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गन्ना किसानों को तोहफे से शक्कर कारखाने नहीं संतुष्ट

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नई दिल्ली। गन्ना किसानों के 21,000 करोड़ रुपये के बकाये का एक हिस्सा चुकाने के लिए केंद्र सरकार ने चीनी मिलों को 6,000 करोड़ रुपये का कर्ज बेहद आसान शर्तों पर मुहैया कराने का फैसला किया है। लेकिन यह रकम मिलों को नहीं सौंपी जाएगी बल्कि सीधे किसानों के खातों में भेजी जाएगी। माना जा रहा है कि यह रकम जन धन योजना के जरिये उनके खातों में पहुंचेगी। लेकिन चीनी उद्योग इससे खुश नजर नहीं आ रहा है क्योंकि कर्ज का बोझ उसी पर पड़ेगा।
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में यह फैसले के मुताबिक सरकार इस कर्ज पर एक साल तक कोई भी ब्याज नहीं लेगी और 600 करोड़ रुपये का बोझ खुद ही उठाएगी। लेकिन इसमें एक शर्त लगी है। कर्ज उन्हीं मिलों को दिया जाएगा, जो 30 जून से पहले किसानों का कम से कम 50 फीसदी बकाया चुका देंगी। सरकार ने कहा है कि बैंक चीनी मिलों से गन्ना किसानों की सूची लेंगे, जिसमें उनके बैंक खातों की जानकारी होगी और यह भी लिखा होगा कि उनका कितना बकाया रह गया है। इसके बाद मिलों की ओर से रकम किसानों के खाते में पहुंचा दी जाएगी।
श्री नितिन गडकरी ने कहा कि भुगतान के बाद यदि कोई रकम बचेगी तो उसे चीनी मिलों के खाते में जमा कर दी जाएगी। क्योंकि इस सीजन में होने वाला अतिरिक्त उत्पादन उसमें और इजाफा कर देगा। लेकिन इस बारे में कोई बात नहीं की गई। विपणन वर्ष ‘अक्टूबर से सितंबरÓ 2014-15 में देश का चीनी उत्पादन 2.8 करोड़ टन रहने का अनुमान है जो पिछले साल 2.43 करोड़ टन रहा था। जबकि देश में शक्कर की कुल मांग करीब 2.4 करोड़ टन है। श्री गडकरी ने कहा कि कच्चे माल की लागत तैयार उत्पाद से कहीं अधिक है। उन्होंने कहा कि चीनी की कीमत घटकर 22 रुपये प्रति किलोग्राम रह गई है जो पहले 34 रुपये प्रति किलोग्राम थी।
शक्कर उद्योग के प्रमुख संगठन इस्मा के महानिदेशक श्री अविनाश वर्मा ने कहा कि सरकार का 6,000 करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त ऋण देने का निर्णय सार्थक नहीं होगा क्योंकि इससे अधिशेष भंडार की समस्या तथा शक्कर की कम कीमत के मुद्दे का समाधान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि गन्ना किसानों का मौजूदा 21,000 करोड़ रुपये बकाया है जिसमें 6,000 करोड़ रुपये की कमी अएगी लेकिन इसके बाद भी बड़ी राशि बकाया रह जाएगी।
श्री वर्मा ने कहा कि इसकी जगह केंद्र को सार्वजनिक क्षेत्र की एजेंसियों को 25 से 30 लाख टन चीनी खरीदने के लिए सरकारी एजेंसियों को ऋण देना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘सरकार ने केवल एक साल के लिए ब्याज मुक्त ऋण देने का निर्णय किया है जबकि इससे पहले फरवरी 2014 में घोषित योजना में पांच साल की छूट थी। श्री वर्मा का मानना है कि उद्योग के लिए एक साल में 6,000 करोड़ रुपये लौटाने के लिए इतनी कमाई करना असंभव है।
महाराष्ट्र की शक्कर मिलें भी केंद्र के फैसले से नहीं हुईं खुश
महाराष्ट्र का सहकारी चीनी उद्योग भी शक्कर मिलों को 6,000 करोड़ रुपये ब्याजमुक्त ऋण मुहैया कराने के केंद्र सरकार के फैसले से बहुत खुश नहीं है। इसके बजाय उद्योग ने केंद्र से प्रति टन 850 रुपये की वित्तीय मदद, 50 लाख टन का बफर स्टॉक बनाने और कच्ची चीनी प्रोत्साहन (हाल में 4,000 रुपये प्रति टन की राशि घोषित की गई) को 2019-20 तक विस्तारित करने की मांग की है। महाराष्ट्र की सहकारी और निजी शक्कर मिलों को गन्ना किसानों का 3,400 करोड़ रुपये का भुगतान करना है। इसमें से सहकारी मिलों पर कुल 1900 करोड़ रुपये बकाया है। उनका कहना है कि उनकी खराब वित्तीय स्थिति की सबसे प्रमुख वजह उत्पादन की लागत और चीनी की गिरती कीमतों के बीच बढ़ता अंतर है। चीनी की मौजूदा कीमतें 2100-2300 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि उत्पादन लागत 3200-3400 रुपये प्रति क्विंटल के बीच हैं। वर्ष 2014-15 के पेराई सीजन में सभी 178 शक्कर मिलों ने हिस्सा लिया और 105 लाख टन से भी अधिक शक्कर का उत्पादन किया।

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