State News (राज्य कृषि समाचार)

सोयाबीन की शीघ्र, मध्यम एवं अधिक समयावधि वाली किस्में तथा उनकी बीज उपलब्धता’ पर वेबिनार आयोजित

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8 जून 2021,इंदौर । सोयाबीन की शीघ्र, मध्यम एवं अधिक समयावधि वाली किस्में तथा उनकी बीज उपलब्धता’ पर वेबिनार आयोजित–  रेजीडेंसी कोठी में आयोजित बैठक में इंदौर के सांसद  श्री शंकर लालवानी  एवं कलेक्टर  श्री मनीष सिंह  के सुझाव एवं निर्देशानुसार उपसंचालक (कृषि), जिला इंदौर के सहयोग से गत दिनों  भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान द्वारा “सोयाबीन की शीघ्र, मध्यम एवं अधिक समयावधि वाली किस्में तथा उनकी बीज उपलब्धता” विषय पर एकऑनलाइन वेबिनार आयोजित  किया गया जिसमे इंदौर के अलावा  मध्य प्रदेश के अन्य जिले के 220 से अधिक कृषकों एवं विस्तार कर्मियों ने भाग लिया।

अपने स्वागत भाषण में संस्थान की निदेशक डॉ. नीता खांडेकर ने कहा कि विगत दो वर्षो से ख़राब मौसम के कारण सोयाबीन के बीजोत्पादन कार्यक्रम के अंतर्गत लक्ष्यों की पूर्ति में कमी देखी  गई है. उन्होंने प्रदेश के किसानों को अपने पास उपलब्ध प्रचलित सोयाबीन किस्म जे.एस. 95-60 की गुणवत्ता में कमी आने के कारण  अन्य वैकल्पिक सोयाबीन की किस्मों की खेती करने की सलाह दी। संस्थान के वैज्ञानिकों से सोयाबीन के बदलते हुए मौसम के परिप्रेक्ष्य में  एवं कीट/रोग के प्रबंधन का अनुरोध सम्बंधित वैज्ञानिकों की प्रतिबद्धता को
दोहराय।

इंदौर के सांसद  श्री शंकर लालवानी  ने सोयाबीन की फसल में आ रही कीट एवं व्याधियों कीसमस्याओं तथा  इसके लिए  भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान  द्वारा सोयाबीन  खेती की निरंतर  विकसित उत्पादन तकनीक एवं नवीनतम पद्धतियों के प्रचार-प्रसार हेतु किये जा रहे प्रयासों की प्रशंसा की. उन्होंने किसानो से आह्वान किया कि ख़राब मौसम एवं कीट/रोगों के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए भारतीय सोयाबीनअनुसन्धान संस्थान द्वारा की गई 2-3 किस्मों की खेती किये जाने अनुशंसा का अनुपालन करें।

इस वेबिनार के दौरान उपसंचालक कृषि, जिला इंदौर श्री एस.एस. राजपूत ने इंदौर जिले के सभी शासकीय एवं निजी बीज कंपनियों का उल्लेख करते हुए कहा  कि किसान हमेशा सोयाबीन के बीज जो अधिक मात्रा में उपयोग करते है।  जबकि  आई.आई.एस.आर की अनुशंसा के अनुसार किसान भाइयों को सोयाबीन के बीज का न्यूनतम 70 प्रतिशत अंकुरण के आधार पर 60-80 किलोग्राम/हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए, जिससे बीज की कमी की समस्या का भी कुछ हद तक निराकरण किया जा सके ।

