मृदा परीक्षण के उद्देश्य एवं आवश्यकता
- मृदा में आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा ज्ञात करना, यह निदान करता है कि मृदा में पोषक तत्व बहुत कम हैं या बहुत ज्यादा।
- मृदा परीक्षण के आधार पर फसलों के लिए संस्तति देना।
- मृदा परीक्षण के आधार पर क्षेत्रों का मूल्यांकन करना तथा उनका उर्वरता के आधार पर मानचित्र तैयार करना।
- समस्याग्रस्त भूमियों के लिये मृदा सुधारकों की सही-सही मात्रा का निर्धारण करना।
भूमि की उर्वरता किसी भी राष्ट्र के लिए बहुत महत्व रखती है, किसी भी देश की सभ्यता का अंदाजा वहां के भूमि के सदुपयोग या दुरूपयोग से लगाया जा सकता है। हमारी जनसंख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है जबकि हमारी कृषि योग्य भूमि सिकुड़ती जा रही है। हमारे पास ऐसा कोई साधन नहीं है जिससे कि हम भूमि का क्षैतिज विस्तार कर सके अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम इनका उपयोग किस प्रकार करें क्योंकि ये हम सभी जानते हंै कि सभी वनस्पतियों तथा प्राणियों का जीवन इसी पर टिका हुआ है। आज के युग में जब कृषि भी एक व्यापार बन गया है, मृदा उर्वरता का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। मूल्यवान उर्वरकों एवं जैविक खादों के संरक्षित तथा उचित उपयोग का मार्ग भी मृदा परीक्षण के ज्ञान से ही संभव है। हर कोई मिट्टी के स्वास्थ्य को जाने बिना अधिक रसायनिक उर्वरकों का उपयोग कर रहा है तो हम पहले मृदा स्वास्थ्य के बारे में जाने। |
पोषक तत्वों की मात्रा का निर्धारण आदि सामान्यता जैविक कार्बन, उपलब्ध नाईट्रोजन, उपलब्ध फास्फोरस, उपलब्ध पोटाश, मृदा पीएच, विद्युत चालकता व कार्बोनेट की मात्रा एवं मृदा सुधार की मात्रा आदि तथ्यों को ज्ञात करने के लिए किया जाता है।
मृदा परीक्षण में मिट्टी के नमूने के सही होने का विशेष महत्व होता है। इसलिए मृदा का नमूना इस ढंग से लेना चाहिए कि वे जिन खेतों से लिए जाये वे उनकी मिट्टियों का वास्तविक प्रतिनिधित्व कर सकें। यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि इन्हीं जांच के परिणामों के आधार पर उर्वरक संस्तुतियां तैयार करनी होती है। किसी क्षेत्र में भली भांति वितरित भागों से मृदा का जो नमूना लिया जाता है, उसे प्राथमिक नमूना कहते है। जब प्राथमिक नमूनों को आपस में भली-भांति मिला लिया जाता है। तो उसे प्रतिनिधि या संयुक्त नमूना कहते हैं।
सावधानियां
- खाद के गड्ढे, मेंढ़ तथा वृक्षों के नीचे से नमूना एकत्र नहीं करना चाहिए
- तैयार नमूना कभी खुला नहीं छोडऩा चाहिए
- मृदा नमूना खेत के उस स्थान से नहीं लेना चाहिए जहां पर उर्वरकों का बोरा रखा गया हो क्योंकि वहां पर उर्वरक का कुछ न कुछ भाग जरूर गिर जाता है।
- अगर किसी खेत की मृदा परीक्षण पहले किसी प्रयोगशाला में हो चुका है तो उसका विवरण भी देना आवश्यक है।
- मृदा नमूनों को उर्वरकों के बोरों के पास नहीं रखना चाहिए।
- मृदा नमूनों को उर्वरकों के बोरों के ऊपर नहीं सुखाना चाहिए।
- नमूना जिस गहराई से लिया जाय, वह नमूने के पैकेट पर अंकित होना चाहिए।
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मृदा उर्वरता में कमी के कारण
- मृदा में लगातार खेती होने एवं पर्याप्त खाद उर्वरकों का प्रयोग न किया जाना।
