ईश्वर के बाद कौन…?
13 अगस्त 2024, भोपाल: ईश्वर के बाद कौन…? – हिन्दू धर्म ईश्वर को कर्ता-धर्ता नहीं मानता। वह तो एक शुद्ध प्रकाश है। उसकी उपस्थिति से ही ब्रह्मांड निर्मित होते हैं और भस्म भी हो जाते हैं। ईश्वर को सर्वशक्तिमान घोषित करने के बाद हिंदुत्व कहता है कि ब्रह्मांड में तीन तरह की शक्तियां सक्रिय हैं- दैवीय, दानवी और मिश्रित शक्तियां। मिश्रित शक्तियों में गंधर्व, यक्ष, रक्ष, अप्सरा, पितृ, किन्नर, मानव आदि हैं। वेदों अनुसार ईश्वर को छोड़कर किसी अन्य की प्रार्थना नहीं करनी चाहिए। इससे जीवन में विरोधाभाष बढ़ता है और मन भटकाव के रास्ते पर चला जाता है। द्वंद्व रहित मन ही संकल्पवान बन सकता है। संपल्पवान मन में ही रोग, शोक और तमाम तरह की परिस्थितियों से लड़कर सफलता को पाने की शक्ति होती है। ईश्वर के बाद तीन तरह की शक्तियां हैं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव)।
ब्रह्मा – ब्रह्मा को हमारी सृष्टि में जीवों की उत्पत्ति का पिता माना जाता है। ब्रह्मांड या सृष्टि का रचयिता नहीं। उन्हें ही प्रजापिता, पितामह तथा हिरण्यगर्भ कहते हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि यह हमें सृष्टि में लाने वाले देव हैं। सावित्री इनकी पत्नी, सरस्वती पुत्री और हंस वाहन है।
भगवान ब्रह्मा का परिचय – प्रजापिता से ही प्रजापतियों का जन्म हुआ। मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वशिष्ठ, दक्ष तथा कर्दम- ये 10 मुख्य प्रजापति हैं। ब्रह्माजी से ही सभी देवताओं, दानवों, गंधर्वों, मनुष्यों, मत्स्यों, पशु और पक्षियों की उत्पत्ति हुई।
विष्णु – विष्णु को पालक माना गया है। यह संपूर्ण विश्व भगवान विष्णु की शक्ति से ही संचालित है। विष्णु की सहचारिणी लक्ष्मी है। संपूर्ण जीवों का आश्रय होने के कारण भगवान श्री विष्णु ही नारायण कहे जाते हैं। वे ही हरि हैं। आदित्य वर्ग के देवताओं में विष्णु श्रेष्ठ हैं। मत्स्य, कूर्म, वाराह, वामन, हयग्रीव, परशुराम, श्रीराम, कृष्ण और बुद्ध आदि भगवान श्रीविष्णु के ही अवतार हैं।
शिव – शिव हैं सनातन धर्म का परम कारण और कार्य। शिव हैं धर्म की जड़। जो भी धर्म के विरुद्ध हैं, वे शिव की मार से बच नहीं सकते इसीलिए शिव को संहारक माना गया है। जिस तरह विष्णु के अवतार हुए हैं उसी तरह शिव के भी अवतार हुए हैं। शिव की अर्धांगिनी का नाम है- सती पार्वती। रुद्र वर्ग के देवताओं में शिव श्रेष्ठ हैं। भगवान शिव के बारे संपूर्ण जानकारी।
देव और दानव –
हिन्दू धर्मग्रंथों के मुताबिक देवता धर्म के, तो दानव अधर्म के प्रतीक हैं। देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं, तो दानवों के गुरु शुक्राचार्य। देवताओं के भगवान विष्णु हैं तो दानवों के शिव। इन्हीं के कारण जहां सूर्य पर आधारित धर्म का जन्म हुआ, वहीं चंद्र पर आधारित धर्म भी जन्मा।
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