राजस्थान में रबी सीजन के लिए डीएपी का पारदर्शी वितरण, सभी जिलों में पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध
24 अक्टूबर 2024, जयपुर: राजस्थान में रबी सीजन के लिए डीएपी का पारदर्शी वितरण, सभी जिलों में पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध – राज्य में रबी फसलों की बुवाई को ध्यान में रखते हुए कृषि विभाग ने डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) समेत अन्य उर्वरकों का पारदर्शी और प्राथमिकता आधारित वितरण सुनिश्चित किया है। विभाग की ओर से बताया गया कि वर्तमान में राजस्थान में 34 हजार मैट्रिक टन डीएपी, 4 लाख 18 हजार मैट्रिक टन यूरिया, 2 लाख 22 हजार मैट्रिक टन एसएसपी (सिंगल सुपर फॉस्फेट) और 52 हजार मैट्रिक टन एनपीके का पर्याप्त भंडार उपलब्ध है।
सितंबर की बारिश के कारण डीएपी की मांग में बढ़ोतरी
इस साल राज्य में औसत से 58.68% अधिक बारिश हुई, जिससे बांधों और तालाबों में सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध है। इसके चलते रबी फसलों की बुवाई का क्षेत्र बढ़ने की संभावना जताई गई है। सितंबर में लगातार बारिश होने से किसानों ने बुवाई को अक्टूबर में एक साथ शुरू किया, जिससे इस महीने डीएपी की मांग अधिक हो गई है।
अक्टूबर में 1.8 लाख मैट्रिक टन डीएपी का आवंटन
कृषि एवं उद्यानिकी विभाग के शासन सचिव राजन विशाल ने बताया कि रबी सीजन 2024-25 के लिए केंद्र सरकार ने अक्टूबर में 1.8 लाख मैट्रिक टन डीएपी का आवंटन किया है। 22 अक्टूबर तक राज्य को 74 हजार मैट्रिक टन डीएपी की आपूर्ति मिल चुकी है, जो कुल आवंटन का लगभग 42% है।
शासन सचिव ने बताया कि शेष 1.06 लाख मैट्रिक टन डीएपी की आपूर्ति के लिए केंद्र सरकार से अनुरोध किया गया है। उर्वरक आपूर्तिकर्ता कंपनियों के साथ समन्वय कर जल्द से जल्द शत-प्रतिशत आपूर्ति सुनिश्चित करने के प्रयास जारी हैं।
राज्य सरकार को रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने सूचित किया है कि अगले सात दिनों के भीतर कनकपुरा, अलवर, सूरतगढ़, मेडता सिटी, भवानीमंडी, बीकानेर, हिण्डौन सिटी और लालगढ़ रैक प्वाइंट्स पर डीएपी रैक पहुंचने की संभावना है। इससे राज्य को 15 से 20 हजार मैट्रिक टन अतिरिक्त डीएपी की आपूर्ति हो सकेगी।
किसानों को वैकल्पिक उर्वरकों का उपयोग करने की सलाह
कृषि विभाग ने किसानों को डीएपी के विकल्प के रूप में सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी), एनपीके और यूरिया के उपयोग पर भी जागरूक किया है। इस संबंध में किसान गोष्ठियों, मेलों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों को जानकारी दी जा रही है ताकि वैकल्पिक उर्वरकों का सही उपयोग किया जा सके।
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