- मृदा में जैवांश जैविक कार्बन का लगातार घटता स्तर।
- प्रयोग किये जा रहे उर्वरकों के उपयोग क्षमता का कम होना।
- मृदा क्षरण से पोषक तत्वों का धीरे-धीरे ह्रास।
- उर्वरकों का असंतुलित प्रयोग।
- देश के विभिन्न भाग में उर्वरकों के प्रयोग में असमानता।
- सघन खेती का प्रचलन, जिस से एक साथ कई पोषक तत्वों की कमी होना।
- मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग न होना।
उर्वरता बनाये रखने के लिये सुझाव-
- उर्वरकों का प्रयोग हमेशा मृदा परीक्षण के आधार पर एवं फसल विशेष की संस्तुति के अनुसार ही करें।
- उर्वरक प्रबन्धन एक फसल में न करके पूरे फसल चक्र में अपनाएं।
- फसल चक्रमें हरी खाद, फसलों के अवशेष तथा दलहनी फसलो का समावेश अवश्य करें।
- दलहनी फसलों में जैविक उर्वरकों का प्रयोग अवश्य करें।
- फसल चक्र में फसलों का चुनाव इस प्रकार करें कि प्रथम फसल से बचे हुये पोषक तत्वों का सही उपयोग हो सके एवं मृदा से पोषक तत्वों का सही अवशोषण हो सके।
- उर्वरकों का प्रयोग हमेशा संतुलित रूप में करें जिससे उर्वरक उपयोग क्षमता में वृद्धि हो सकें।
- सघन खेती मे समन्वित पोषक तत्व प्रबन्धन अपनाएं जिसमें उर्वरकों के साथ गोबर की खाद, हरी खाद, फसल अवशेषों एवं जैविक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है।
- नत्रजन उर्वरकों का प्रयोग कई बार में करें। फास्फोरस का प्रयोग रबी फसलों में करें। फसल चक्र के साथ उर्वरक चक्र भी अपनाये जिससे सही उर्वरक उपयोग क्षमता आ सकें।
- उर्वरकों का प्रयोग सही समय, सही विधि एवं सही साधन से करें।
अत: संक्षिप्त में हम यहां कह सकते हैं कि मृदा की उर्वरता हमारी सबसे महत्वपूर्ण पूंजी है। अगर स्वस्थ मृदा होगी तो हम अधिक अन्न उपजा सकेंगे और बढ़ती जनसंख्या तथा घटते हुये खाद्य उत्पादन के बीच संतुलन स्थापित कर सकेंगे। |
नमूना एकत्र करने की विधि
- यदि खेत समतल हो, पूरे खेत में एक ही फसल उगाई गयी हो तथा उर्वरकों की समान मात्रा डाली गयी हो तो पूरे खेत से एक ही संयुक्त नमूना लेना चाहिए।Know the strength of soil test
- नमूना लेने से पहले यह आवश्यक है कि किन स्थानों से नमूना लेना है वहां की ऊपरी सतह से घासपात साफ कर देना चाहिए। नमूना एकत्र करने के लिए 15-20 स्थानों का चयन करते है।
- सबसे पहले 15 सेमी गहरा गड्ढा बनाते हैं। फिर खुरपी या फावड़े की सहायता से इसकी दीवार के साथ साथ पूरी गहराई तक की मिट्टी की एक समान परत काटकर किसी साफ बाल्टी में एकत्र करते जाते है।
- मृदा नमूनों को छाया में (धूप में नहीं) सुखाना चाहिए, क्योंकि धूप में सुखाने से नमूने में उपस्थित पोषक तत्वों में अवांछनीय परिवर्तन हो जाता है। छाया में सूख जाने के बाद नमूनों के ढेले फोड़कर, कंकड, पत्थर तथा खरपतवार पौधों की जड़े आदि को निकाल कर फेंक देते है।
- इसके बाद नमूने को खूब अच्छी तरह मिलाकर उसमें से लगभग 500 ग्राम मिटटी ले लेते है। नमूने को एक साफ कपड़े की थैली में भरकर कागज या टिन के टुकड़े पर खेत संख्या, कृषक का नाम व पता लिखकर एक थैली के अंदर तथा दूसरा थैली के मुंह पर बांध देना चाहिए। यदि संभव हो तो स्याही से थैली पर भी लिख देना चाहिए।
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