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औषधीय पौधा बज्रदंती

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विश्व में बज्रदंती की लगभग 300 प्रजातियाँ पाई जाती है जो मुख्य रूप से शीतोष्ण तथा आर्कटिक क्षेत्र में विद्यमान है। भारत में इसकी लगभग 50 प्रजातियाँ मिलती है। पोटेन्टिला की लगभग एक दर्जन प्रजातियों का औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। जिसमें पो. फुलजेन्स, पो. फ्रक्टोसा, पो. क्लीनियाना, पो. नेपालेन्सिस, पो. रेप्टेन्स, पो. सेरीसिया तथा पो. सूपीना भारत में पाई जाती है।
नेपाल, भूटान तथा सिक्किम में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। उत्तरांचल के सीमान्त जिलों में 2200-4000 मीटर की ऊंचाई तक यह नमीयुक्त खुले स्थानों, जंगलों में तथा पथरीले स्थानों पर स्वत: प्राकृतिक रूप में पाया जाता है।
पौधा परिचय: यह रेशम के समान चिकना, रोमयुक्त घना तथा 30 सेमी. तक ऊँचा शाकीय पौधा है। इसकी पत्तियाँ अनेक पर्णकों में बंटी होती है। जो जोड़े में पाये जाते हंै। पुष्पक्रम कोरिम्ब तथा शीर्षस्थ होता है और उसमें अनेक घने लगे फूल पाये जाते है। फूल चिकने तथा पीले होते हैं। उनमें अनेक एकीन पाए जाते हैं। फल एकीन तथा कोमल होते हैं।
जलवायु एवं भूमि: यह शीत जलवायु का पौधा है, जिसे ठंडे स्थानों पर उगाया जा सकता है। नम छायादार स्थान या बागों में पेड़ों के नीचे भी इसे उगाया जा सकता है। बज्रदंती की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थो से परिपूर्ण बलुई दोमट से दोमट मृदा पौधों के वृद्धि एवं विकास के लिए अच्छी मानी जाती है। चिकनी, भारी एंव जलमग्न मृदाओं में बज्रदंती की खेती करना लाभदायक नहीं रहता है, क्योंकि जलमग्न मृदाओं में पौधे की जड़ों में सडऩ प्रारम्भ हो जाता है। साथ ही एैसी मृदाओं में हवा का आवागमन सुचारू रूप से नहीं हो पाता है। जो कि पौधे के विकास का अवरोधक है। इसलिए बज्रदंती की खेती अधिक वर्षा एंव जल भराव वाले स्थानों पर नहीं करना चाहिए।
भूमि की तैयारी: पौधों की रोपाई से पूर्व खेत को 2-3 जुताइयों के द्वारा भुरभुरा बना कर समतल कर लेना चाहिए। तैयार खेतों को छोटी-छोटी क्यारियों में बाँट कर जल निकास व्यवस्था को ठीक करना चाहिए, जिससे कि जल भराव की समस्या उत्पन्न न हो।
प्रवर्धन:  बज्रदंती की खेती भूस्तारी या सकर्स लगाकर की जाती है। भूस्तारी के टुकड़े 30&30 सेमी. की दूरी पर रोपना चाहिऐ। एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 70-72 हजार टुकड़ों की आवश्यकता पड़ती है। बीज के द्वारा प्रर्वधन करने पर बीज को फरवरी-मार्च में नर्सरी की क्यारियों में बोना चाहिए तथा तैयार पौधों को खेत में स्थानांतरित करना चाहिए। प्रति हैक्टर 2-3 किग्रा. बीज पर्याप्त रहता है।
नर्सरी तैयार करने की विधि: सामान्यत: बीज को पौधशाला की क्यारियों में बोने से पूर्व बीजों को 8-10 गुना मिट्टी में मिलाकर क्यारियों में समान रूप से बिखेर देना चाहिए। क्यारियों में मृदा, बालू एंव गोबर की खाद को 3:2:1 के अनुपात में मिलाना चाहिए साथ ही आवश्यकतानुसार नीम की खली एवं फ्यूरॉडान भी क्यारियों में अच्छी तरह मिला मिलाना चाहिए। जिससे कि दीमक आदि के प्रकोप से पौधे को बचाया जा सके। बीज को बिखेरने के बाद मिट्टी की पतली परत से बीजों को ढक देना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जब तक अंकुरण न हो तब तक फव्वारे से हल्की सिंचाई अवश्य करते रहना चाहिए। बीज का अंकुरण 5-8 दिनो में प्रारम्भ हो जाता है। 1.5 से 2 माह में पौधे रोपाई हेतु तैयार हो जाते हैं।
रोपाई:  सकर्स को परिपक्व पौधों से निकाल कर इसकी रोपाई करनी चाहिए। बज्रदंती के पौधे का रोपण 30&30 सेमी की दूरी पर करना चाहिए। यदि रोपाई के लिए बीज से तैयार पौधों का प्रयोग करना है तब उस स्थित में रोपाई से पूर्व पौधशाला में सिंचाई कर देनी चाहिए जिससे कि पौधों को उखाड़ते समय जड़ों को कोई नुकसान न होने पाये। रोपाई शाम के समय ही करनी चाहिए जिससे कि पौधों पर धूप का असर कम से कम हो। रोपाई के तुरन्त बाद खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए।
सिंचाई:  बज्रदंती के लिय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। इसके लिए फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई पौध रोपण के तुरन्त बाद करनी चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रहे कि रोपाई से लेकर पौधे के पूर्ण विकसित होने तक मृदा में उचित नमी बनी रहे। इसके उपरान्त 20-25 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए।

निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण:  फसल पर खरपतवारों का प्रकोप ज्यादा नहीं पाया गया है। फिर भी पौधों की वृद्धि एवं विकास हेतु रोपाई से लेकर कटाई तक 4-5 निराई करना चाहिए। खरपतवारों के रसायनिक नियंत्रण हेतु मेटाक्लोर अथवा क्लोरम्बेन 2.2 किग्रा/हेक्टेयर की दर प्री-इमरजेंस के रूप में ट्राइफ्लूरेलिन 6.5 किग्रा/हेक्टेयर की दर पोस्ट-इमरजेंस के रूप में प्रयोग में लाना चाहिए।
खाद और उर्वरक: बज्रदंती का पौधा सूक्ष्म पोषक तत्वों के प्रति अधिक संवदेनशील होता है। पौधों को इनकी पूर्ति ना होने पर पौधे में पाये जाने वाले मुख्य यौगिकों की मात्रा में कमी आ जाती है। पौधे के वृद्धि एंव विकास के लिए बोरोन, जिंक, आयरन, कॉपर तथा मैगनीज आदि पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। पौधों में बोरोन को उपलब्ध कराने के लिये 8-9 किग्रा/हेक्टेयर की दर से बोरेक्स का प्रयोग करना चाहिए। पौधे के अच्छे विकास के लिये 60-75 किग्रा नाइट्रोजन, 40-60 किग्रा फास्फोरस तथा 60 किग्रा पोटाश की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से संस्तुत की गई है। फास्फोरस व पोटाश की पूरी तथा नाइट्रोजन की दो तिहाई मात्रा रोपाई के समय छिड़काव करके देनी चाहिए। नाइट्रोजन की शेष बची मात्रा को 2-3 बार में 30 दिन के अन्तराल पर देना चाहिए।
अन्त: फसल: बज्रदंती में अन्त: फसल के रूप में किये गये शोध में मक्का की फसल को लाभकारी माना गया है। इसके अलावा लाइन से लाइन की दूरी को बढ़ा कर मुख्य फसल से प्रतिस्पर्धा न करने वाली मौसमी सब्जियाँ, दलहन एंव धान्य फसले बज्रदंती के साथ उगाई जा सकती हैं।
पौध सुरक्षा: बज्रदंती के पौधे को कुछ कीटों और बीमारियों की संभावना रहती है।
जड़ों की खुदाई: बज्रदंती की फसल को लगाने से आठ माह उपरान्त इसकी जड़ों को निकाला जाता है। खुदाई आसानी से हो सके इसके लिए खुदाई से पूर्व हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। खुदाई कल्टीवेटर या डिस्क हैरो से की जाती है। पीछे से जड़ों को उठा कर इकठ्ठा कर लिया जाता है। इस प्रकार तीन चार बार में अधिकांश जड़ें निकाल ली जाती हैं।
जड़ों को सुखाना: जड़ों को फर्श पर फैलाकर छाया में सुखाया जाता है। सुखाने की प्रक्रिया में जड़ों में आद्र्रता 50 प्रतिशत घटकर 10 प्रतिशत तक रह जाती है।
भंडारण: बज्रदंती को पौली बैग में रखना चाहिए, इसके बाद इन्हें बोरों में पैक कर देना चाहिए जिससे कि इसमें नमी का प्रवेश ना हो पाए।
उपज: सिंचित क्षेत्रों से लगभग 20-25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर जड़ें प्राप्त होती है।
रसायनिक अवयव: इसके प्रकंदों में टोर्मीनोल तथा शाक में एक वाष्पशील तेल की 0.3 प्रतिशत मात्रा पाई जाती है। इससे दो ऐजिटैनिन-स्कोपोलेटिन तथा अम्बेलीफेरान और पोटेन्टिलिन, एग्रीमोनीन, क्वर्सेटिन तथा कोम्पफेराल भी विश्लेषित किए गये हैं।
कृषि में व्यय और लाभ: शुष्कित जड़ों की पैदावार 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल जाती है। उनका बाजार भाव रू. 150 रू. प्रति किग्रा. तक रहता है। इसकी खेती पर प्रति हेक्टेयर रू. 50,000 व्यय होने का अनुमान है तथा कुल प्राप्ति रू. 30,0000 से 375000 तक हो जाती है।

औषधीय उपयोग
बज्रदंती का प्रयोग मंजन उद्योग में काफी बड़ी मात्रा में किया जा रहा है। इस टॉनिक तथा एरिट्रन्जेन्ट माना जाता है। इसकी जड़ों का लेप पायरिया में लगाया जाता है। यह दांतों को मजबूत बनाता है तथा अनेक दंत रोगों में उपयोगी पाया गया है। इसका प्रयोग डायरिया तथा मूत्र संबंधी बीमारियों को उपचारित करने में भी किया जाता है।

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