इस वेबिनार में भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान के डॉ. मृणाल कुचलन ने किसानों को रेत से भरी ट्रे का उपयोग करते हुए सोयाबीन के बीज का अंकुरण परीक्षण करने का सरल उपाय बताया. साथ ही डॉ अमरनाथ शर्मा, सेवा निवृत प्रधान वैज्ञानिक (कीट विज्ञान) एवं अध्यक्ष पौध संरक्षण विभाग द्वारा सोयाबीन की फसल में पीले मोज़ेक बीमारी, सफ़ेद मक्खी एवं अन्य कीटों  के नियंत्रण करने का वैज्ञानिक तरीका बताया.आपने  सोयाबीन की फसल में उचित कीट प्रबंधन हेतु समेकित कीट प्रबंधन के अन्य तरीके जैसे पीली चिपचिपी पट्टी  फेरोमोन ट्रैप, प्रकाश प्रपंच आदि तरीको को अपनाने की सलाह द।

इंदौर संस्थान के डॉ. बी.यू. दुपारे (प्रधान वैज्ञानिक,कृषि विस्तार) द्वारा प्रदेश के सोयाबीन कृषकों  को  सात बिंदुओं  में सम-सामायिक सलाह दी गई।  जिसमें एक ही किस्म पर निर्भर रहने की बजाए अलग अलग समयावधि में पकने वाली  (शीघ्र  ,मध्यम व अधिक समयावधि वाली ) कम से कम 2-3 किस्मों की खेती करने की साथ ही सोयाबीन प्रजाति जे.एस. 95-60 में आ रही समस्याओं को देखते हुए विकल्प के रूप में शीघ्र समयावधि में पकने वाली अन्य किस्म जे.एस. 20-34 की खेती करने की सलाह दी। फलियाँ पकने के समय अधिक समय तक/अत्यधिक वर्षा के कारण सोयाबीन की फसल में  हो रहे नुकसान को देखते हुए सोयाबीन किस्मों की विविधता बढाने हेतु जे.एस. 20-29, जे.एस. 20-69, जे.एस.20-98 जैसी किस्मों का  क्षेत्र बढाकर जे.एस. 95-60 का क्षेत्रफल कम करे।  

सोयाबीन की बोवनी से पूर्व उपलब्ध  अच्छी गुणवत्ता वाले बीज का अंकुरण परीक्षण कर न्यूनतम 70  प्रतिशत अंकुरण, एवं बीज  के आकार के आधार पर 60-80 किग्रा/हे. बीज दर का प्रयोग कर बोवनी के समय फफूंदनाशक, कीटनाशक एवं जैविक कल्चर से बीजोपचार अवश्य करें। बोवनी  से पहले सोयाबीन बीज को अनुशंसित  पूर्वमिश्रित फफूंदनाशक पेनफ्लूफेऩ़ +ट्रायफ्लोक्सिस्ट्रोबीन 38 एफ.एस. (1 मि.ली./कि.ग्रा. बीज) या कार्बोक्सिन 37.5%+थाइरम 37.5% (3ग्राम/कि.ग्रा. बीज) या थाइरम (2 ग्राम) एवं कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम) प्रति कि.ग्रा. बीज अथवा जैविकफफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी (8-10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज) से उपचारित करें। पीला मोजाइक बीमारी एवं तना मक्खी का प्रकोप को रोकने की लिए फफूंदनाशक से बीजोपचार के पश्चात कीटनाशक थायामिथोक्सम 30 एफ.एस. (10 मि.ली.प्रति कि.गा. बीज) या इमिडाक्लोप्रिड (1.25 मि.ली./कि.ग्रा. बीज) से बीज उपचार करें।

कवकनाशियों द्वारा उपचारित बीज को छाया में सूखाने के पश्चात् जैविक खाद ब्रेडीराइजोबियम कल्चर तथा पीएसबी कल्चर दोनों (5 ग्राम/कि.ग्रा बीज) से टीकाकरण कर तुरन्त बोवनी  हेतु उपयोग करें। किसान भाई इस बात का विशेष ध्यान रखें कि क्रमानुसार फफूंदनाशक, कीटनाशक से बीजोपचार के पश्चात् हीजैविक कल्चर/खाद द्वारा टीकाकरण करें।  कल्चर व कवकनाशियों को एक साथ मिलाकर कभी भी उपयोग में नहीं लाना चाहिए।

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