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चाहिए कृषि विकास या अवरोध ?

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कृषि महाविद्यालय इंदौर की जमीन का मामला

(विशेष प्रतिनिधि)
भोपाल/इंदौर। कृषि महाविद्यालय इंदौर की 20 एकड़ जमीन को न्यायालय के लिए अधिग्रहित करने की जिला प्रशासन की मंशा के खिलाफ कृषि क्षेत्र से जुड़े लोग लामबंद होकर पुरजोर विरोध कर रहे है। धरना, प्रदर्शन के साथ-साथ अन्य शांति पूर्ण तरीके से विरोध किया जा रहा है। परंतु कृषि एवं कृषक हितैषी बनने वाली सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है। किसान पुत्र मुख्यमंत्री को ज्ञापन देने के बाद भी वे मौन है। वर्षों से किसानों को कृषि शिक्षा, अनुसंधान व तकनीक का प्रचार-प्रसार करने वाले इस कृषि महा. का अस्तित्व ही संकट में घिरता नजर आ रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार को कृषि विकास से अधिक अवरोध से प्यार है। पिछले डेढ़ माह से    कृषक जगत ने इस मामले की हर गतिविधियों पर नजर रखी हुई है। गत दिनों मंत्रालय में कृषि मंत्री श्री गौरीशंकर बिसेन ने   कृषक जगत को बताया कि कृषि महाविद्यालय की जमीन किसी भी हालत में कोर्ट भवन के लिये नहीं दी जाएगी। उन्होंने कहा कि कृषि अनुसंधान के लिये निर्धारित भूमि पर कोई गैर कृषि कार्य नहीं होगा। कृषि मंत्री ने कहा कि राज्य की जीडीपी में कृषि का 50 प्रतिशत योगदान है इसके साथ ही म.प्र. कृषि क्षेत्र में देश का नेतृत्व करने की स्थिति में आ गया है।   

सरकार किसे खुश करना चाह रही है?

