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पटेल वाइन की पहल से बदला गांव-समाज

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रतलाम-झाबुआ मार्ग पर कुछ दूर चलने पर अंगूर, अनार, पपीता, स्ट्राबेरी जैसे विभिन्न फलों की महक से मन-मस्तिष्क तरोताजा होने लगता है। जी हां, सूबे के घोषित कृषि तीर्थों में से एक तीतरी पहुंचते ही महसूस होता है, हम उद्यानिकी के तीर्थ क्षेत्र में पहुंच गए हों। यहीं स्थापित है कृषि कर्म को उद्यम से जोडऩे वाली पटेल वाइन एंड फ्रूट प्रोसेसिंग इंडस्ट्री की ‘एम्बी वाइन्सÓ।
पाटीदार समाज के प्रगतिशील किसान परिवारों ने इस क्षेत्र को राष्ट्रीय नक्शे पर गौरवान्वित किया है। इनमें अहम हैं श्री मोतीलाल पाटीदार, श्री जितेंद्र पाटीदार। खेती को उद्यमिता से जोडऩे का क्रम शुरू हुआ, जब सन् 1982 में श्री मोतीलाल पाटीदार के बड़े पिता (ताऊजी) श्री अम्बाराम पाटीदार कृषि संबंधी कार्य के लिए महाराष्ट्र के पंढरपुर, सांगली गए। वहां उन्हें राष्ट्रीय अंगूर उत्पादक (द्राक्ष वघायकार) संघ के तत्कालीन अध्यक्ष श्री वसवंतराव आरवे के संबंध में जानकारी मिली। उनसे मिलने श्री अम्बाराम पाटीदार तासगांव (सांगली) पहुंचे और श्री आरवे को अंगूर की खेती करते देखा। लौटते समय उन्होंने तीतरी में अंगूर की खेती का सपना संजो लिया। बस फिर क्या था, घर लौटते ही परिजनों और तीतरी के कुछ किसानों के साथ उन्होंने सपना साझा किया और शुरू हुई उद्यानिकी खेती की अनूठी यात्रा।
जहां चाह वहां राह : एम्बी का जन्म
वर्ष 2002-03 आते-आते अंगूर का उत्पादन इतना बढ़ा कि लागत निकलना मुश्किल होने लगा। समस्या के समाधान ने एक नई सोच के साथ जन्म लिया – पटेल वाइन एंड फ्रूट प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के रूप में। कर्म की पतवार थाम किस्मत को पीछे छोडऩे वाले श्री मोतीलाल एवं श्री जितेंद्र पाटीदार ने वर्ष 2007 में 18 किसानों के साथ अंगूर प्रोसेसिंग में हाथ आजमाया और पटेल वाइन एंड फ्रूट प्रोसेसिंग इंडस्ट्री ने ‘एम्बीÓ ब्रांडनेम से वाइन बनाना शुरू की। श्री अम्बाराम पाटीदार के साथी श्री जमनालाल पाटीदार को समूह के चेयरमेन की जिम्मेदारी सौंपी गई।
समूह को अपनी सोच को कार्य रूप में परिणित करने के लिए ‘अपनोंÓ से ही दो-चार होना पड़ा। रिश्तेदारों-समाजजनों ने तोहमत लगाई- ‘क्या अब अपने परिजन-युवाओं को शराब उद्योग में झोंकोगे?Ó कृषक से उद्यमी बनने की सोच वाले श्री जितेंद्र पाटीदार ने अपनों को ‘वाइनÓ और ‘लिकरÓ का अंतर समझाया और समाज को खेती से तरक्की की वो राह दिखाई, जिस पर हर बाशिंदा चलना चाहता है।
नई पीढ़ी ने बदली तस्वीर
