिश से अधिक नहीं करें।
4. इसी प्रकार सिंचाई का भी प्रबंध अच्छा करें ताकि खेत में आद्र्रता अधिक नहीं हो पाये।
5. कीटनाशी का संतुलित उपयोग करें। क्षति सीमा पार हो जाने के बाद डाईमिथियेट (रोगर) 30 ई.सी. 350 मि.ली. दवा प्रति एकड़ 150-200 लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतर से दो छिड़काव करें अथवा आक्सीडिमेटॉन (मेटासिस्टाक्स) 400 मि.ली./एकड़ 150-200 लीटर पानी में घोल बनाकर 10 दिनों के अंतर से दो छिड़काव करें।
समस्या- धान में खरपतवारों से कैसे निपटा जाये तरीका बतायें।
– रामलाल यादव, बनखेड़ी
समाधान-
धान की फसल में सबसे अधिक खरपतवार का आक्रमण होता है। जिसमें चौड़ी पत्ती वाले, संकरी पत्ती वाले और घास कुल के खरपतवार सभी सम्मिलित हैं। धान की फसल में नींदा नियंत्रण के लिये निवारक, यांत्रिक तथा रसायनिक विधि तीनों को सम्मिलित करके प्रयास करने से ही लाभ संभव है।
1. निवारक विधि में अच्छी विश्वसनीय संस्थान का बीज, गोबर की पकी हुई खाद तथा यंत्रों की साफ-सफाई जरूरी है।
2. यांत्रिक विधि में हल द्वारा नींदानाशक पैडीवीडर इत्यादि का उपयोग करें।
3. रसायनिक विधि में पेन्डीमिथालिन (स्टाम्प) 10-15 किलो सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर का छिड़काव बुआई के तीन दिन के अंदर करें।
4. 2-4 डी 0.5 से 1 किलो प्रति सक्रिय तत्व/हे. बुआई के 25-30 दिन के भीतर चौड़ी पत्ती वाले नींदा के लिये।
5. इस प्रकार के सम्मिलित प्रयास से ही धान के खरपतवारों पर रोक लगाई जा सकती है।
6. जहां सांवा का अधिक प्रकोप हो वहां नागकेशन (कत्थई रंग की जाति) ही लगायें ताकि सांवा की पहचान हो सके।

समस्या- मैंने गन्ना लगाया है लाल सडऩ रोग हर वर्ष आता है, उपाय बतायें।
– जयशंकर चौधरी, होशंगाबाद
समाधान –
गन्ने का लाल सडऩ रोग आमतौर पर जहां भी गन्ना लगा हो आता ही है क्योंकि बुआई पूर्व गडेरियों (टुकड़ों) का उपचार नहीं हो पाता है। इसके कारण गन्ने के रस की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है। आप निम्न उपाय करें –
1. गन्ने के टुकड़ों का उपचार गर्म हवा से जरूर करें। ऐसा करने से गन्ने के कंडुआ, घास जैसी बढ़वार बीमारियों पर भी रोग लग जाता है।
2. बुआई पूर्व वीटावेक्स अथवा ट्राईकोडर्मा 1 ग्राम/लीटर पानी में घोल बनाकर 10 मिनट तक टुकड़ों को डुबोकर उपचार करें।
3. जल निकास की अच्छी व्यवस्था करें।
4. संतुलित खाद/उर्वरक का उपयोग करें।
5. रोग रोधी जातियां जैसे को.87025, को.जवाहर 86-600, को. 94012, को.91010 इत्यादि ही लगायें।
6. पत्तियां जो रोगग्रसित हों उनको जलाकर नष्ट करें।
समस्या- सोयाबीन में गेरूआ कब आता है, क्या उपचार करना होगा।
– कृष्णकांत चौरे, मालाखेड़ी
समाधान-
सोयाबीन में गेरूआ लगने का समय यही है सतत वर्षा से आद्र्रता भी बढ़ गई है आपको पत्तियों के निचली सतह में ध्यान देना होगा वातावरण का तापमान 18 से 28 डिग्री से.गे्र. अगर होगा तो प्रकोप तीव्रता से बढ़ सकता है। निचली पत्तियों पर गेरूआ के उभरे धब्बे दिखेंगे धब्बों को दबाने से रोरी हाथ में लगेगी तभी वह गेरूआ है उसके बाद ही निम्न उपचार करें-
1. हेक्साकोनाजोल अथवा प्रोपीकोना-जोल या अक्सीकाबेक्सीन की 800 मि.ली. मात्रा 800 लीटर पानी में घोल बनाकर 10 दिनों के अंतर से दो छिड़काव निचली पत्तियों पर किया जाये।
2. बुआई 35-40 दिन बाद बचाव हेतु एक छिड़काव पहले यदि किया जाये तो अच्छे परिणाम होंगे।
3. रोग-रोधी जातियां जैसे पी.के. 1029, पी.के. 1024, जे.एस. 20-21, अंकुर तथा इंद्रिरा 9 लगायें।

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समस्या- सोयाबीन में पीला मोजेक लगता है बचाव तथा उपचार के उपाय सुझायें।
– पी.एल. शाह, विदिशा
समाधान-
पीला मोजेक बीमारी से वाईरस सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है इसका विस्तार 70 प्रतिशत खेतों में पाया गया है मूंग के बाद सोयाबीन में अधिकतर आता है। इसकी रोकथाम के लिये निम्न उपचार करें।
1. जायद की मूंग के बाद यथासम्भव सोयाबीन नहीं लगायें।
2. रोगरोधी जातियां पी.के. 416, पी.के. 564, पी.के. 1024, पी.के. 1029, पी.के. 1042, पी.एस. 1092, एस.एस. 295 आदि ही लगायें।
3. रोगग्रसित पौधों को उखाड़ कर नष्ट करें।
4. बीज बुआई पूर्व 3 ग्राम थायोमिथोक्जाम 70 पी./किलो बीज का उपचार करें।
5. रोगग्रसित फसल पर इथोफेनप्रॉक्स 1 लीटर या अंकुरण के 7-10 दिनों के अंदर थायोमिथोक्जाम 25 डब्लू. जी.100 ग्राम का छिड़काव करें।
6. पानी की मात्रा 500 से 800 लीटर प्रति हेक्टर की दर से लगेगी।

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