यहां प्रश्न विचारणीय है कि विधायिका के समर्थन में आने के बावजूद कार्यपालिका अपनी मनमानी पर क्यों उतारू है। क्या सरकार की पकड़ प्रशासन पर ढीली पड़ गई है। जिस कारण भूमि अधिग्रहण का मामला रद्द नहीं हो पा रहा है या फिर मुख्यमंत्री या किसी बड़े राजनेता का हाथ जिला प्रशासन के सिर पर आ गया है जिससे प्रकरण को गति मिल रही है। बहरहाल सरकार एवं प्रशासन को कृषक हितों का ध्यान रखते हुए पक्ष में शीघ्र निर्णय लेना होगा अन्यथा नुकसान के प्रति वह खुद जिम्मेदार होगी क्योंकि उ.प्र., पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर एवं गोवा के बाद म.प्र. का नम्बर भी आने वाला है। और इस तरह की कार्यवाही राजनीतिक रूप में नुकसान दायक हो सकती है।
इन्दौर के ग्रीन लंग्स
इधर कृषि महाविद्यालय में भूमि अधिग्रहण मामले को लेकर प्रतिदिन धरना प्रदर्शन जारी है। पूर्व छात्र संगठन के अध्यक्ष अखिलेश सर्राफ ने बताया कि राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन व भारतीय किसान संघ भी अब आंदोलन से जुड़ गए हैं। साथ ही मध्य प्रदेश बीज एवं कीटनाशक विक्रेता संघ, कई रहवासी संघ ने भी अपना समर्थन दिया है। लोग जुड़ते जा रहे हैं कारवां बनता जा रहा है। गत दिनों राजमाता सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति श्री अनिल कुमार सिंह ने भी विरोध करते हुए कानूनी कार्यवाही की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि कृषि कॉलेज की इतनी खुली जमीन इंदौर का ‘ग्रीन लंगÓ है। प्रशासन और सरकार इसे जबरन क्यों छीनना चाहते हैं। भूस्वामी के रूप में हमारा नाम है। और कब्जाधारी भी हम हैं। हमसे अनुमति भी नहीं ली गई  और अनुसंधान की जमीन कोर्ट के लिये आवंटित कर दी। अनुसंधान केंद्र में 700 क्विंटल ब्रीडर सीड पैदा हुआ है। किसानों तक इसका हजार गुना प्रमाणिक बीज पहुंचता है। यदि जमीन चली गई तो कॉलेज के बीज उत्पादन पर तो विपरीत असर पड़ेगा ही, गुणवत्ता भी कम होगी। कुलपति श्री सिंह ने कृषि कालेज की 20 एकड़ जमीन जिला कोर्ट को देने के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि यदि जिला प्रशासन नहीं माना तो हम कानूनी तरीके से आपत्ति दर्ज कराएंगे। विश्वविद्यालय की बोर्ड मीटिंग में भी जमीन देने पर असहमति जताई गई है। राज्यपाल को विचार के लिये प्रस्ताव भेजा गया है। मुख्यमंत्री को भी लिखा गया है। कृषि विभाग के प्रमुख सचिव भी स्थानीय प्रशासक को पत्र भेज रहें कि महाविद्यालय की जमीन अधिग्रहण से मुक्त रखी जाय।
कुलपति सिंह और कालेज डीन डॉ. मृदुला बिल्लौरे ने बताया कि पीपल्या हाना में जब रिंग रोड बनी थी, तब भी प्रशासन ने आईडीए के लिए कृषि कालेज की 22 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी। इसमें से केवल साढ़े चार एकड़ पर ही रोड बनाई गई और शेष लगभग 17 एकड़ जमीन आईडीए ने या तो बेच दी या पुनर्बसाइट कर दी। वह जमीन छुड़वाकर भी तो कोर्ट के लिये दी जा सकती है। जब यह जमीन अधिग्रहित की गई थी, तब शासन ने इसका मुआवजा कृषि कालेज को दिया था। यदि हम इसके भूस्वामी नहीं होते तो मुआवजा क्यों मिलता।
खटाई में पड़ सकती है विवि बनाने की योजना
कुलपति ने कहा कि भविष्य में इंदौर में कृषि विश्वविद्यालय बनाने की योजना है। यदि ये जमीन चली गई तो इस प्रस्ताव को ठेस पहुंचेगी। जो 20 एकड़ जमीन दी जा रही है, उस पर विश्वविद्यालय का ड्रायलैंड प्रोजेक्ट चल रहा है। इसके अलावा जापान की मदद से अन्य प्रोजेक्ट चल रहे हैं। यदि जमीन दी गई तो पहले से चल रहे कुछ प्रोजेक्ट तो बंद होंगे ही, निर्माण और लोगों की आवाजाही के कारण इससे लगी जमीन पर चल रहे अनुसंधानों पर भी विपरीत असर पड़ेगा।
कृषि महाविद्यालय की विशिष्टता
उल्लेखनीय है कि शिक्षा के क्षेत्र में भी इस महाविद्यालय की विशिष्ट पहचान है तथा यहां स्नातक स्तर पर बी.एस.सी. (कृषि) एवं आठ विषयों पर स्नातकोत्तर एवं पी.एच.डी. का अध्ययन होता है। 5वीं डीन कमेटी की अनुशंसा के अनुसार इस महाविद्यालय में प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी रूरल इन्टर्रनरशिप अवयरनेस डवलपमेंट योजना है जिसमें छात्रों हेतु स्किल डवलपमेंट मॉडल्स इस परिसर में विकसित किये जा रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत पौधशाला प्रबंधन, सोयाबीन प्रसंस्करण इकाई, मशरूम उत्पादन, फल एवं सब्जी परीक्षण डेयरी एवं मुर्गीपालन आदि माड्यूस लगभग 20 हेक्टेयर में स्थापित किये जाने की योजना है। यदि वर्तमान में भूमि अधिग्रहण कर ली जावेगी तो अनुसंधान परियोजनाएं प्रभावित होगी तथा क्षेत्रीय, प्रादेशिक व राष्ट्रीय कृषि कार्यक्रम पर प्रभाव पड़ेगा।
अनुसंधान पर तलवार लटकी
यह अत्यंत ही महत्वपूर्ण एवं विचारणीय है कि वर्तमान में खसरा क्रं. 260 की भूमि पर ही इन्डो ब्रिटिश प्रोजेक्ट के समय से लम्बी अवधि का अनुसंधान कार्य चल रहा है जिस पर बारानी कृषि अनुसंधान परियोजना अंतर्गत वर्तमान में भी अनुसंधान कार्य जारी है तथा यदि यह अनुसंधान कार्य बीच में ही जमीन अधिग्रहण की कार्यवाही से  बंद हो जायेगा तो अभी तक के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अनुसंधान कार्य का परिणाम प्राप्त नहीं होकर उनके श्रम, शक्ति एवं राष्ट्र की धन हानि सहित अनुसंधान की गंभीर एवं बहुत बड़ी हानि होगी। जिसकी पूर्ति कदापि संभव नहीं हो पायेगी।
बहरहाल कृषि महाविद्यालय की जमीन देने का विरोध आग की लपटों की तरह पूरे प्रदेश में बढ़ रहा है। शीघ्र ही यह विरोध देश भर में फैलने की संभावना है। सरकार के पास अभी भी समय है। वकीलों के साथ कई गणमान्य नागरिकों एवं संगठनों का सुझाव है कि सरकार को हाईकोर्ट और जिला न्यायालय के परिसर में ही नई मल्टी स्टोरी बिल्डिंग का निर्माण करना चाहिए जिससे महाविद्यालय की जमीन भी नहीं लेना पड़ेगी और कोर्ट की समस्या हल हो जाएगी।

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