भविष्य को ध्यान में रख नई पीढ़ी को समूह से जोड़ा गया। एम्बी निर्माण में श्री जितेंद्र पाटीदार की अहम भूमिका है। उन्होंने भारती विद्यापीठ यूनिवर्सिटी, पूणे से पीजी डिप्लोमा इन वाइन टेक्नोलॉजी लेने के बाद कैलीफोर्निया (अमेरिका) स्थित पैराडाइज रिड्ज वाइनरी से इटर्नशिप की। माइश हेनोसी ग्रुप के साथ अनुभव को तराशा। वहीं श्री जितेंद्र ने साउथ आइलैंड (न्यूजीलैंड) स्थित साउथ पैसिफिक सेलार लि. के लिए वाइन बनाई, जो कि दुनिया के लगभग 30 देशों में निर्यात की जाती है। विपणन-बाजार प्रक्रिया में पैठ बनाने वे हांगकांग के मॉल्स में भी गए। एक अन्य युवा श्री अमृत पाटीदार (ग्राम रूपाखेड़ा) समूह से प्रारंभ से जुड़े हैं। वे लाइजनिंग का प्रभार देखते हैं। पूना से एमबीए श्री राजेश पाटीदार ने एम्बी को बाजार में स्थापित करने के लिए आईसीआईसीआई बैंक मुंबई के भारी-भरकम पे-पैकेज वाले जॉब को अलविदा कह दिया। तीतरी की धरती के ये वे लाल हैं, जिन्होंने अपनी जन्मभूमि को ही कर्मभूमि बनाते हुए नई पहचान दिलाई है।
ग्रेप प्रोसेसिंग पॉलिसी
इन किसानों को ‘लिकरÓ और ‘वाइनÓ के फर्क को समझाने में समाज से ज्यादा सरकार से जूझना पड़ा। वर्ष 2002-03 में अंगूर प्रोसेसिंग पश्चात बाजार तलाशा तो कायदे-कानून का पेंच सामने आया। सरकारी नियमों में अंगूर का रस ‘लिकरÓ अर्थात् अल्कोहलिक नशा देने वाली शराब थी, जिसका भाग्य-विधाता आबकारी विभाग, मध्यप्रदेश है। अंतत: वर्ष 2006 में एम्बी के दिन बहुरे जब लंबी जद्दोजहद के पश्चात ये किसान मप्र के मुखिया श्री शिवराजसिंह चौहान की सरकार को फ्रूट प्रोसेसिंग की अहमियत समझाने में कामयाब हुए और लागू हुई ग्रेप प्रोसेसिंग पॉलिसी। अब ‘एम्बीÓ के लिए मैदान खुला था। वर्ष 2008 में 26 हजार लीटर एम्बी वाइन बनाई गई, जो वर्तमान लगभग 1.25 लाख लीटर प्रतिवर्ष बनाई व बेची जा रही है।
फ्रेंचाइजी का दौर
बाजार विस्तारीकरण के लिए समूह ने कई पापड़ बेले। सरकार की हरी झंडी मिलने के पश्चात श्री जितेंद्र पाटीदार ने विदेशों में अर्जित अनुभव का इस्तेमाल कर वर्ष 2014 में एम्बी को फ्रेंचाइजी के माध्यम से बाजार में प्रस्तुत किया। रतलाम जिले से प्रारंभ ये प्रयोग कई शहरों में फैल गया है। वर्तमान में 20 से अधिक फ्रेंचाइजी से एम्बी बिकती है।
एम्बी : जटिल प्रोसेसिंग
अंगूर प्रोसेसिंग की प्रक्रिया खर्चीली और लंबी है। रॉ-मटेरियल अर्थात अंगूर की खेती के लिए विशिष्ट किस्मों का चयन किया जाता है। इटालियन, फ्रांसीसी और ऑस्ट्रेलियन किस्मों जैसे शिराज अंजू, फेबरने, सोविनियोन, जिन फेनडे, शेनिंग ब्लांग, शोविनियोन ब्लांग आदि किस्मों की अनुबंधित खेती करवाई जा रही है। इसके पश्चात क्रॉसिंग, फर्मेंटेशन, स्कीन सेपरेशन आदि प्रक्रियाओं की लगभग 9 माह की लंबी अवधि के पश्चात गुणवत्तायुक्त एम्बी का निर्माण होता है।
एम्बी के विभिन्न फ्लेवर
वैश्विक बाजार की प्रतिस्पर्धा के लिए अब यहां अप्सरा, रोज वाइन, ब्लश वाइन, व्हाइट वाइन जैसे विभिन्न ब्रांड्स का उत्पादन किया जा रहा है। श्री पाटीदार का कहना है- ‘जो किसान बाजार को तरसते थे, उन्हें हमने नई राह दिखाई है। गांव-समाज का जीने का अंदाज बदला है। अब हम नजर ऊंची उठाकर चल सकते हैं।

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