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बरसात की पहली फुहार और किसान अपने खेत में

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सूखी धरती खुला आसमान की तरफ बरसात के इन्तजार में आंख गढ़ाए बैठा किसान मानसून के दस्तक देते ही उसकी आंखों में जैसे एक आशा की किरण जगने लगी। मानसून के दस्तक से प्रकृति ने अंगड़ाई लेना प्रारंभ किया तो पूरी धरा पानी के बौछार से जैसे नहा कर हरियाली से भरी पड़ी दिखाई देने लगी। पेड़-पौधों में जैसे नई जान आ जाती है। जिस दिशा में देखें चारों तरफ हरियाली ही दिखती है। वहीं छत्तीसगढ़ के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र में जंगल पहाड़ों से घिरा आदिवासी बाहुल्य जिला बलरामपुर-रामानुजगंज स्थित है। किसान अपने खेत को सजाने-संवारने के लिए अपने घरों से बाहर निकलकर खेत में ही डेरा डाले हुए हैं।
किसान अपने खेत की उर्वरता आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए तथा खेती की लागत को कम करने के लिए अपने घर में तैयार गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद के साथ नाडेप व केंचुआ खाद से अपने खेत को पाट रहे हैं। किसानों को स्वस्थ व निरोग फसलोत्पादन के लिए उपसंचालक कृषि श्री एस.के. प्रसाद के निर्देशन में जिले के समस्त कृषि अधिकारी व ग्रामीण स्तर पर कार्यरत ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी किसानों को जैविक तकनीक से खेती करने की लगातार सलाह दे रहे हैं।
एक एकड़ में हरी खाद के लिए ढेंचा बीज की आवश्यकता 20-25 किग्रा. होती है और इस प्रकार बोए गए ढेंचा को 40 दिन की हरी खाद के रूप में खेत में मचाई कर दें तो एक एकड़ धान को लगभग 75-80 क्विंटल हरी खाद प्राप्त होती है। जिससे फसल को 70 कि.ग्रा. यूरिया, 50 किग्रा. सुपरफास्फेट, 40 कि.ग्रा. पोटाश खाद के साथ ही थोड़ी मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व भी प्राप्त होता है।
हरी खाद के उपयोग से भूमि की रसायनिक व भौतिक स्थिति तो सुधरती ही है इसके साथ ही खेत में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा भी बढ़ती है। जिससे भूमि की जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है और बहुमूल्य पानी की बचत होती है। हरी खाद में अर्थशा को देखें तो एक एकड़ में ढेंचा बीज की कीमत लगभग रु. 860/- से रु. 1075/- तक आती है। जबकि इससे किसान को खाद के रूप में लगभग रु. 2650/- की खाद प्राप्त होती है। इस प्रकार प्रति एकड़ किसान की रु. 1500/- के लगभग सीधे बचत प्राप्त होती है। इसके अलावा हरी खाद वाले खेत में घास भी कम आता है।
प्रस्तुति : डॉ. अजय कुमार सिंह
बलरामपुर (छत्तीसगढ़)

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